शिवपूजन सहाय जीवनी - Biography of Acharya Shivpujan Sahay in Hindi Jivani Published By : Jivani.org शिवपूजन सहाय (जन्म- 9 अगस्त 1893, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 21 जनवरी 1963, पटना) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार थे। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६० में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। इनके लिखे हुए प्रारम्भिक लेख 'लक्ष्मी', 'मनोरंजन' तथा 'पाटलीपुत्र' आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित होते थे। शिवपूजन सहाय ने 1934 ई. में 'लहेरियासराय' (दरभंगा) जाकर मासिक पत्र 'बालक' का सम्पादन किया। स्वतंत्रता के बाद शिवपूजन सहाय बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के संचालक तथा बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रकाशित 'साहित्य' नामक शोध-समीक्षाप्रधान त्रैमासिक पत्र के सम्पादक थे। शिवपूजन सहाय का जन्म सन् 1893 में गाँव उनवाँस, शिला भोजपुर (बिहार) में हुआ। उनके बचपन का नाम भोलानाथ था। दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने बनारस की अदालत में नकलनवीस की नौकरी की। बाद में वे हिंदी के अध्यापक बन गए। असहयोग आंदोलन के प्रभाव से उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्रा दे दिया। शिवपूजन सहाय अपने समय के लेखकों में बहुत लोकप्रिय और सम्मानित व्यक्ति थे। उन्होंने जागरण, हिमालय, माधुरी, बालक आदि कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया। इसके साथ ही वे हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिका मतवाला के संपादक-मंडल में थे। सन् 1963 में उनका देहांत हो गया। वे मुख्यतः गद्य के लेखक थे। देहाती दुनिया, ग्राम सुधर, वे दिन वे लोग, स्मृतिशेष आदि उनकी दर्जन भर गद्य-कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं। शिवपूजन रचनावली के चार खंडों में उनकी संपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हैं। उनकी रचनाओं में लोकजीवन और लोकसंस्कृति के प्रसंग सहज ही मिल जाते हैं। करियर (1 9 03) 1 9 21 में आरा (1 9 03) 1 9 21 में अपनी प्रारंभिक शिक्षा और हिंदी भाषा के शिक्षक के रूप में एक छोटी सी अवधि के बाद, कोलकाता गए और 1 9 23 में मतवाला के संपादक के रूप में शामिल हुए। 1 9 24 में उन्होंने माधुरी के संपादकीय विभाग में शामिल होने के लिए लखनऊ चले गए। जहां उन्होंने प्रसिद्ध हिंदी लेखक मुंशी प्रेमचंद के साथ काम किया और अपने रंगभूमि और कुछ अन्य कहानियों का संपादन किया। 1925 में, वह कलकत्ता लौटे और अल्पकालीन पत्रिकाओं जैसे समनवे, मौजी, गोलमाल, उपन्यास तरंग को संपादित करने में कामयाब रहे। अंत में, सहायक ने फ्रीलांस एडिटर के रूप में काम करने के लिए वाराणसी (के- i) में स्थानांतरित किया। 1 9 31 में एक छोटी अवधि के लिए, वह गंगा को संपादित करने के लिए भागलपुर के पास सुल्तानगंज गए। हालांकि, वे 1 9 32 में वाराणसी लौटे, जहां उन्हें जगतारन को संपादित करने के लिए कमीशन किया गया, जो जयशंकर प्रसाद और दोस्तों के उनके सर्किल द्वारा पखवाड़े एक साहित्यिक पखवाड़े। सहाय ने एक बार फिर प्रेमचंद के साथ काम किया। वह भी नागरी Pracharini सभा के एक प्रमुख सदस्य और वाराणसी में इसी तरह के साहित्यिक हलकों में बन गए 1935 में, वह लाहारीया सराय (दरभंगा) के लिए बालाक और आचार्य राममोचन सरन के स्वामित्व वाले पुस्टक भंडार के अन्य प्रकाशनों के संपादक के रूप में काम करने गए। 