पी ए संगमा जीवनी - Biography of P. A. Sangma in Hindi Jivani Published By : Jivani.org पी ए संगमा का जन्म 1 सितंबर 1947 को पश्चिम गारो हिल्स, मेघालय के चपाथी ग्राम में हुआ था। शिलांग से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद पी.ए. संगमा ने असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय से अंतर्राष्ट्रीय संबंध में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने एल.एल.बी. की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। वर्ष 1973 में पी.ए. संगमा प्रदेश युवा कांग्रेस समिति के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। कुछ ही समय बाद वह इस समिति के महासचिव नियुक्त हुए। वर्ष 1975 से 1980 तक पी.ए. संगमा प्रदेश कांग्रेस समिति के महासचिव रहे। वर्ष 1977 के लोकसभा चुनावों में पी.ए. संगमा तुरा निर्वाचन क्षेत्र से जीत दर्ज करने के बाद पहली बार सांसद बने। चौदहवीं लोकसभा चुनावों तक वह इस पद पर लगातार जीतते रहे। हालांकि नौवीं लोकसभा में वह जीत दर्ज करने में असफल रहे थे। वर्ष 1980-1988 तक पी.ए. संगमा केन्द्रीय सरकार के अंतर्गत विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे। वर्ष 1988-1991 तक वे मेघालय के मुख्यमंत्री भी रहे। वर्ष 1999 में कांग्रेस से निष्कासित होने के बाद शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर पी.ए. संगमा ने नेशनल कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। शरद पवार के भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी से नजदीकी बढ़ जाने के कारण पी.ए. संगमा ने अपनी पार्टी का ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी में विलय कर नेशनलिस्ट तृणमूल कांग्रेस की स्थापना की। 10 अक्टूबर 2005 को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के सदस्य के तौर पर लोकसभा पद से इस्तीफा देने के बाद पी.ए. संगमा फरवरी 2006 में नेशनल कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर संसद पहुंचे। 2008 के मेघालय विधानसभा चुनावों में भाग लेने के लिए उन्होंने चौदहवीं लोकसभा से इस्तीफा दे दिया। वर्तमान में पी.ए संगमा एन.सी.पी. के महासचिव पद पर कार्यरत हैं। राजनीतिक करियर : संगमा 1996 से 1998 तक लोकसभा के स्पीकर रहे और 1988 से 1990 तक मेघालय के मुख्यमंत्री भी रहे। पीए संगमा ने नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को शुरू करने में सहयोग दिया था। वे आठ बार लोकसभा के सदस्य बने। पी ए संगमा, ममता बैनर्जी की पार्टी एआईटीएमसी/ टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) के सदस्य भी रहे। उन्होंने नेशनल पीपुल्स पार्टी की नींव रखी, जिसका चिन्ह एक किताब था। 1973 में पीए संगमा, प्रदेश यूथ कांग्रेस के उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए थे। अगले वर्ष उन्हें मेघालय में ही महासचिव बना दिया गया था। वर्ष 1977 में, वे तुरा संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के सदस्य के तौर पर चुने गए थे। पीए संगमा को 20 मई 1999 को कांग्रेस से निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर सोनिया गांधी के विदेशी होने पर भी पार्टी प्रमुख बनने का विरोध किया था। टूटा राष्ट्रपति बनने का सपना : उन्होंने शरद पवार और तारिक अनवर के साथ मिलकर ही नेशनल कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की नींव रखी। बाद में शरद पवार की सोनिया गांधी से बढती नजदीकियों के चलते, संगमा पश्चिम बंगाल की उस समय की मुख्यमंत्री और टीएमसी की चीफ ममता बनर्जी के साथ हो गए। दोनों ने मिलकर नेशनलिस्ट त्रिनमूल कांग्रेस की स्थापना की।> संगमा के राष्ट्रपति पद की दावेदारी का समर्थन एआईएडीएमके, बीजेडी और बाद में बीजेपी ने भी किया था। उन्होंने वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के खिलाफ इस पद के लिए दावेदारी की थी। प्रणब मुखर्जी की जीत के साथ, संगमा का राष्ट्रपति बनने का सपना टूट गया। उनके दो बेटे और एक बेटी अगाथा संगमा हैं जो कि केन्द्र सरकार में राज्य मंत्री रह चुकी हैं। लोकसभा अध्यक्ष पी. ए. संगमा 1986 के आम चुनावों में तुरा संसदीय क्षेत्र से पांचवी बार लोक सभा के लिए निर्वाचित हुए थे। 23 मई, 1996 को सभी पार्टियों ने दलगत भावना से ऊपर उठते हुए उन्हें सर्वसम्मति से 11वीं लोक सभा का अध्यक्ष निर्वाचित किया था। भारत के 50 वर्षों के संसदीय इतिहास में वह ऐसे पहले सदस्य थे, जिन्होंने विपक्ष में रहते हुए अध्यक्ष का पद संभाला। नि:संदेह संगमा के पास क़ानूनी प्रशिक्षण, सांसद तथा मंत्री के रूप में लंबा अनुभव, निष्पक्षता के लिए नेकनामी, पारदर्शिता, शालीनता, बुद्धिमता तथा हाजिरजवाबी जैसे वे सभी गुण मौजूद थे, जो इस महिमामय पद के लिए आवश्यक होते हैं। अध्यक्ष पद संभालते ही उन्होंने जिस सूझबूझ और विश्वास से अपनी जिम्मेदारी निभायी थी, उससे ऐसा प्रतीत होता था कि वह इस कार्य में स्वभावतः निपुण थे। संसदीय सुधारों के लिए उनकी कार्यशैली अनूठी थी। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वाद-विवाद के उत्तेजनापूर्ण क्षणों के दौरान भी सदस्य नियमों का पालन करते रहें। उनके लिए संसदीय लोकतंत्र का अर्थ था- 'स्वतंत्र वाद-विवाद, निष्पक्ष विचार-विमर्श तथा स्वस्थ आलोचना।' अध्यक्ष के रूप में उन्हें यह सुनिश्चित करना था कि ये उद्देश्य पूरे हों। यद्यपि संगमा दो वर्ष से भी कम अवधि के लिए लोक सभा के अध्यक्ष रहे, फिर भी उन्होंने इस पद पर अपने व्यक्तित्व की अमिट छाप छोड़ी। उनका भोला-भाला चेहरा, उन्मुक्त हंसी, हाज़िर जवाबी, असीम उत्साह, त्रुटिहीन आचरण तथा सहज विवेक जैसी विशिष्टताओं ने उनका नाम घर-घर में लोकप्रिय बना दिया था और जिस असाधारण कुशलता से उन्होंने सभा की कार्यवाही संचालित की थी, उसके लिए देशभर में लोगों ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रचार माध्यमों ने भी उनके अध्यक्ष पद के कार्यकाल के दौरान किए गए कार्यों को खूब सराहा। ( 10 ) 2 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3