लियो टॉलस्टॉय जीवनी - Biography of Leo Tolstoy in Hindi Jivani Published By : Jivani.org लेव तालस्तोय उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्मानित लेखकों में से एक हैं। उनका जन्म रूस के एक संपन्न परिवार में हुआ था। उन्होंने रूसी सेना में भर्ती होकर क्रीमियाई युद्ध (1855) में भाग लिया, लेकिन अगले ही वर्ष सेना छोड़ दी। लेखन के प्रति उनकी रुचि सेना में भर्ती होने से पहले ही जाग चुकी थी। उनके उपन्यास युद्ध और शान्ति (1865-69) तथा आन्ना करेनिना (1875-77) साहित्यिक जगत में क्लासिक रचनाएँ मानी जाती है। धन-दौलत व साहित्यिक प्रतिभा के बावजूद तालस्तोय मन की शांति के लिए तरसते रहे। अंततः 1890 में उन्होंने अपनी धन-संपत्ति त्याग दी। अपने परिवार को छोड़कर वे ईश्वर व गरीबों की सेवा करने हेतु निकल पड़े। उनके स्वास्थ्य ने अधिक दिनों तक उनका साथ नहीं दिया। लियो टॉलस्टॉय (Leo Tolstoy) उन्नीसवीं सदी के सर्वाधिक सम्म्मानित लेखकों में से एक हैं. उनका जन्म 9 सितंबर 1828 को रूस के एक संपन्न परिवार हुआ. उनका जन्म मास्को से लगभग 100 मील दक्षिण में स्थित रियासत Yasnaya Polyana में हुआ था. इनके माता-पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था. अतः लालन-पालन इनकी चाची कात्याना ने किया. उच्चवर्गीय ताल्लुकदारों की भांति इनकी शिक्षा-दिक्षा के लिए सुदक्ष विद्वान नियुक्त थे. घुडसवारी, शिकार, नाच-गान, ताश के खेल आदि विधाओं और कलाओं की शिक्षा इन्हे बचपन से ही मिल चुकी थी. सन 1844 में लियो टॉलस्टॉय कजान विश्वविद्यालय में दाखिल हुए और सन 1847 तक उन्होंने पूर्वीं भाषाओं और विधि संहिताओं का अध्ययन किया. रियासत के बंटवारे का प्रश्न उपस्थित हो जाने के कारण स्नातक हुए बिना ही इन्हें विश्वविद्यालय छोड देना पडा. रियासत में आकर इन्होंने अपने कृषक असामियों की दशा में सुधार करने के प्रयत्न किये. सन 1851 में लियो टॉलस्टॉय कुछ समय के लिए सेना में भी प्रविष्ट हुए थे. उनकी नियुक्ति कॉकेशस पर्वतीय कबीलों से होने वाली दीर्घकालीन लडाई में हुई, जहां अवकाश का समय वे लिखने-पढने में लगाते रहे. यहीं पर उन्हें अपनी प्रथम रचना ‘चाईल्डहुड सन’ 1852 में लिखी, जो एलटी के नाम दि कंटपोरेरी नामक पत्र में प्रकाशित हुई. आध्यात्मिक जीवन मनुष्य की शान्ति के लिए है, ईश्वर के नजदीक जाने के लिए है, किन्तु चर्च जैसे धार्मिक केन्द्रों में जाकर उसे कुछ ऐसा अनुभव नहीं होता था । उसने रूसी भाषा में अनेक कहानियां लिखी थीं, जिससे उसे काफी यश, प्रसिद्धि एवं समृद्धि मिली थीं । उसका पारिवारिक जीवन पत्नी व बच्चों से भरपूर था । सभी दृष्टि से सम्पन्न होने के बाद भी उसके मन में अपने जीवन तथा ईश्वर की सत्ता के विषय में प्रश्न उठा करते थे, जैसे-मेरे जीने का क्या अर्थ है? सब लोगों का अस्तित्व क्या है? भीतर की अच्छाई और बुराई का अनुभव कैसे होता है? मृत्यु क्या है? कैसा जीवन जीना चाहिए? यह जानने के लिए वह चर्च के कट्टरपंथी धर्माचारियों के पास गया । उसे मानसिक शान्ति नहीं मिली । वह धर्म और दर्शन के गहरे जंगल में उलझता ही चला गया । टॉल्सटाय ने सूर्य, पृथ्वी और ग्रहों की उत्पत्ति कैसे हुई? मनुष्य और उसका जीवन वास्तव में है क्या? परमाणुओं से रचे इस संसार की गति क्या है? वह इसका उत्तर जानने जहां भी गया, उसका समाधान नहीं