बालकृष्ण भट्ट जीवनी - Biography of Balkrishna Bhatt in Hindi Jivani Published By : Jivani.org हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में पंडित बालकृष्ण भट्ट (Balkrishna Bhatt) का नाम “हिंदी प्रदीप” की ख्याति के कारण ही अप्रतिम नही , इनके शिष्यों में पंडित मदनमोहन मालवीय और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन जैसे ख्यात नाम भी है जिन्होंने अपने कर्ममय जीवन की शुरुवात बालकृष्ण जी के निर्देशन में पत्रकारिता से ही की थी | भारतेंदु हरिश्चन्द्र की प्रेरणा से सं 1877 में इन्होने “हिंदी वर्धिनी सभा” की स्थापना की थी | यशस्वी “हिंदी प्रदीप” इस सभा के अंतर्गत ही निकला , जिसका विमोचन स्वयं भारतेंदु बाबू ने किया था | पर सिर मुंडाते ही ओले पड़ने शुरू हो गये थे | इसमें छपे कई लेखो ने ब्रिटिश नौकरशाही को नाराज कर दिया था और बार बार भट्ट जी को बुलाकर चेतावनिया दी जाने लगी | इस पत्र को इतने संदेह से देखा जाने लगा कि भट्ट जी के मित्रो ने उनके कार्यालय में आना छोड़ दिया और उनके जाने पर कहने लगे “कृपया आप हमारे यहाँ न आया करिये इससे हमे भी संदेह के घेरे में ले लिया जाएगा और हम बेवजह धर लिए जायेंगे” | ऐसा लेखकीय स्वतंत्रता के विपरीत वातावरण था उस समय | जब भट्ट जी (Balkrishna Bhatt) को आये दिन सरकारी प्रतिबंधो एवं झंझटो का सामना करना पड़ा तो विवश होकर उन्होंने इसे राजनीती प्रधान पत्र से बदलकर साहित्यिक स्वरूप दे दिया | “हिंदी प्रदीप” को इस रूप में चलाने पर बालकृष्ण भट्ट (Balkrishna Bhatt) को अर्थ संकट से गुजरना पड़ा , जिससे उनका पूरा परिवार ही संकटग्रस्त हो गया पर उन्होंने इसकी परवाह न करते हुए इसे 33 वर्ष तक चलाया और लोकप्रियता के शिखर पर पहुचाया | फिर भी जब उनसे हिंदी प्रेस एक्ट के अंतर्गत 3000 रूपये की जमानत माँगी गयी तो उन्होंने उसे बंद ही कर दिया | व्यावसायिक जीवन कुछ समय के लिए बालकृष्ण भट्ट 'जमुना मिशन स्कूल' में संस्कृत के अध्यापक भी रहे, पर अपने धार्मिक विचारों के कारण इन्हें पद त्याग करना पड़ा। विवाह हो जाने पर जब इन्हें अपनी बेकारी खलने लगी, तब यह व्यापार करने की इच्छा से कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) भी गए, परन्तु वहाँ से शीघ्र ही लौट आये और संस्कृत साहित्य के अध्ययन तथा हिन्दी साहित्य की सेवा में जुट गए। यह स्वतंत्र रूप से लेख लिखकर हिन्दी साप्ताहिक और मासिक पत्रों में भेजने लगे तथा कई वर्ष तक प्रयाग में संस्कृत के अध्यापक रहे। भट्टजी प्रयाग से 'हिन्दी प्रदीप' मासिक पत्र का निरंतर घाटा सहकर 32 वर्ष तक उसका सम्पादन करते रहे। 