1 9 3 9 में, उन्होंने हिंदी भाषा के प्रोफेसर के रूप में राजेंद्र कॉलेज, छपरा में शामिल हो गए। लेखन कार्य शिवपूजन सहाय की लिखी हुई पुस्तकें विभिन्न विषयों से सम्बद्ध हैं तथा उनकी विधाएँ भी भिन्न-भिन्न हैं। 'बिहार का बिहार' बिहार प्रान्त का भौगोलिक एवं ऐतिहासिक वर्णन प्रस्तुत करती है। 'विभूति' में कहानियाँ संकलित हैं। 'देहाती दुनियाँ' (1926 ई.) प्रयोगात्मक चरित्र प्रधान औपन्यासिक कृति है। इसकी पहली पाण्डुलिपि लखनऊ के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में नष्ट हो गयी थी। इसका शिवपूजन सहाय जी को बहुत दु:ख था। उन्होंने दुबारा वही पुस्तक फिर लिखकर प्रकाशित करायी, किन्तु उससे शिवपूजन सहाय को पूरा संतोष नहीं हुआ। शिवपूजन सहाय कहा करते थे कि- "पहले की लिखी हुई चीज़ कुछ और ही थी।" 'ग्राम सुधार' तथा 'अन्नपूर्णा के मन्दिर में' नामक दो पुस्तकें ग्रामोद्धारसम्बन्धी लेखों के संग्रह हैं। इनके अतिरिक्त 'दो पड़ी' एक हास्यरसात्मक कृति है, 'माँ के सपूत' बालोपयोगी तथा 'अर्जुन' और 'भीष्म' नामक दो पुस्तकें महाभारत के दो पात्रों की जीवनी के रूप में लिखी गयी हैं। शिवपूजन सहाय ने अनेक पुस्तकों का सम्पादन भी किया, जिनमें 'राजेन्द्र अभिनन्दन ग्रन्थ' विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। 'बिहार राष्ट्रभाषा परिषद', (पटना) ने इनकी विभिन्न रचनाओं को अब तक चार खण्डों में 'शिवपूजन रचनावली' के नाम से प्रकाशित किया है। विशिष्ट स्थान शिवपूजन सहाय का हिन्दी के गद्य साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है। उनकी भाषा बड़ी सहज थी। इन्होंने उर्दू के शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया है और प्रचलित मुहावरों के सन्तुलित उपयोग द्वारा लोकरुचि का स्पर्श करने की चेष्टा की है। शिवपूजन सहाय ने कहीं-कहीं अलंकार प्रधान अनुप्रास बहुल भाषा का भी व्यवहार किया है और गद्य में पद्य की सी छटा उत्पन्न करने की चेष्टा की है। भाषा के इस पद्यात्मक स्वरूप के बावज़ूद शिवपूजन सहाय के गद्य लेखन में गाम्भीर्य का अभाव नहीं है। शिवपूजन सहाय की शैली ओज-गुण सम्पन्न है और यत्र-तत्र उसमें वक्तृत्व कला की विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं। कृतियाँ कथा एवं उपन्यास वे दिन वे लोग - 1963 कहानी का प्लॉट - 1965 मेरा जीवन - 1985 स्मृतिशेष - 1994 हिन्दी भाषा और साहित्य - 1996 ग्राम सुधार - 2007 देहाती दुनिया - 1926 विभूति - 1935 माता का आँचल सम्पादन कार्य[संपादित करें] द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ - 1933 जयन्ती स्मारक ग्रन्थ - 1942 अनुग्रह अभिनन्दन ग्रन्थ - 1946 राजेन्द्र अभिननदन ग्रन्थ - 1950 आत्मकथा रंगभूमि समन्वय मौजी गोलमाल जागरण बालक हिमालय हिन्दी साहित्य और बिहार माधुरी ( 20 ) 69 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3