ज़ोहरा सहगल जीवनी - Biography of Zohra Sehgal in Hindi Jivani Published By : Jivani.org ज़ोहरा सहगल (२७ अप्रैल १९१२ – १० जुलाई २०१४) हिन्दी फ़िल्मों की एक अभिनेत्री थीं। ज़ोहरा सहगल का असली नाम साहिबज़ादी ज़ोहरा बेगम मुमताज़ उल्लाह खान था।उनका जन्म एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में हुआ था। महज सात वर्ष की आयु में मोतियाबिंद ने उनकी बायीं आँख की रौशनी छीन ली।उनका स्वभाव विद्रोही था। देहरादून में आयोजित मशहूर नृत्यांगना उदय शंकर के नृत्य ने उन्हें प्रेरणा दी। अलग-अलग संस्कृतियों और रीति-रिवाज़ों में उनकी बहुत रुचि थी। स्नातक होने के पश्चात वे उदय शंकर की नृत्य-मंडली में सम्मिलित हो गईं और जगह-जगह यात्रा की। अपनी इसी यात्रा के दौरान उन्होंने अपने से आठ वर्ष छोटे कामेश्वर सहगल से प्रेम-विवाह किया। कार्यक्षेत्र 1959 में अपने पति कामेश्वर के असमय निधन के बाद ज़ोहरा दिल्ली आ गई और नवस्थापित नाट्य अकादमी की निदेशक बन गई। 1962 में वे एक ड्रामा स्कॉलरशिप पर लंदन गई, जहां उनकी मुलाकात भारतीय मूल के भरतनाट्यम नर्तक रामगोपाल से हुई और उन्होंने चेलेसी स्थित उनके स्कूल में 1963 में उदयशंकर शैली के नृत्य सिखाना शुरू कर दिया। यहीं उन्हें 1964 में बीबीसी पर रूडयार्ड किपलिंग की कहानी में काम करने का मौका मिला। ब्रिटिश टेलीविजन पर यह उनकी पहली भूमिका थी। आगे चलकर पृथ्वी थिएटर से जुड़ीं, वहां चार सौ रुपए वेतन पर काम किया। रंगमंच से उनका जुड़ाव बना रहा और वह वामपंथी विचारधारा से प्रेरित रंगमंच ग्रुप इप्टा में शामिल हुईं। 1946 में ख़्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में इप्टा के पहले फ़िल्म प्रोडक्शन धरती के लाल और फिर इप्टा के सहयोग से बनी चेतन आनंद की फ़िल्म 'नीचा नगर' में उन्होंने काम किया। नीचा नगर पहली ऐसी फ़िल्म थी जिसे अंतरराष्ट्रीय कांस फ़िल्म समारोह में गोल्डन पाम पुरस्कार मिला। फ़िल्मों में काम करने के साथ उन्होंने गुरु दत्त की 'बाज़ी' (1951) राज कपूर की आवारा समेत कुछ हिन्दी फ़िल्मों के लिए नृत्य संयोजन भी किया। कुछ फ़िल्मों का कला निर्देशन और फिर निर्देशन भी उन्होंने किया। कमाल का तर्कशक्ति हैं ज़ोहरा के पास। खुद पर हंसने का हुनर भी आता है उन्हें। उनका एक कोट बहुत मशहूर है- तुम क्या अब मुझे इस तरह देखते हो जब में बूढ़ी और बदसूरत हो गई हूं, तब देखते जब मैं जवान और बदसूरत थी। ज़ोहरा की एक बहन उजरा बंटवारे के बाद पाकिस्तान चली गई थीं। भारत पर लौटें वह 1 99 0 के दशक के मध्य में भारत लौट आया और बर्दवान में कुछ महीनों तक जीवित रहा। उस समय उसने कई फिल्मों, नाटकों और टीवी श्रृंखला में काम किया था। उन्होंने 1 9 83 में अपने भाई रवि शंकर द्वारा आयोजित उदय शंकर की स्मारक में पहली बार कविताएं कीं, और जल्द ही इसे बड़े पैमाने पर ले लिया; वह विभिन्न अवसरों पर कविता करने के लिए आमंत्रित हो रही शुरू हुई। वह "पाकिस्तान के साथ एक शाम" के लिए छंदों का पाठ करने के लिए भी पाकिस्तान गए थे। पंजाबी और उर्दू का उसका उत्कर्ष प्रदर्शन एक आदर्श बन गया। मंच पर प्रदर्शन के बाद उसे अक्सर हफीज जुल्ंडरी के प्रसिद्ध नाज़म, अब से मेन जवान हुून का पाठ करने के लिए दर्शकों द्वारा अनुरोध किया गया था। 1 99 3 में, एक तेई नानी, पहली बार लाहौर में आयोजित हुई थी, जिसमें ज़ोरा और उसकी बहन उज्जा बट्ट अब पाकिस्तान में रह रही हैं। 2001 में यूसीएलए में अपनी अंग्रेजी संस्करण ए ग्रैनी ऑल सीज़न में एक प्रदर्शन आयोजित किया गया था। 1 99 6 में वह दादी की भूमिकाओं में हिंदी फिल्मों में बहुत सक्रिय थीं, जैसे कि दिल से, हम दिल दे चुके सनम जैसे उच्च बजट फिल्में , वीर जरा, सावरिया, चेनी कुम वह 90 वर्ष की थी, जब उसने 2002 में फिल्म- चालो इश्क लदाये की भूमिका निभाई थी, जहां वह फिल्म का मुख्य केंद्रीय चरित्र था और गोविंदा ने अपने पोते का किरदार निभाया था। इस फिल्म में इश्क लदाये ने एक बाइक की सवारी की थी और खलनायकों के साथ भी लड़ाई की थी। अमिताभ बच्चन और शाहरुख़ खान पसंदीदा कलाकार ज़ोहरा सहगल ने 'चीनी कम' फ़िल्म में अमिताभ बच्चन की माँ का किरदार निभाया था और शाहरुख़ खान के साथ 'वीर ज़ारा' और 'दिल से' काम किया था. ये दोनों कलाकार ज़ोहरा सहगल को बेहद पसंद थे. 'चीनी कम' की शूटिंग के वक़्त बेटी किरण उनके साथ यात्रा किया करती थीं क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ अकेले यात्रा करना ज़ोहरा सहगल के लिए मुश्किल हो गया था. किरण सहगल ने बताया की उन्हें शारीरिक रूप से खड़े होने में तकलीफ़ होती थी पर उन्हें अपने काम में बड़ा मज़ा आता था.लम्बे समय तक नृत्य के साथ जुडी ज़ोहरा सहगल और पति कामेश्वर नाथ सहगल ने बंटवारे के तनाव के कारण बॉम्बे (मुंबई) आने का फ़ैसला किया. 1945 में ज़ोहरा सहगल पृथ्वी थिएटर से जुड़ीं और क़रीबन 15 साल तक जुड़ी रहीं. पृथ्वीराज कपूर का वो बहुत आदर किया करती थीं और थिएटर में उन्हें अपना गुरु मानती थीं. क्रिकेट मैच की शौक़ीन ज़ोहरा सहगल फ़िल्में लगभग ना के बराबर देखती थीं, लेकिन क्रिकेट मैच वो बड़े चाव से देखा करती थीं. आँखें कमज़ोर होने के कारण बेटी किरण क्रिकेट के मैच के दौरान मैच का स्कोर लगातार ज़ोहरा सहगल को बताया करती थीं. हालांकि उनका कोई पसंदीदा खिलाड़ी नहीं था. ( 2 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0