शचींद्रनाथ सान्याल जीवनी - Biography of Sachindra Nath Sanyal in Hindi Jivani Published By : Jivani.org शचींद्रनाथ सान्याल (जन्म 1893, वाराणसी में - मृत्यु 1942, गोरखपुर में) क्वींस कालेज (बनारस) में अपने अध्ययनकाल में उन्होंने काशी के प्रथम क्रांतिकारी दल का गठन 1908 में किया। 1913 में फ्रेंच बस्ती चंदननगर में सुविख्यात क्रांतिकारी रासविहारी बोस से उनकी मुलाकात हुई। कुछ ही दिनों में काशी केंद्र का चंदननगर दल में विलय हो गया ओर रासबिहारी काशी आकर रहने लगे। क्रमश: काशी उत्तर भारत में क्रांति का केंद्र बन गई। 1914 में प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर सिक्खों के दल ब्रिटिश शासन समाप्त करने के लिए अमरीका और कनाडा से स्वदेश प्रत्यावर्तन करने लगे। रासबिहारी को वे पंजाब ले जाना चाहते थे। उन्होंने शचींद्र को सिक्खों से संपर्क करने, स्थिति से परिचित होने और प्रारंभिक संगठन करने के लिए लुधियाना भेजा। कई बार लाहौर, लुधियाना आदि होकर शचींद्र काशी लौटे और रासबिहारी लाहौर गए। लाहौर के सिक्ख रेजिमेंटों ने 21 फ़रवरी 1915 को विद्रोह शुरू करने का निश्चय कर लिया। काशी के एक सिक्ख रेजिमेंट ने भी विद्रोह शुरू होने पर साथ देने का वादा किया। योजना विफल हुई, बहुतों को फाँसी पर चढ़ना पड़ा और चारों ओर घर पकड़ शुरू हो गई। रासबिहारी काशी लौटे। नई योजना बनने लगी। तत्कालीन होम मेंबर सर रेजिनाल्ड क्रेडक की हत्या के आयोजन के लिए शचींद्र को दिल्ली भेजा गया। यह कार्य भी असफल रहा। रासबिहारी को जापान भेजना तय हुआ। 12 मई 1915 को गिरजा बाबू और शचींद्र ने उन्हें कलकत्ते के बंदरगाह पर छोड़ा। दो तीन महीने बाद काशी लौटने पर शचींद्र गिरफ्तार कर लिए गए। लाहौर षड्यंत्र मामले की शाखा के रूप में बनारस पूरक षड्यंत्र केस चला और शचींद्र को आजन्म कालेपानी की सजा मिली क्रांतिकारी जीवन शचीन्द्रनाथ का शुरुआती जीवन देश की राष्ट्रवादी आंदोलनों की परिस्थितियों में बीता। 1905 में "बंगाल विभाजन" के बाद खड़ी हुई ब्रिटिश साम्राज्यवाद विरोधी लहर ने उस समय के बच्चों और नवयुवकों को राष्ट्रवाद की शिक्षा व प्रेरणा देने का महान् कार्य किया। शचीन्द्रनाथ सान्याल और उनके पूरे परिवार पर इसका प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वरूप ही 'चापेकर' बन्धुओं की तरह 'सान्याल बन्धु' भी साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवादी धारा के साथ दृढ़ता के साथ खड़े रहे। शचीन्द्रनाथ के पिता की मृत्यु 1908 में हो गयी। इस समय उनकी आयु मात्र पन्द्रह साल थी। इसके वावजूद शचीन्द्रनाथ न केवल देश की स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध होकर स्वयं आगे बढ़ते रहे अपितु पिता के समान ही अपने तीनों भाइयों को भी इसी मार्ग पर ले चलने में सफल रहे। 'काले पानी' की सज़ा के दौरान अपने क्रांतिकारी जीवन और समकालीन क्रान्तिकारियों के जीवन एवं गतिविधियों पर लिखी अपनी पुस्तक "बंदी जीवन" की भूमिका में शचीन्द्रनाथ ने स्वयं लिखा है कि- "जब मैं बालक ही था, तभी मैंने संकल्प कर लिया था कि भारतवर्ष को स्वाधीन किया जाना है और इसके लिए मुझे सामरिक जीवन व्यतीत करना है"। इसी उद्देश्य को अपनाकर शचीन्द्रनाथ वैचारिक एवं व्यहारिक जीवन में निरंतर आगे बढ़ते रहे। बाद में सच्चिंद्रनाथ सान्याल का जीवन बाद में वह फिर से ब्रिटिश-क्रांतिकारी और क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गया, सान्याल को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया और एक बार फिर कैद किया गया। इसके अलावा वाराणसी में स्वतंत्रता सेनानी के पैतृक परिवार के घर को भी मज़बूत कर दिया गया था। सच्चिंद्रनाथ सान्याल उन कुछ क्रांतिकारियों में से एक थे जिन्हें पोर्ट ब्लेयर में लगातार दो बार सेलुलर जेल भेजा गया था। अपने समय के दौरान, सच्चिंद्रनाथ सान्याल को टीबी से संक्रमित किया गया था और उसे गोरखपुर जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था। 7 फरवरी 1 9 42 को गोरखपुर जेल, उत्तर प्रदेश में उनकी मृत्यु हो गई थी। 1 9 31 में क्रांतिकारी भगत सिंह की पहली प्रामाणिक आत्मकथा प्रकाशित की, लेकिन उनके भाई जतिन्द्र नाथ सान्याल ने 1 9 31 में भारत की ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया। संजीव सान्याल, एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और अर्थशास्त्री, सच्चिंद्रनाथ सान्याल के भव्य भाई हैं। निधन वर्ष 1937-1938 में कांग्रेस मंत्रीमंडल ने जब राजनीतिक क़ैदियों को रिहा किया तो उसमे शचीन्द्रनाथ भी रिहा हो गये। लेकिन उन्हें घर पर नजरबंद कर दिया गया। कठिन परिश्रम, कारावास और फिर चिन्ताओं से वे क्षय रोग से ग्रस्त हो गये। सन 1942 में भारत का यह महान् क्रांतिकारी जर्जर शरीर के साथ चिर निद्रा में सो गया। ( 20 ) 2 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 4