पुल्लेला गोपीचंद जीवनी - Biography of Pullela Gopichand in Hindi Jivani Published By : Jivani.org पुल्लेला गोपीचंद का जन्म पुल्लेला सुभाष चन्द्र और सुब्बरावामा के यहां 16 नवम्बर 1973 को आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के नगन्दला में हुआ। शुरू में गोपीचंद क्रिकेट खेलने में अधिक रूचि रखते थे, लेकिन बाद में उनके बड़े भाई राजशेखर ने उन्हें बैडमिन्टन खेलने के लिए प्रेरित किया।उन्होंने सेंट पॉल स्कूल में अध्ययन किया और जब वे केवल 10 वर्ष के थे, तभी बैडमिन्टन के खेल में वे इतने कुशल हो गए की उनके चर्चे स्कूल में होने लगे। गोपीचंद जब 1986 में 13 वर्ष के थे तभी उन्हें स्नायु टूटने की समस्या को झेलना पड़ा. उसी साल उन्होंने इंटर स्कूल प्रतियोगिता में सिंगल्स और डबल्स के खिताब जीते। चोट से विचलित हुए बिना वे जल्दी ही वापस लौटे और आंध्र प्रदेश राज्य की जूनियर बैडमिन्टन प्रतियोगिता के फाइनल राउंड में पहुंच गए। वर्ष 1988 तक, जब उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, गोपीचंद बैडमिन्टन के क्षेत्र में अपने आप को स्थापित कर चुके थे। उन्होंने ए. वी. कॉलेज, हैदराबाद में प्रवेश लिया और लोक प्रशासन में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वह वर्ष 1990 और 1991 में भारतीय संयुक्त विश्वविद्यालयों की बैडमिन्टन टीम के कप्तान थे। गोपी ने अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण एस. एम. आरिफ से प्राप्त किया, इसके बाद प्रकाश पादुकोण ने उन्हें बीपीएल प्रकाश पादुकोण अकादमी में शामिल कर लिया। गोपी ने एसएआई बैंगलौर में गांगुली प्रसाद से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। गोपीचंद ने 5 जून 2002 को अपनी साथी ओलंपियन बैडमिंटन खिलाड़ी पीवीलक्ष्मी से विवाह कर लिया। लक्ष्मी भी गोपीचंद के अपने राज्य आंध्र प्रदेश से ही हैं। खेल जीवन पुलेला गोपीचंद ने 1991 से देश के लिए खेलना आरम्भ किया जब उनका चुनाव मलेशिया के विरुद्ध खेलने के लिए किया गया। उसके पश्चात् तीन बार (1998-2000) 'थामस कप' में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और अनेक बार विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा लिया है। उसने अनेक टूर्नामेंट में विजय हासिल कर भारत को गौरवांवित किया है। उसने 1996 में विजयवाड़ा के सार्क टूर्नामेंट में तथा 1997 में कोलम्बो में स्वर्ण पदक प्राप्त किए। कामनवेल्थ खेलों में कड़े मुक़ाबलों के बीच रजत व कांस्य पदक भारत को दिलाए। 1997 में दिल्ली के 'ग्रैंड प्रिक्स' मुक़ाबलों में उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा हुई जब उसने एक से एक अच्छे खिलाड़ियों को हराते हुए फाइनल में प्रवेश किया। यद्यपि फाइनल में वह हार गया। वर्ष 2000 के सिडनी ओलंपिक में बैडमिंटन के लिए भारतीय खिलाड़ियों में केवल पुलेला गोपीचंद का ही नाम था। प्रकाश पादुकोने के रिटायर होने के पश्चात् भारत में कोई उत्तम बैडमिंटन खिलाड़ी बचा ही नहीं था, तब पुलेला का आगमन हुआ जिसमें असीम संभावनाएं दिखाई दीं। अतः