Saint Biographies :
आनंदमयी का जन्म निर्मला सुंदरी देवी के रुप में 30 अप्रैल 1896 को वर्तमान समय मे बाग्लांदेश के तिलोरा जिेले अब ब्राम्हणबेरिया जिला के गॉव मे हुआ था | उनके माता पिता एक रुढिवादी बैष्णव ब्राम्हण बिपिन बिहारी भट्रटाचार्य और मोक्षदा सुंदरी देवी थे | उनके पिता जो मूल रुप से त्रिपुरा के विघाकूट के निवासी थे | एक वैष्णाव ...
सय्यद अब्दुल्ला शाह क़ादरी (शाहमुखी/गुरुमुखी) जीने बुल्ले शाह के नाम से भी जाना जाता है एक पंजाबी दार्शनिक एवं संत थे। उनके पहले आध्यात्मिक गुरु संत सूफी मुर्शिद शाह इनायत अली थे, वे लाहौर से थे। बुल्ले शाह को मुर्शिद से आध्यामिक ज्ञान रूपी खाजने की प्राप्ति हुई और उन्हें उनकी करिश्माई ताकतों के कारण पहचाना जाता था। बुल्ले शाह ...
दादूदयाल मध्यकालीन भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत थे. इनका जन्म विक्रम संवत् 1601 में फाल्गुन शुक्ला अष्टमी को अहमदाबाद में हुआ था. पूर्व में दादूदयाल का नाम महाबलि था. पत्नी की मृत्यु के बाद ये सन्यासी बन गये. अधिकाशतया ये सांभर व आमेर में रहने लगे. फतेहपुर सिकरी में अकबर से भेट के बाद आप भक्ति का प्रसार प्रसार करने ...
संत पीपा जी कालीसिंध नदी पर बना प्राचीन गागरोंन दुर्ग संत पीपा की जन्म स्थली रहा है. इनका जन्म विक्रम संवत् 1417 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को खिचीं राजवंश परिवार में हुआ था. वे गागरोंन राज्य के वीर साहसी एवं प्रजापालक शासक थे. शासक रहते हुए उन्होंने दिल्ली सल्तनत के सुलतान फिरोज तुगलक से संघर्ष करके विजय प्राप्त की, लेकिन युद्ध ...
सनातन गोस्वामी कर्णाट श्रेणीय पंचद्रविड़ भारद्वाज गोत्रीय यजुर्वेदी ब्राह्मण थे। इनके पूर्वज कर्णाट राजवंश के थे और सर्वज्ञ के पुत्र रूपेश्वर बंगाल में आकर गंगातटस्थ बारीसाल में बस गए। इनके पौत्र मुकुंददेव बंगाल के नवाब के दरबार में राजकर्मचारी नियत हुए तथा गौड़ के पास रामकेलि ग्राम में रहने लगे। इनके पुत्र कुमारदेव तीन पुत्रों अमरदेव, संतोषदेव तथा वल्लभ को ...
निम्बार्काचार्य भारत के प्रसिद्ध दार्शनिक थे जिन्होने द्वैताद्वैत का दर्शन प्रतिपादित किया। उनका समय १३वीं शताब्दी माना जाता है। किन्तु निम्बार्क सम्प्रदाय का मानना है कि निम्बार्क का प्रादुर्भाव ३०९६ ईसापूर्व (आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व) हुआ था। निम्बार्क का जन्मसथान वर्तमान आंध्र प्रदेश में है। सनातन संस्कृति की आत्मा श्रीकृष्ण को उपास्य के रूप में स्थापित करने ...
इनका जन्म १४९३ ई (तदनुसार १४१५ शक.सं.) को हुआ था। इन्होंने २२ वर्ष की आयु में गृहस्थाश्रम त्याग कर दिया था। बाद के ५१ वर्ष ये ब्रज में ही रहे। इन्होंने श्री सनातन गोस्वामी से दीक्षा ली थी। इन्हें शुद्ध भक्ति सेवा में महारत प्राप्त थी, अतएव इन्हें भक्ति-रसाचार्य कहा जाता है। ये गौरांग के अति प्रेमी थे। ये अपने ...
