जाकिर नाइक जीवनी - Biography of Zakir Naik in Hindi Jivani Published By : Jivani.org जाकिर नाइक एक विवादित इस्लामी धर्मोपदेशक हैं जिन्हें कट्टरपंथी सलाफ़ी विचारधारा का हामी माना जाता है । जाकिर नायक इस्लामिक रिसर्च फांउडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। यह पीस टीवी चैनल, जो की कट्टरपंथी विचारधारा फैलाने के लिए विवादित रहा है, के भी संस्थापक हैं। कई इस्लामी प्रचारकों के विपरीत, इनके व्याख्यान बोलचाल की भाषा में हैं, यह अंग्रेजी में अपने व्याख्यान देते हैं न कि उर्दू या अरबी में, और यह परंपरागत पहनावे के बजाय एक सूट और टाई पहनते हैं। एक सार्वजनिक वक्ता बनने से पहले, इन्होंने एक मेडिकल चिकित्सक के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने इस्लाम और तुलनात्मक धर्म पर व्याख्यानों की बुकलेट संस्करणों को भी प्रकाशित किया है। हालांकि उन्होंने सार्वजानिक रूप से इस्लाम में सांप्रदायिकता को अस्वीकार किया है, कुछ लोगों के द्वारा इन्हें सलाफी विचारधारा के एक प्रचारक के रूप में माना जाता है,और, कुछ लोगों द्वारा, वहावी विचारधारा के एक कट्टरपंथी इस्लामी प्रचारक के रूप में जाकिर नाइक का जन्म भारत में महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ था। किशिनचंद चेलाराम कॉलेज से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और फिर टोपीवाला नेशनल कॉलेज और BYL नायर चैरिटेबल हॉस्पिटल से मेडिकल की पढाई पूरी की और मुंबई यूनिवर्सिटी से उन्होंने बैचलर ऑफ़ मेडिसिन और सर्जरी (MBBS) की डिग्री हासिल की। 1991 में उन्होंने दवा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया और तभी इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की भी स्थापना की। नाइक की पत्नी फरहत नाइक, इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन में महिला विभाग में काम करती है। 2006 में नाइक ने कहा था की वे इस्लामिक उपदेशक अहमद दीदत से 1987 में मिलने के बाद प्रेरित हुए थे। (नाइक को कई बार “दीदत प्लस” का लेबल दिया गया था, जिसे स्वयं दीदत ने उन्हें दिया था।) मुंबई ने नाइक ने इस्लामिक इंटरनेशनल स्कूल और यूनाइटेड इस्लामिक ऐड की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य गरीब और जरूरतमंद इस्लामिक युवको को शिष्यवृत्ति प्रदान करना था। इसके साथ-साथ वे iERA के बोर्ड ऑफ़ मेम्बर और सलाहकार भी थे। इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की वेबसाइट के अनुसार नाइक “पीस टिव्ही नेटवर्क के पीछे के विचार और प्रेरक शक्ति है”, नाइक का चैनल “मानवी जीवन की सच्चाई, न्याय, नैतिकता, सामंजस्य और बुद्धिमत्ता का प्रचार करता है।” ऐसा उनकी वेबसाइट में दिखाया गया है। 2012 में भारत सरकार ने पीस चैनल पर भी बंदी लगा दी थी, न्यू यॉर्क टाइम्स के अनुसार एक बेनाम भारतीय जर्नलिस्ट के हवाले से यह पता चला था की, मुंबई पुलिस ने पिछले कुछ सालो से उन्हें कांफ्रेंस आयोजित करने से वर्जित कर किया था और भारतीय सॅटॅलाइट प्रोवाइडर ने भी उनके चैनल पीस टिव्ही को टेलीविज़न पर प्रसारित करने से मना कर दिया था। शियाओं से विवाद जाकिर नायक की शिया मुफती से टी वी पर बहस सुनने से पता चलता है कि वो देवलबंद, जमाते इस्लामी, अहले हदीस