फ़ख़रुद्दीन अली अहमद जीवनी - Biography of Fakhruddin Ali Ahmed in Hindi Jivani Published By : Jivani.org फ़ख़रुद्दीन अली अहमद भारत के पांचवे राष्ट्रपति थे। वे 24 अगस्त 1974 से लेकर 11 फरवरी 1977 तक राष्ट्रपति रहे. फ़ख़रुद्दीन अहमद के दादा खालिलुद्दिन अली अहमद असम के कचारीघाट (गोलाघाट के पास) से थे। अहमद का जन्म 13 मई 1905 को दिल्ली में हुआ। उनके पिता कर्नल ज़लनूर अली थे। उनकी मां दिल्ली के लोहारी के नवाब की बेटी थीं। अहमद को गोंडा जिल ले के सरकारी हाई-स्कूल और दिल्ली सरकारी हाई-स्कूल में शिक्षित किया गया। उच्च शिक्षा के लिए वे 1923 में इंग्लैंड गए, जहां उन्होंनें सेंट कैथरीन कॉलेज, कैम्ब्रिज में अध्ययन किया। 1928 में उन्होंने लाहौर उच्च न्यायालय में कानूनी अभ्यास आरंभ किया। 1925 में नेहरू से इंग्लैन्ड में मुलाकात के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 1974 में प्रधानमंत्री इन्दिरा गान्धी ने अहमद को राष्ट्रपति पद के लिए चुना और वे भारत के दूसरे मुस्लिम राष्ट्रपति बन गए। इन्दिरा गान्धी के कहने पर उन्होंने 1975 में अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल किया और आंतरिक आपातकाल की घोषणा कर दी. भारत के छठे राष्ट्रपति श्री फकरुद्दीन अली अहमद (Fakhruddin Ali Ahmed) का जन्म 13 मई 1905 को दिल्ली में हुआ था | यद्यपि परिवार की पुश्तैनी जायदाद असम में थी पर उनके पिता भारतीय चिकित्सा सेवा में “जनरल” के पद पर नियुक्त थे | वे बड़े अनुशासन प्रिय और “अंग्रेजियत” के भक्त थे | फखरूदीन (Fakhruddin Ali Ahmed) की आरम्भिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के गौंडा जिले में हुयी थी | पिता ने उन्हें इंग्लैंड भेजा जिससे I.C.S. बनकर आये | वहा इनका सम्पर्क जवाहरलाल नेहरु से हुआ और ये राजनीति की तरफ झुकने लगे | बीमारी के कारण I.C.S. की परीक्षा नही दे सके और कानून की डिग्री लेकर देश वापस आ गये | पिता इन्हें अंग्रेज सरकार के किसी ऊँचे पद पर नियुक्त करना चाहते थे पर इन्होने उसे स्वीकार न करके वकालत करना आरम्भ किया | बाद में अपनी पैतृक सम्पति की रक्षा के लिए असम जाने के बाद पहले कोलकाता और फिर गुवाहटी में वकालत की | 1931 में नेहरु जी और मौलाना अबुल कलाम आजाद की प्रेरणा से कांग्रेस में सम्मिलित हो गये | राजनैतिक सफर फखरुद्दीन अली अहमद भारत के एक ऐसे सफल राजनेता थे जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की स्थाई छाप भारतीय जनता के ऊपर छोड़ा, जो आजतक भरतीय जनता के लिए प्रेरणा का श्रोत बना हुआ है. इन्हें असम और भारत के महान सपूत के रूप में भी याद किया जाता है. अपने विचारों के माध्यम से इन्होने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना अमूल्य योगदान दिया था. इसके अलावा भारत के राष्ट्रपति के रूप में इन्होंने नि:स्वार्थ सेवा और नैतिक मूल्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए राष्ट्र के निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया. महात्मा गांधी और पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में इन्होंने एक लोकप्रिय नेता के रूप में देश का नेतृत्व भी किया. इंग्लैंड प्रवास के दौरान फखरुद्दीन अली अहमद की मुलाकात वर्ष 1925 में पं. जवाहर लाल नेहरू से हुई. नेहरू जी के प्रगतिशील विचारों से वे बेहद प्रभवित हुए और उन्हें अपना गुरु तथा मित्र मानने लगे एवं वर्ष 1930 से उनके साथ कार्य करने लगे. नेहरू जी के अनुरोध पर फखरुद्दीन अली अहमद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और सक्रिय रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. जबकि उनके सह-धर्मिओं ने उनको मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए राजी किया गया था. उन्होंने देश की आजादी के लिए वर्ष 1940 में सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रीय रूप से भाग लिया, जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जेल जाना पड़ा. इसके अलावा उन्हें वर्ष 1942 में 9 अगस्त को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के समर्थन में भाग लेने के आरोप में पुनः गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे अखिल भारतीय कांग्रेस समिति (एआईसीसी) की ऐतिहासिक मुंबई बैठक से वापस लौट रहे थे. इस प्रकार अप्रैल 1945 तक यानि लगभग साढ़े तीन वर्षों तक देश की सुरक्षा को उनसे खतरा बताकर उन्हें एक कैदी के रूप में जेल में रखा गया था. राष्ट्रपति पद: 1974 को भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया और 20 अगस्त 1974 को वे भारत के दुसरे मुस्लिम धर्म से नियुक्त किये गये राष्ट्रपति बने। उसी दिन मध्यरात्रि में इंदिरा गांधी के हुई मीटिंग में पेपर पर हस्ताक्षर कर उन्होंने आनी-बानी की घोषणा की थी। 1975 में भारत में आनी बानी के समय में राज्य के मुख्य लीडर के रूप में भी वे संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते थे। 1975 में सूडान की यात्रा पर गये भारतीय राजनयिकों के नाम से भी वे जाने जाते थे। 11 फरवरी 1977 को राष्ट्रपति कार्यालय में शांत (मृत्यु आना) होने वाले वे दुसरे भारतीय थे। कार्यालय में दैनिक नमाज की तैयारियाँ करते समय ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। उस समय उनकी उम्र 72 साल थी। सम्मान: 1975 में यूगोस्लाविया की यात्रा के समय कोसोवो में प्रिस्टीना यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि देकर सम्मानित किया था। उनकी नियुक्ती असाम फुटबॉल एसोसिएशन और असाम क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष के पद पर कयी बार की गयी थी। इसके साथ-साथ वे असाम स्पोर्ट कौंसिल के उपाध्यक्ष भी थे। अप्रैल 1967 में उनकी नियुक्ती ऑल इंडिया क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में की गयी थी। 1961 से वे दिल्ली गोल्फ क्लब और दिल्ली जिमखाना क्लब के सदस्य थे। उनके सम्मान में असाम के बारपेटा में एक मेडिकल कॉलेज, फखरुद्दीन अली अहमद मेडिकल कॉलेज के नाम से बनाया गया था। निधन - 1977 में हृदयगति रुक जाने से अहमद का कार्यालय में निधन हो गया। ( 10 ) 1 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 5