प्रकाश पादुकोने के बाद आगे बढ़ कर चमकने वाला बैंडमिंटन खिलाड़ी पुलेला गोपीचंद ही है। वह प्रतिभावान होने के साथ-साथ देखने में सुन्दर व आकर्षण भी है। वर्ष 2000 में गोपीचंद थामस कप के फाइनल में पहुँचा था तो यूँ लगा था कि भारत खेलों में आगे बढ़ने लगा है। फिर जब गोपीचंद ने आल इंग्लैंड खिताब 2001 में जीता तब तो यूँ लगने लगा कि मानो हमें चाँद तक पहुँचने की सीढ़ी मिल गई हो। तब हमारे 6 खिलाड़ी विश्व के टॉप 100 खिलाड़ियों में शामिल हो गए थे लेकिन अब केवल 3 भारतीय खिलाड़ी ही उन टाप 100 खिलाड़ियों में हैं। 2001 में गोपीचंद विश्व की रैंकिंग में नं. 4 खिलाड़ी बन गया था। गोपीचंद के चलते सिंधु और साइना ने छुआ कामयाबी का शिखर सिंधु और साइना की कामयाबी के पीछे सबसे ज्यादा योगदान गोपीचंद का रहा है. गोपीचंद ने द्रोणाचार्य बनकर अपने शिष्यों को 'अर्जुन' की तरह बनाया और पदक जिताया. जब सिंधु रियो ओलिंपिक के फाइनल में पहुंची तब उसके पिता पीवी रम्मना का कहना था कि सिर्फ गोपीचंद की वजह से सिंधु इस मुकाम तक पहुंच पाई हैं. कामयाबी के जिस शिखर पर गोपीचंद खुद नहीं पहुंच पाए, उस स्तर पर अपने शिष्यों को पहुंचाया. सिर्फ एक गुरु नहीं बल्कि एक दोस्त की तरह भी उनका साथ दिया. एक पिता की तरह उनके के लिए क्या सही है या गलत है, समझाया. एक इंटरव्यू के दौरान गोपीचंद की पत्नी लक्ष्मी ने बताया था कि गोपीचंद कभी-कभी देर रात अपनी टेनिस अकादमी पहुंच जाते थे, यह देखने के लिए कि उनके शिष्य सही सलामत है या नहीं. गोपीचंद ने जब अपनी टेनिस अकादमी शुरू की थी, तब उनका मुख्य मक़सद ओलंपिक में अपने शिष्यों को पदक जिताना था. अकादमी खोलने के लिए गिरवी रख दिया था अपना घर गोपीचंद ने जब अपना अकादमी शुरू की थी, तब कहा जा रहा था कि यह सिस्टम उन्हें सफल होने नहीं देगा, लेकिन गोपीचंद अपने दम पर अच्छे कोच साबित हुए. कड़ी मेहनत और लगन से अपने आपको कोच के रूप में शीर्ष पर पहुंचाया. अपनी अकादमी के लिए गोपीचंद को काफी संघर्ष करना पड़ा. आंध्रप्रदेश सरकार ने गोपीचंद को अकादमी बनाने के लिए ज़मीन तो दे दी थी लेकिन प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए गोपीचंद के पास पैसे नहीं थे. पुरस्कार पुलेला गोपीचंद ने निरंतर प्रगति करते हुए 1998 में के. के बिरला फाउंडेशन पुरस्कार प्राप्त किया। वर्ष 2000 में उसे आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा सम्मानित किया गया, उसे 'दशक का खिलाड़ी' पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2001 में उसे 'राजीव गाँधी खेल रत्न' पुरस्कार प्रदान किया गया। पुलेला गोपीचंद इंडियन आयल कारपोरेशन के सेल्स विभाग में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत है। वह अपना खेल बेहतर बनाने के लिए वर्ष में तीन महीने जर्मन क्लब के लिए खेलते हैं। अपने दस वर्षों के खेल जीवन में उन्होंने अनेक विश्व स्तर के खिलाड़ियों को हराया है जिनमें ओलंपिक चैंपियन एलेन बूडी कुसूमा तथा लार्सेन शामिल हैं। ( 13 ) 6 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 4