आदि से फतवा मंगा चुके, उन फतवों में उन्हें यह जवाब दिया गया कि वो यजीद के लिए दुआओं के अल्फाज कह सकते हैं, किसी ने मुस्तहिब कहा है मना किसी ने नहीं किया, फतवों को देख कर नायक का कहना है कि वो आलिमों को कहना मानेंगे, जिन्होंने मना नहीं किया, उनका इस बातचीत में यह भी कहना था कि हदीस के मुताबिक जो उस जंग में शरीक हुआ वो जन्नती है, यजीद के बारे में गवाही है कि वो उस जंग में कमांडर थे, अर्थात हजूर की बशारत के मुताबिक जन्नती हुए, इस लिए नाम के साथ दुआओं के अलफाज के हकदार हैं, इमाम गजाली और बुखारी शरीफ की शरह लिखने वाले हाफिज असकलानी से भी उन्होंने बताया कि उनका कहना है कि यजीद मुसलमान था, यह भी कहा कि हम जब मुसलमानों के लिए दुआ करते हैं तो सबके साथ उसमें वो भी शरीक होते हैं, यह भी कहा कि वो हजरत हुसैन को पूरी इज्जत देते हैं जिसने उनका कतल किया उसको बुरा समझते हैं, लेकिन उस समय यजीद या उस समय की पूरी मुस्लिम फौज को बुरा कहना गलत मानते हैं साथ ही यह भी कहा कि हदीस के मुताबिक अगर हम किसी गलत आदमी के लिए दुआ करते हैं तो वो लगती नहीं और अगर सही आदमी को लानत भेजते हैं तो वो वापस आती है इस लिए लानत भेजने वालों को गोर करने की जरूरत है कि वो सही या गलत पर लानत भेज रहे हैं, उनका यह भी कहना था कि शिया हजरात मुझे बदनाम करने का कुछ बहाना ढूंडते रहते हैं जबकि वो शिया-सुन्नी इखतलाफी बातों से बचते रहते हैं कि अगर वो कुछ कहेंगे तो शिया हजरात को जवाब देना में मुश्किल होगी Islamic Research Foundation (IRF) पढ़ाई के बीच Zakir Naik 1987 में दक्षिण अफ्रीका में इस्लामिक उपदेशक शेख अहमद दीदात का भाषण सुना। दीदत के भाषण वे इतने प्रभावित हुए कि पढ़ाई पूरा होते के साथ डॉक्टरी छोड़, 1991 में इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना कर लोगों को इस्लाम का उपदेश देने लगे। इस संस्था का मुख्य उद्देश्य था, गैर मुस्लिम लोगों के बीच इस्लाम धर्म का सही मतलब बताना था। इसलिए वे दुनियाँ भर में घूम-घूम कर सभाएं करके गैर मुस्लिमों में इस्लाम पर भाषण देने लगे। जल्द ही चर्चित होने लगे। साल 1994 में दीदत ने भी नाइक को ‘दीदत प्लस’ के उपाधि से नवाजा। इससे उनके संगठन को दुनिया-भर से जकात (दान, लगभग 13.5 अरब रुपये प्रति माह) मिलने लगा। इसके अलावा मुंबई के मंझगांव में उनका इस्लामिक इंटरनेशल स्कूल भी चलता है। अब तक जाकिर ऑस्ट्रेलिया, वाल्स, यूके, कनाडा, मलेशिया सहित 30 देशों में 2000 से अधिक सभाएं कर चुके है। भाषणों के बदौलत Zakir Naik सऊदी राजघराने के वहाबी-सलाफ़ी गुट के करीब आए। सऊदी के किंग सलमान बिन अब्दुल अजीज ने 2015 में जाकिर को किंग फैजल इंटरनेशल प्राइज़ फॉर सर्विस ऑफ इस्लाम से नवाजा। इसके बाद वे पुश्तैनी घर से मझगांव के एक फ्लैट में शिफ्ट हो गए। उन्होंने 2006 में अपने लेक्चर टेलिकास्ट करने के लिए दुबई से पीस टीवी को शुरू किया। इस टीवी चैनल को 2008 से 2015 तक 80 करोड़ रुपये चंदे में मिले और इस चैनल को गैर अनुमति के भारत में प्रसारित किया जा रहा था। जिसके कारण इसे 2012 में बैन कर दिया गया। फिर भी इसके चोरी-छिपे टेलिकास्ट होने की खबरें आती रहती है। ( 20 ) 3 Votes have rated this Naukri. 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