राम जेठमलानी जीवनी - Biography of Ram Jethmalani in Hindi Jivani Published By : Jivani.org राम जेठमलानी का जन्म 14 सितम्बर 1923 को ब्रिटिश भारत के शिकारपुर शहर में जो आजकल पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त में है, भूलचन्द गुरुमुखदास जेठमलानी व उनकी पत्नी पार्वती भूलचन्द के यहाँ हुआ था। सिन्धी प्रथानुसार पुत्र के साथ पिता का नाम भी आता है अत: उनका पूरा नाम रामभूलचन्द जेठमलानी था परन्तु चूँकि उनके बचपन का नाम राम था अत: आगे चलकर वे राम जेठमलानी के नाम से ही मशहूर हो गये। स्कूली शिक्षा के दौरान दो-दो क्लास एक साल में पास करने के कारण उन्होंने 13 साल की उम्र में मैट्रिक का इम्तिहान पास कर लिया और 17 साल की उम्र में ही एल०एल०बी० की डिग्री हासिल कर ली थी। उस समय वकालत की प्रैक्टिस करने के लिये 21 साल की उम्र जरूरी थी मगर जेठमलानी के लिये एक विशेष प्रस्ताव पास करके 18 साल की उम्र में प्रैक्टिस करने की इजाजत दी गयी। बाद में उन्होंने एस०सी०साहनी लॉ कॉलेज कराची एल०एल०एम० की डिग्री प्राप्त की। 18 साल से कुछ ही अधिक उम्र में उनकी शादी पारम्परिक हिन्दू पद्धति से दुर्गा नाम की एक कन्या से कर दी गयी। 1947 में भारत-पाकिस्तान के बँटवारे से कुछ ही समय पूर्व उन्होंने रत्ना साहनी नाम की एक महिला वकील से दूसरा विवाह कर लिया। जेठमलानी के परिवार में उनकी दोनों पत्नियों से कुल चार बच्चे हैं-रानी, शोभा और महेश, तीन दुर्गा से तथा एक जनक, रत्ना से। करियर राम जेठमलानी ने अपने करियर का प्रारंभ सिंध में एक प्रोफेसर के तौर पर की। इसके पश्चात उन्होंने अपने मित्र ए.के. ब्रोही (बाद में पाकिस्तान के क़ानून मंत्री बने) के साथ मिलकर करांची में एक लॉ फर्म की स्थापना की। सन 1948 में विभाजन के बाद जब करांची में दंगे भड़के तब ब्रोही ने ही उन्हें पाकिस्तान छोड़ भारत जाने की सलाह दी। सन 1953 में उन्होंने मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में अध्यापन कार्य प्रारंभ कर दिया। यहाँ वे स्नातक और स्नातकोत्तर स्थर के छात्रों को पढ़ाते थे। उन्होंने अमेरिका के डेट्रॉइट में स्थित वायने स्टेट यूनिवर्सिटी में कम्पेरेटिव लॉ और इंटरनेशनल लॉ भी पढ़ाया। सन 1959 में वे के.एम. नानावटी vs महाराष्ट्र राज्य के चर्चित मुकदमे के दौरान चर्चा में आये। इस मुक़दमे में उनके साथ जस्टिस यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ (बाद में भारतीय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने) भी थे। 1960 के दशक में वे कई ‘तस्करों’ के बचाव में अदालत में खड़े दिखाई दिए जिसके बाद उन्हें ‘तस्करों का वकील’ कहा जाने लगा पर उन्होंने आलोचना की परवाह नहीं करते हुए कहा कि वे तो सिर्फ एक ‘वकील’ का फ़र्ज़ निभा रहे हैं। वे चार बार ‘बार कौंसिल ऑफ़ इंडिया’ का अध्यक्ष रह चुके हैं। सन 1996 में वे ‘इंटरनेशनल बार कौंसिल’ के भी सदस्य रहे। सन 2003 से वे पुणे के सिम्बायोसिस लॉ स्कूल में ‘प्रोफेसर एमेरिटस’ हैं। राजनीति उन्होंने उल्हासनगर से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते हुए शिवसेना और भारतीय जनसंघ दोनों को समर्थन दिया, लेकिन उन्होंने चुनाव हार गए। 1 9 75 के आपातकालीन अवधि के दौरान, 1 9 77 में, वह भारत के बार एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। उन्होंने भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की भारी आलोचना की। उसके खिलाफ केरल से एक गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। यह बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा रोक दिया गया था, जब नैनो पालखीवाला के नेतृत्व में 300 से अधिक वकीलों ने उनके लिए दर्शन दिया। हालांकि हाबैंस कॉर्पस के फैसले के कारण रहने का रास्ता रद्द कर दिया गया जबलपुर वी। शिव कांत शुक्ला और राम जेठमलानी के अतिरिक्त जिलाधिकारी ने आपातकाल के खिलाफ अभियान चलाया, जो कनाडा में खुद को निर्वासित कर दिया। आपातकाल उठाए जाने के 10 महीने बाद वह वापस लौट आया। कनाडा में जबकि, उनकी उम्मीदवारी बंबई उत्तर-पश्चिम निर्वाचन क्षेत्र से दर्ज की गई थी। उन्होंने चुनाव जीता और 1 9 8 9 के आम चुनावों में सीट बरकरार रखी, लेकिन 1985 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुनील दत्त से हार गए। 1 9 77 में आपातकाल के बाद आम चुनाव में उन्होंने लोकसभा चुनाव में कानून मंत्री एचआर गोखले को बॉम्बे से निकाल दिया। और इसलिए एक सांसद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया। हालांकि उन्होंने कानून मंत्री खुद नहीं बनाया क्योंकि मोरारजी देसाई ने अपनी जीवन शैली को अस्वीकार कर दिया था। राज्यसभा के सदस्य बने। 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे कानून, न्याय और कंपनी कार्य राज्यमंत्री बने। इसी वर्ष वे अंतरराष्ट्रीय बार एसोसिएशन के सदस्य भी चुने गए। 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के दूसरे कार्यकाल में शहरी कार्य तथा रोजगार के कैबिनेट मंत्री बनाए गए, हालांकि इसके कुछ दिनों बाद ही वे फिर से कानून, न्याय और कंपनी कार्यमंत्री बने। उस समय भारत के मुख्य न्यायाधीश आदर्श सेन आनंद तथा भारत के अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के मतभेद के चलते प्रधानमंत्री ने जेठमलानी से इस्तीफा मांग लिया। इसके बाद वे गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी के ज़ोर देने पर उनके कैबिनेट में शामिल हो गए। 2004 में उन्होंने लखनऊ ससंदीय सीट से अटल बिहारी वाजयेपी के खिलाफ चुनाव लड़ा, मगर हार गए। इसके बार भाजपा ने 2010 में राजस्थान से जेठमलानी को राज्यसभा के लिए टिकट दिया, जहां से उन्होंने जीत दर्ज की। इसके बाद वे कार्मिक संबंधी, लोक शिकायत, विधि और न्याय समिति के सदस्य बने। 2010 में जेठमलानी ने चीनी उच्चायोग के सामने चीन की खिंचाई करते हुए, उसे भारत और पाकिस्तान के बीच मतभेद को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार बताया। मई 2013 में भाजपा ने उन्हें पार्टी के खिलाफ जाकर बयान देने के कारण 6 सालों के लिए पार्टी से निकाल दिया। ( 10 ) 1 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 5