मीना कुमारी जीवनी - Biography of Meena Kumari in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मीना कुमारी का असली नाम महजबीं बानो था और ये बंबई में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श पारसी रंगमंच के एक मँझे हुए कलाकार थे और उन्होंने "ईद का चाँद" फिल्म में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी माँ प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो), भी एक मशहूर नृत्यांगना और अदाकारा थी ।मीना कुमारी की बड़ी बहन खुर्शीद बानो भी फिल्म अभिनेत्री थीं जो आज़ादी के बाद पाकिस्तान चलीं गईं।कहा जाता है कि दरिद्रता से ग्रस्त उनके पिता अली बक़्श उन्हें पैदा होते ही अनाथाश्रम में छोड़ आए थे चूँकि वे उनके डाॅक्टर श्रीमान गड्रे को उनकी फ़ीस देने में असमर्थ थे।हालांकि अपने नवजात शिशु से दूर जाते-जाते पिता का दिल भर आया और तुरंत अनाथाश्रम की ओर चल पड़े।पास पहुंचे तो देखा कि नन्ही मीना के पूरे शरीर पर चीटियाँ काट रहीं थीं।अनाथाश्रम का दरवाज़ा बंद था, शायद अंदर सब सो गए थे।यह सब देख उस लाचार पिता की हिम्मत टूट गई,आँखों से आँसु बह निकले।झट से अपनी नन्हीं-सी जान को साफ़ किया और अपने दिल से लगा लिया।अली बक़्श अपनी चंद दिनों की बेटी को घर ले आए।समय के साथ-साथ शरीर के वो घाव तो ठीक हो गए किंतु मन में लगे बदकिस्मती के घावों ने अंतिम सांस तक मीना का साथ नहीं छोड़ा। महजबीं पहली बार 1939 में फिल्म निर्देशक विजय भट्ट की फिल्म फ़रज़न्द-ए-वतन में बेबी महज़बीं के रूप में नज़र आईं। 1940 की फिल्म "एक ही भूल" में विजय भट्ट ने इनका नाम बेबी महजबीं से बदल कर बेबी मीना कर दिया। 1946 में आई फिल्म बच्चों का खेल से बेबी मीना 14 वर्ष की आयु में मीना कुमारी बनीं । फ़िल्मी सफ़र वर्ष 1957 में प्रदर्शित फ़िल्म 'शारदा' में मीना कुमारी के अभिनय के नए आयाम दर्शकों को देखने को मिले। इस फ़िल्म में मीना कुमारी ने अभिनेता राजकपूर की प्रेयसी के अलावा उनकी सौतेली माँ की भूमिका भी निभाई। हालांकि उसी वर्ष फ़िल्म 'मदर इंडिया' के लिए फ़िल्म अभिनेत्री नर्गिस को सारे पुरस्कार दिए गए, लेकिन 'बॉम्बे जर्नलिस्ट एसोसिएशन' ने मीना कुमारी को उस वर्ष की सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए नामित किया। फ़िल्म पाकीज़ा कमाल अमरोही की फ़िल्म 'पाकीज़ा' के निर्माण में लगभग चौदह वर्ष लग गए। इस दौरान मीना कुमारी कमाल अमरोही से अलग हो चुकी थीं, फिर भी उन्होंने फ़िल्म की शूटिंग जारी रखी क्योंकि उनका मानना था कि 'पाकीज़ा' जैसी फ़िल्मों में काम करने का मौक़ा बार-बार नहीं मिलता। वर्ष 1972 में जब 'पाकीज़ा' प्रदर्शित हुई तो फ़िल्म में मीना कुमारी के अभिनय को देख दर्शक मुग्ध हो गए और यह फ़िल्म आज भी मीना कुमारी के जीवंत अभिनय के लिए