नरसी मेहता अथवा नरसिंह मेहता गुजराती भक्ति साहित्य के श्रेष्ठतम कवि थे। उनके कृतित्व और व्यक्तित्व की महत्ता के अनुरूप साहित्य के इतिहास ग्रंथों में "नरसिंह-मीरा-युग" नाम से एक स्वतंत्र काव्य काल का निर्धारण किया गया है, जिसकी मुख्य विशेषता भावप्रवण कृष्ण की भक्ति से अनुप्रेरित पदों का निर्माण है। पदप्रणेता के रूप में गुजराती साहित्य में नरसी का लगभग ...
इनका जन्म दक्षिण कन्नड जिले के उडुपी शिवल्ली नामक स्थान के पास पाजक नामक एक गाँव में सन् १२३८ ई में हुआ। अल्पावस्था में ही ये वेद और वेदांगों के अच्छे ज्ञाता हुए और संन्यास लिया। पूजा, ध्यान, अध्ययन और शास्त्रचर्चा में इन्होंने संन्यास ले लिया। शंकर मत के अनुयायी अच्युतप्रेक्ष नामक आचार्य से इन्होंने विद्या ग्रहण की और गुरु ...
वल्लभाचार्य भक्तिकालीन सगुणधारा की कृष्णभक्ति शाखा के आधार स्तंभ एवं पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। जिनका प्रादुर्भाव ईः सन् 1479, वैशाख कृष्ण एकादशी को दक्षिण भारत के कांकरवाड ग्रामवासी तैलंग ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट जी की पत्नी इलम्मागारू के गर्भ से काशी के समीप हुआ। उन्हें 'वैश्वानरावतार अग्नि का अवतार' कहा गया है। वे वेद शास्त्र में पारंगत थे। श्री ...
योगी, दिव्य पुरुष, सदगुरु जग्गी वासुदेव अध्यात्म की दुनिया में अपना एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। इनका जीवन गंभीरता और व्यवहारिकता एक आकर्षक मेल है, अपने कार्यों के जरिए इन्होंने योगा को एक गूढ़ विद्या नहीं बल्कि समकालीन विद्या के तौर पर दर्शाया। सदगुरु जग्गी वासुदेव को मानवाधिकार, व्यापारिक मूल्य, सामाजिक-पर्यावरणीय मसलों पर अपने विचार रखने के लिए वैश्विक स्तर ...
शिवानी का जन्म 19 मार्च, 1972 को पुणे शहर में हुआ। उन्होंने 1994 में पुणे विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता के रूप में अपनी इलेक्ट्रानिक्स इंजीनियरिंग स्नातक की डिग्री पूरी की, और फिर भारती विद्यापीठ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे के एक प्राध्यापक के रूप में दो साल तक काम किया। एक साक्षात्कार में, उन्होंने अपने माता-पिता से बचपन में ब्रह्मा ...
फ्रांसिस ज़ेवियर का जन्म 7 अप्रैल, 1506 ई. को स्पेन में हुआ था। पुर्तगाल के राजा जॉन तृतीय तथा पोप की सहायता से वे जेसुइट मिशनरी बनाकर 7 अप्रैल 1541 ई को भारत भेजे गए और 6 मार्च 1542 ई. को गोवा पहुँचे जो पुर्तगाल के राजा के अधिकार में था। गोवा में मिशनरी कार्य करने के बाद वे मद्रास ...
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितम्बर 1896 – 14 नवम्बर 1977) जिन्हें स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है, बीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध गौडीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। उन्होंने वेदान्त, कृष्ण-भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक श्री ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार प्रसार और कृष्णभावना को ...
महाराष्ट्र में एक छोटे से गांव में परम पूज्य श्री गजानन महाराज रहते थे। जो खारे पानी को भी मीठा बना देते थे, बीमार व्यक्ति को स्वस्थ कर देते थे, गरीब लोगों की झोली खुशियों से भर देते थे, दुखियों के सभी दुख हर लेते थे, और जिन माता पिता को संतान नहीं होती थी उन्हें संतान प्राप्ति का आशीर्वाद ...
१०१७ ईसवी सन् में रामानुज का जन्म दक्षिण भारत के तमिल नाडु प्रान्त में हुआ था। बचपन में उन्होंने कांची जाकर अपने गुरू यादव प्रकाश से वेदों की शिक्षा ली। रामानुजाचार्य आलवार सन्त यमुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज से तीन विशेष काम करने का संकल्प कराया गया था - ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की ...
