बन्दा सिंह बहादुर जीवनी - Biography of Banda Singh Bahadur in Hindi Jivani Published By : Jivani.org बन्दा बहादुर (जन्म- 16 अक्टूबर, 1670, राजौरी; मृत्यु- 16 जून, 1716, दिल्ली) प्रसिद्ध सिक्ख सैनिक और राजनीतिक नेता थे। वे भारत के मुग़ल शासकों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ने वाले पहले सिक्ख सैन्य प्रमुख थे, जिन्होंने सिक्खों के राज्य का अस्थायी विस्तार भी किया। उन्होंने मुग़लों के अजेय होने के भ्रम को तोड़ा, छोटे साहबज़ादों की शहादत का बदला लिया और गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा संकल्पित प्रभुसत्तासम्पन्न लोक राज्य की राजधानी लोहगढ़ में ख़ालसा राज की नींव रखी। प्रसिद्ध सिक्ख सैनिक और राजनितिक नेता बन्दा सिंह बहादुर (Banda Singh Bahadur) का जन्म 1670 ईस्वी में कश्मीर के पूंछ जिले के राजौरी क्षेत्र में रक राजपूत परिवार में हुआ था | उसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था | 15 वर्ष की उम्र में वह एक वैरागी शिष्य बना और उसका नाम माधोदास हो गया | कुछ समय तक पंचवटी (नासिक) में रहने के बाद दक्षिण की ओर चला गया और उसने आश्रम की स्थापना की | 1708 ईस्वी में सिक्खों के दसवे गुरु गोविन्द सिंह ने इस आश्रम को देखा | गुरु गोविन्द सिंह ने माधोदास को सिक्ख धर्म में दीक्षित किया और उसका नाम बन्दा सिंह (Banda Singh Bahadur) रख दिया | गुरु गोविन्द सिंह जी के सात और नौ वर्ष के बच्चो की जब सरहिंद के फौजदार वजीर खां ने क्रूरता से हत्या कर डाली तो बन्दा सिंह पर इसकी बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुयी | उसने वजीर खा से बदला लेना अपना मुख्य कर्तव्य मान लिया | उसने पंजाब आकर बड़ी संख्या में सिक्खों को संघठित किया और सरहिंद पर कब्जा करके वजीर खा को मार डाला | बन्दा सिंह (Banda Singh Bahadur) ने यमुना और सतलज के प्रदेश को अपने अधिकार में लेकर लोहगढ़ का मजबूत किला बनवाया और सिक्ख राज्य की स्थापना की | खालसा के नाम से शासन करते हुए उसने गुरुओ के नाम से सिक्के चलवाए |बन्दा का राज्य थोड़े दिन चला था कि बहादुरशाह प्रथम (1707-12) ने आक्रमण करके लोहगढ़ पर कब्जा कर लिया | उसकी मृत्यु तक बन्दा और उसके साथी अज्ञातवास में रहे | बाद में उन्होंने फिर अपना किला जीत लिया था | किन्तु 1715 में मुगल सेना ने उस स्थान को घेर लिया जहा बन्दा और उसके साथी थे | गुरु गोबिन्द सिंह से प्रेरणा 3 सितंबर 1708 ई. को नान्देड में सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोबिन्द सिंह ने इस आश्रम मे, और उन्हें सिक्ख बनाकर उसका नाम बन्दा सिंह बहादुर रख दिया। पंजाब और बाक़ी अन्य राज्यो के हिन्दुओं के प्रति दारुण यातना झेल रहे तथा गुरु गोबिन्द सिंह के सात और नौ वर्ष के उन महान बच्चों की सरहिंद के नवाब वज़ीर ख़ान के द्ववारा निमम हत्या का प्रतिशोद लेने के लिए रवाना किया। गुरु गोबिन्द सिंह के आदेश से ही वे पंजाब आये और सिक्खों के सहयोग से मुग़ल अधिकारियों को पराजित करने में सफल हुए। मई, 1710 में उन्होंने सरहिंद को जीत लिया और सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उन्होंने ख़ालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये। राज्य-स्थापना हेतु आत्मबलिदान बन्दा सिंह ने अपने राज्य के एक बड़े भाग पर फिर से अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया। 