याद की जाती है। सहनायक मीना कुमारी के सिनेमा कैरियर में उनकी जोड़ी फ़िल्म अभिनेता अशोक कुमार के साथ काफ़ी प्रसिद्ध रही। मीना कुमारी और अशोक कुमार की जोड़ी वाली फ़िल्मों में 'तमाशा', 'परिणीता', 'बादबान', 'बंदिश', 'भीगी रात', 'शतरंज', 'एक ही रास्ता', 'सवेरा', 'फरिश्ता', 'आरती', 'चित्रलेखा', 'बेनज़ीर', 'बहू बेग़म', 'जवाब' और 'पाकीज़ा' जैसी फ़िल्में शामिल हैं। हिन्दी फ़िल्म जगत् में 'ट्रेजेडी क्वीन' कही जानी वाली मीना कुमारी की जोड़ी 'ट्रेजेडी किंग' दिलीप कुमार के साथ भी काफ़ी पसंद की गई। मीना कुमारी और दिलीप कुमार की जोड़ी ने 'फुटपाथ', 'आज़ाद', 'कोहिनूर' और 'यहूदी' जैसी फ़िल्मों में एक साथ काम किया। मीनाकुमारी और धर्मेन्द्र बहुत से लोग आज इस बात को यक़ीन से कहते हैं कि धर्मेन्द्र ने अपना करियर बनाने के लिए मीनाकुमारी का इस्तेमाल लिया. उस समय मीनाकुमारी अपनी लोकप्रियता के शिखर पर थीं. शायद असल कहानी तो कभी बाहर आएगी नहीं लेकिन सच्चाई यह है कि धर्मेन्द्र के आगमन के २-३ सालों में कमाल अमरोही और मीनाकुमारी का अन्यथा प्रसन्न रहा दाम्पत्य गुलाटी कहा गया और हालत यहाँ तक आई कि १९५४ में कमाल ने ‘पाकीज़ा’ की शूटिंग तक बंद करवा दी. इसके बाद भी धर्मेन्द्र ने मीनाकुमारी से अपनी नजदीकियां कम नहीं कीं – उन्हें अपना करियर बनाना था. ‘काजल’ फ़िल्म की सफलता इस तथ्य को प्रमाणित करती है. नायक के रूप में धर्मेन्द्र की पहली सुपरहिट थी ‘फूल और पत्थर’- यह भी मीनाकुमारी की मेहरबानी थी क्योंकि धर्मेन्द्र की उपस्थिति के कारण ही मीनाकुमारी ने इस फ़िल्म में काम करने की सहमति दी थी. एक बार धर्मेन्द्र स्टार बन गए तो सारा कुछ बदल गया. अब धर्मेन्द्र दूसरे ठिकानों की तरफ निकल पड़े और मीनाकुमारी को अपने तिरस्कृत किये जाने का दुखद अहसास हुआ. यहीं से मीनाकुमारी के जीवन में शराब की घातक एंट्री हुई जो अंततः उनका जीवन लील गयी. लेकिन इन सारे सालों में मीनाकुमारी ने कमाल अमरोही को प्रेम करना बंद नहीं किया. इसी वजह से जब उन्हें अहसास हुआ कि ख़राब स्वास्थ्य के चलते अब उनका लम्बे समय तक जीना मुश्किल है, उन्होंने ‘पाकीज़ा’ की शूटिंग के लिए हामी भर दी. महजबीन को नहीं मिली किसी मोहब्बत महजबीन, जी हां...फिल्मी नाम से पहले यही नाम था मीना कुमारी का. मीना कुमारी की जिंदगी में कमाल अमरोही (जो उन्हें बचपन से जानते थे और जब वो 20 की हो गईं तब उनसे शादी की), धर्मेंद्र और गुलजार की बड़ी भूमिका थी. सवाल हो कि इनमें सबसे ज्यादा मीना कुमारी के आखिरी वक्त तक कौन करीब रहा तो मीना कुमारी को जानने वाले इसके जवाब में गुलजार का नाम लेंगे. वही गुलजार जिन्हें वो अपना सबसे कीमती सरमाया... अपनी डायरियां, वसीयत में सौंपकर गईं. ( 2 ) 4 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 2