पतञ्जलि योगसूत्र के रचनाकार है जो हिन्दुओं के छः दर्शनों में से एक है। भारतीय साहित्य में पतञ्जलि के लिखे हुए ३ मुख्य ग्रन्थ मिलते हैः योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ। कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति ने लिखे; अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियाँ हैं। पतञ्जलि ...
संत रविदास का जन्म सन् 1388 (इनका जन्म कुछ विद्वान 1398 में हुआ भी बताते हैं) को बनारस में हुआ था। रैदास कबीर के समकालीन हैं। रैदास की ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। मध्ययुगीन साधकों में रैदास का विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह रैदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों ...
साईंबाबा जन्म: १८३५ , मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८ जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर थे जिन्हें उनक121 े भक्तों द्वारा संत कहा जाता है। उनके सत्य नाम, जन्म, पता और माता पिता के सन्दर्भ में कोई सूचना उपलब्द्ध नहीं है। जब उन्हें उनके पूर्व जीवन के सन्दर्भ में पुछा जाता था तो टाल-मटोल ...
अंगद देव या गुरू अंगद देव सिखो के एक गुरू थे। गुरू अंगद देव महाराज जी का सृजनात्मक व्यक्तित्व था। उनमें ऐसी अध्यात्मिक क्रियाशीलता थी जिससे पहले वे एक सच्चे सिख बनें और फिर एक महान गुरु। गुरू अंगद साहिब जी (भाई लहना जी) का जन्म हरीके नामक गांव में, जो कि फिरोजपुर, पंजाब में आता है, वैसाख वदी १, ...
स्वामी रामदेव जो ज्यादातर बाबा रामदेव के नाम से भी जाने जाते है, उनका जन्म हरियाणा राज्य के महेंद्रगढ़ जिले के अलीपुर में 1965 को हुआ था. रामदेव एक भारतीय, हिंदु स्वामी और प्रसिद्द योगा के लिए जाने जाते है. उनके योग शिबिर में उनके हजारो अनुयायियों की उपस्थिति देखी जाती है. रामदेव बाबा “दिव्य योगा मंदिर संस्थान” के संस्थापक ...
संत ज्ञानेश्वर अर्थात महाराष्ट्र का एक अनमोल रत्न ! महाराष्ट्रकेसांस्कृतिक जीवनके, पारमार्थिक क्षेत्रके ‘न भूतो न भविष्यति’ऐसा बेजोड व्यवितमत्व एवं अलौकिक चरित्र अर्थात संतज्ञानेश्वर! गत लगभग ७२५ वर्षांसे महाराष्ट्रकी सभी पीढीयोंके,समाजके सभी स्तरके लोगोने जिस व्यक्तिमत्वको अपनेमनमंदिरमे एक अटल श्रद्धास्थान के रूपमें रखा है; तथा जोश्रद्धास्थान आगामी असंख्य पीढियोंतक स्थायीरूपसे अटल एवंउच्चस्थान पर रहनेवाला है; ऐसा एकमेवाद्वितीयव्यवितमत्वअर्थात संत ज्ञानेश्वर ! ...
समर्थ स्वामी रामदास का जन्म रामनवमी 1608 में गोदातट के निकट ग्राम जांब (जि. जालना) में हुआ। पिता सूर्याजीपंत ठोसर ग्राम कुलकर्णी (राजस्व अधिकारी) थे, माता का नाम राणूबाई था। कुल में 21 पीढ़ी से सूर्योपासना परंपरा थी। कुटुंब में दो पुत्र थे- ज्येष्ठ गंगाधर व कनिष्ठ नारायण (समर्थ रामदास)। जब आठ वर्ष के नारायण को एकांत में सचिंत देख ...
तुकाराम का जन्म पुणे जिले के अंतर्गत देहू नामक ग्राम में शके 1520; सन् 1598 में हुआ। इनकी जन्मतिथि के संबंध में विद्वानों में मतभेद है तथा सभी दृष्टियों से विचार करने पर शके 1520 में जन्म होना ही मान्य प्रतीत होता है। पूर्व के आठवें पुरुष विश्वंभर बाबा से इनके कुल में विट्ठल की उपासना बराबर चली आ रही ...
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