1715 ई. के प्रारम्भ में बादशाह फ़र्रुख़सियर की शाही फ़ौज ने अब्दुल समद ख़ाँ के नेतृत्व में उन्हें गुरुदासपुर ज़िले के धारीवाल क्षेत्र के निकट गुरुदास नंगल गाँव में कई मास तक घेरे रखा। खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन्होंने 7 दिसम्बर को आत्मसमर्पण कर दिया। फ़रवरी 1716 को 794 सिक्खों के साथ वह दिल्ली लाये गए जहाँ 5 मार्च से 13 मार्च तक प्रति दिन 100 की संख्या में सिक्खों को फाँसी दी गयी। 16 जून को बादशाह फ़र्रुख़सियर के आदेश से बन्दा सिंह तथा उनके मुख्य सैन्य-अधिकारियों के शरीर काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये गये। मुग़लों से सामना बन्दा बहादुर ने 1706 ई. में मुग़लों पर हमला करके बहुत बड़े क्षेत्र पर क़ब्ज़ा कर लिया। इसके उपरान्त बन्दा ने लोहगढ़ को फिर से अपने अधिकार में कर लिया और सरहिन्द के सूबे में लूटपाट आरम्भ कर दी। दक्कन क्षेत्र में उनके द्वारा लूटपाट और क़त्लेआम से मुग़लों को उन पर पूरी ताकत से हमला करना पड़ा। किन्तु 1715 ई. में मुग़लों ने गुरदासपुर के क़िले पर घेरा डाल दिया। बन्दा बहादुर उस समय उसी क़िले में थे। कई माह की घेराबन्दी के बाद खाद्य सामग्री के अभाव के कारण उन लोगों को आत्म समर्पण करने के लिए बाध्य होना पड़ा। मुग़लों ने क़िले पर अधिकार करने के साथ ही बन्दा तथा उनके अनेक साथियों को बन्दी बना लिया। सरहिंद पर कब्ज़ा मई १७१० ईस्वी में सरहिंद का मशहूर युद्ध छप्पर चिरी क्षेत्र में लड़ा गया। इस युद्ध में बाज सिंह जी बंदा बहादुर जी की सेना में दाहिने भाग के प्रमुख थे। सरदार बाज सिंह जी ने नवाब वज़ीर खान से सीधा मुकाबला किया और एक बरछे के वार से ही उनके घोड़े को मार गिराया तथा वज़ीर खान को बंदी बनाया। नवाब जिसने गुरु गोविन्द सिंह के परिवार पर जुल्म ढाए थे उसे सूली पर लटका दिया।इस युद्ध में गुरु गोविन्दसिंह जी को शस्त्र विद्या देने वाले बज्जर सिंह राठौर जी भी बुजुर्ग होने के बावजूद वीरता से लड़ते हुए शहीद हुए। सरहिंद की सुबेदारी सिख राजपूत बाज सिंह पवार को दी गयी,युद्ध जीतने के बाद , सरदार बाज सिंह परमार ने सरहिंद पर 5 साल राज किया। बन्दा बहादुर ने सतलुज नदी के दक्षिण में सिक्ख राज्य की स्थापना की। उसने खालसा के नाम से शासन भी किया और गुरुओं के नाम के सिक्के चलवाये। बंदा सिंह ने पंजाब हरियाणा के एक बड़े भाग पर अधिकार कर लिया और इसे उत्तर-पूर्व तथा पहाड़ी क्षेत्रों की ओर लाहौर और अमृतसर की सीमा तक विस्तृत किया। बंदा सिंह ने हरियाणा के मुस्लिम राजपूतो(रांघड)का दमन किया और उनके जबर्दस्त आतंक से जाटों को निजात दिलाई। यहाँ मुस्लिम राजपूत जमीदार जाटों को कौला पूजन जैसी घिनोनी प्रथा का पालन करने पर मजबूर करते थे और हरियाणा के कलानौर जैसे कई हिस्सों में आजादी के पहले तक ये घिनोनी प्रथा कायम रही। मान-सम्मान दिल्ली के मशहूर बारापुला एलिवेटिड रोड का नाम बदलकर अब बंदा बहादुर के नाम पर रखा गया है। अब बारापुला फ्लाईओवर का नाम 'बाबा बंदा बहादुर सेतु' हो गया है। दरअसल बाबा बंदा सिंह बहादुर शहीद हुए थे महरौली के कुतुबमीनार के पास, लेकिन जहाँ उनका अंतिम संस्कार हुआ, उस जगह पर अब ये पुल बना हुआ है। ( 20 ) 42 Votes have rated this Naukri. 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