हो पाया । टॉल्सटाय ने जो भी साहित्य लिखा था, वह इन धार्मिक प्रश्नों के आगे दब कर रह गया था । साहित्य से हट जाने के कारण उसे मैक्सिम गोर्की जैसे साहित्यकारों के प्रश्नों का जवाब भी देना पड़ा । विचार एवं दर्शन उनकी धर्मभवना बड़ी उदार और व्यापक थी। तत्कालीन ईसाई धर्म के प्रति उनकी स्पष्टत: विरोधी भावना थी। अपने विचारों से वे एक प्रकार के सर्वदेववादी प्रतीत होते हैं। मृत्यु को वे शरीर की अंतिम ओर अवश्यंभावी परिणति मानते थे। मनुष्य को वे शरीर की अंतिम और अवश्यंभावी परिणति मानते थे। मनुष्य के संपर्क में आनेवाली प्रत्येक वस्तु को उपयोगिता के मानदंड से आँकना वे उचित समझते थे और इसी कारण जीवन की सोद्देश्यता के प्रति वे सर्वदा जिज्ञासु बने रहे। निरुद्देश्य, विचारहीन ओर आत्मकेंद्रित जीवन को वे एक प्रकार का पाप मानते थे; यहाँ तक कि संभोग को वे केवल संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से ही विहित मानते थे। मनोवैज्ञानिक रचनाओं में दोस्तोव्स्की ही तॉलस्ताय के समकक्ष ठहरते हैं। गाल्स्वर्दी, टामस मान, जूल्स रोम्याँ आदि महान लेखकों पर तॉलस्तॉय का उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है। परवर्ती रूसी लेखकों को भी तॉलस्तॉय ने यथेष्ट प्रभावित किया है। Leo Tolstoy 1844 से 1875 : 1844 में लियो टॉलस्टॉय कजान विश्वविद्यालय में दाखिल हुए. 1847 तक उन्होंने पूर्वी भाषाओं और विधि संहिताओं का अध्ययन किया. 1847 में ही रियासत के बंटवारे के चक्कर में स्नातक की पढाई पूर्ण किये बिना ही इनको विश्वविद्यालय छोड़ना पड़ा. 1847-51 रियासत में कृषकों की दशा में सुधार के प्रयत्न किये. 1851 में लियो टॉलस्टॉय सेना में भर्ती हो गये. उनकी नियुक्ति कॉकेशस पर्वतीय इलाकों में कबीलों से चलने वाली लम्बी लड़ाई में हुई, वहां खाली समय का उपयोग लिखने-पढ़ने में करते थे. 1852 में ‘चाईल्डहुड सन’ की रचना की, जो एलटी के नाम से ‘The Contemporary’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई. 1854 में लियो टॉलस्टॉय को डेनयुग के मोर्चे पर भेजा गया. वहां से अपनी बदली उन्होंने सेबास्तोकोल में करावा ली; जो क्रिमीयन युद्ध का सबसे तगड़ा मोर्चा था, यहाँ उन्हें युद्ध और युद्ध के संचालकों को निकट से देखने का पर्याप्त अवसर मिला. इस मोर्चे पर वे अंत तक रहे. 1855 में उन्होंने पिट्सबर्ग की यात्रा की वहां के साहित्यकारों ने इनका बड़ा सम्मान किया. 1855-56 में ‘सेबास्तोकोल स्केचेज’ की रचना की. 1857 में इन्होंने पश्चिमी युरोप के विभिन्न देशों की यात्रा की. 1857-61 के दौरान इन्होंने अलग-अलग चरणों में पश्चिमी युरोप के विभिन्न देशों की यात्रा की. इसी यात्रा 1861 में यक्ष्मा से पीड़ित उनके बड़े भाई की मृत्यु हो गयी. यात्रा से लौटकर उन्होंने अपने गांव ‘Yasnaya Polyana’ में कृषकों के बच्चों के लिए एक स्कूल खोला, जो बहुत सफल रहा. स्कूल की ओर से गांव के ही नाम पर Yasnaya Polyana नामक एक पत्रिका भी निकलती थी. 1862 में लियो टॉलस्टॉय का विवाह ‘साफिया बेहज’ नामक उच्चवर्गीय संभ्रान्त महिला से हुआ. 1863-69 में ‘War and Peace’ की रचना की. 1873-76 में ‘Anna Karenina’ की रचना की. इन दोनों रचनाओं में लियो टॉलस्टॉय विश्व विख्यात साहित्यिकार बन गये. 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