'हिन्दी प्रदीप' बंद होने के बाद 'हिन्दी शब्दसागर' का संपादन कार्य भी इन्होंने कुछ समय तक देखा, पर अस्वस्थता के कारण इन्हें यह कार्य छोड़ना पड़ा। कार्यक्षेत्र भट्ट जी एक अच्छे और सफल पत्रकार भी थे। हिन्दी प्रचार के लिए उन्होंने संवत् 1933 में प्रयाग में हिन्दीवर्द्धिनी नामक सभा की स्थापना की। उसकी ओर से एक हिन्दी मासिक पत्र का प्रकाशन भी किया, जिसका नाम था "हिन्दी प्रदीप"। वह बत्तीस वर्ष तक इसके संपादक रहे और इसे नियमित रूप से भली-भाँति चलाते रहे। हिन्दी प्रदीप के अतिरिक्त बालकृष्ण भट्ट जी ने दो-तीन अन्य पत्रिकाओं का संपादन भी किया। भट्ट जी भारतेन्दु युग के प्रतिष्ठित निबंधकार थे। अपने निबंधों द्वारा हिन्दी की सेवा करने के लिए उनका नाम सदैव अग्रगण्य रहेगा। उनके निबन्ध अधिकतर हिन्दी प्रदीप में प्रकाशित होते थे। उनके निबंध सदा मौलिक और भावना पूर्ण होते थे। वह इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें पुस्तकें लिखने के लिए अवकाश ही नहीं मिलता था। अत्यन्त व्यस्त समय होते हुए भी उन्होंने "सौ अजान एक सुजान", "रेल का विकट खेल", "नूतन ब्रह्मचारी", "बाल विवाह" तथा "भाग्य की परख" आदि छोटी-मोटी दस-बारह पुस्तकें लिखीं। वैसे आपने निबंधों के अतिरिक्त कुछ नाटक, कहानियाँ और उपन्यास भी लिखे हैं। मुख्य कृतियाँ o निबंध संग्रह : साहित्य सुमन, भट्ट निबंधावली o उपन्यास : नूतन ब्रह्मचारी, सौ अजान एक सुजान o नाटक : दमयंती, स्वयंवर, बाल-विवाह, चंद्रसेन, रेल का विकट खेल o अनुवाद : वेणीसंहार, मृच्छकटिक, पद्मावती भाषा भाषा की दृष्टि से अपने समय के लेखकों में भट्ट जी का स्थान बहुत ऊँचा है। उन्होंने अपनी रचनाओं में यथाशक्ति शुद्ध हिंदी का प्रयोग किया। भावों के अनुकूल शब्दों का चुनाव करने में भट्ट जी बड़े कुशल थे। कहावतों और मुहावरों का प्रयोग भी उन्होंने सुंदर ढंग से किया है। भट्ट जी की भाषा में जहाँ तहाँ पूर्वीपन की झलक मिलती है। जैसे- समझा-बुझा के स्थान पर समझाय-बुझाय लिखा गया है। बालकृष्ण भट्ट की भाषा को दो कोटियों में रखा जा सकता है। प्रथम कोटि की भाषा तत्सम शब्दों से युक्त है। द्वितीय कोटि में आने वाली भाषा में संस्कृत के तत्सम शब्दों के साथ-साथ तत्कालीन उर्दू, अरबी, फारसी तथा ऑंग्ल भाषीय शब्दों का भी प्रयोग किया गया है। निधन बालकृष्ण भट्ट का निधन 20 जुलाई, 1914 ई. में हुआ। लेखकों में उनका सर्वोच्च स्थान है। भट्टजी ने नाटककार, निबन्धकार, लेखक, उपन्यासकार और अनुवादक आदि विभिन्न रूपों में हिन्दी की सेवा की और उसे धनी बनाया। साहित्य की दृष्टि से भट्ट जी के निबन्ध अत्यंत उच्च कोटि के हैं। इस दिशा में उनकी तुलना अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैंब से की जा सकती है। गद्य काव्य की रचना भी सर्वप्रथम भट्ट जी ने ही प्रारंभ की थी। इनसे पूर्व तक हिन्दी में गद्य काव्य का नितांत अभाव था। ( 6 ) 7 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3