भीकाजी कामा जीवनी - Biography of Bhikaji Kama in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मैडम भीकाजी रुस्तम कामा भारतीय मूल की फ्रांसीसी नागरिक थीं, जिन्होंने लंदन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में वातावरण बनाया। उनके द्वारा पेरिस से प्रकाशित ‘वंदेमातरम्’ पत्र प्रवासी भारतीयों में काफी लोकप्रिय हुआ। सन् 1909 में जर्मनी के स्टटगार्ट में हुई अंतरराष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम भीकाजी कामा ने कहा था—“भारत में ब्रिटिश शासन जारी रहना मानवता के नाम पर कलंक है। एक महान् देश भारत के हितों को इससे भारी क्षति पहुँच रही है।” लंदन में वे दादाभाई नौरोजी की निजी सचिव भी रहीं। भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था। उनमें लोगों की मदद और सेवा करने की भावना कूट−कूट कर भरी थी। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई थी। वर्ष 1902 में वह इसी सिलसिले में लंदन गईं और वहां भी उन्होंने भारतीय स्वाधीनता संघर्ष के लिए काम जारी रखा। भीकाजी ने वर्ष 1907 में अपने सहयोगी सरदारसिंह राणा की मदद से भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया था। भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय स्वतंत्रता के ध्वजभारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज को बुलंद किया था। उस सम्मेलन में उन्होंने भारत को अंग्रेजी शासन से मुक्त करने की अपील की थी। उनके तैयार किए गए झंडे से काफी मिलते−जुलते डिजायन को बाद में भारत के ध्वज के रूप में अपनाया गया। राणाजी और कामाजी द्वारा निर्मित यह भारत का प्रथम तिरंगा राष्ट्रध्वज आज भी गुजरात के भावनगर स्थित सरदारसिंह राणा के पौत्र और भाजपा नेता राजुभाई राणा ( राजेन्द्रसिंह राणा ) के घर सुरक्षित रखा गया है। उन्निसवी सदी के आखीर मे बम्बई शहर मे प्लेग के महामारी का प्रादुर्भाव हुवा था. इस भयानक संसर्गजन्य रोग से जब बहोत लोगों की जान जाणे लगी तभी अपने पर्वा किये बगैर रोगीओं के सेवा कार्य मे भिकाजी कामा इन्होंने खुद को झोक दिया. इसका परिणाम उनको भी ये रोग हो गया. सिर्फ भाग्य से वो बच गयी. आराम के लिये उनके परिजनो ने उन्हें 1902 मे युरोप भेजा. जर्मनी, स्कॉटलंड और फ्रान्स इन देशो मे एक एक साल रहकर 1905 मे मॅडम कामा लंडन आयी. तबीयत अच्छी होने के बाद मॅडम कामा इन्होंने दादाभाई नौरोजी इनके खास सचिव के रूप मे देड साल काम किया. उस वजह से वो अनेक देशभक्त और विव्दान व्यक्तिओं के संपर्क मे आयी. लंडन मे रहने के समय मे उन्होंने बहोत जगह प्रभावी भाषण किये. और बाद में वो स्वातंत्र्यवीर सावरकर, श्यामजी कृष्णा वर्मा इनके संपर्क मे आयी. सावरकर, मॅडम कामा और कुछ अन्य देशभक्तो ने मिलकर 1905 में अपने तिरंगा का प्रारूप पक्का किया. इस तिरंगे पर हरा, नारंगी और लाल ऐसे तीन रंगो की पट्टिया थी. सबसे उपर हरे रंग की पट्टी और उसपर दिखाया उमलता हुवा आठ पंखुडी का कमल ये तत्कालीन भारत मे के आठ प्रांता के जैसे प्रतिनिधित्व करने वाला था. बिचमे नारंगी पट्टी पर देवनागरी लिपी मे ‘वंदे मातरम्’ ये शब्द भारत माता का अभिवादन इस उददेश से झलक रहा था. निचे लाल पट्टी पर बाये साईड मे आधा चंद्रमा और दाये साईड मे उगते हुये सुरज का प्रतिबिंब था. लाल रंग शक्ती का, नारंगी रंग विजय का और हरा रंग साहस और उत्साह का जैसे ये तीन महत्त्वपूर्ण बाते दिखा रहे है. देश की आजादी के लिए कार्य : भीकाजी ने लन्दन, जर्मनी तथा अमेरिका का भ्रमण कर भारत की स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाया था। वे जर्मनी के स्टटगार्ट नगर में 22 अगस्त 1907 में हुई सातवीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में तिरंगा फहराने के लिए विख्यात हुईं। उन्होंने अपनी शिक्षा एलेक्जेंड्रा नेटिव गल्र्स संस्थान में प्राप्त की थी और वह शुरू से ही तीव्र बुद्धि वाली और संवेदनशील थी। वे हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी गतिविधियों में लगी रहती थी। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई। वर्ष 1906 में उन्होंने लन्दन में रहना शुरू किया जहां उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, हरदयाल और वीर सावरकर से हुई। लंदन में रहते हुए वह दादाभाई नवरोजी की निची सचिव भी थीं। दादाभाई नोरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ़ कॉमन्स का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियाई थे। जब वो हॉलैंड में थी, उस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी रचनाएं प्रकाशित करायी थी और उनको लोगों तक पहुंचाया भी। वे जब फ्रांस में थी तब ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी पर फ्रांस की सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया था। इसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जब्त कर ली और भीखाजी कामा के भारत आने पर रोक लगा दी। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की माता मानते थे, जबकि अंग्रेज उन्हें कुख्यात् महिला, खतरनाक क्रांतिकारी, अराजकतावादी क्रांतिकारी, ब्रिटिश विरोधी तथा असंगत कहते थे। वीर सावरकर और मैडम कामा : जनवरी 1910 के प्रथम सप्ताह में क्रांति के कार्य की भागदौड से सावरकर जी का स्वास्थ्य बिगड गया। विश्राम के लिए तथा स्थानपालट हेतु वे लंदन से पैरिस मैडम कामा के यहां आए। अब तक मैडम कामा उनकी दूसरी माँ ही बन गई थीं। इस असाधारण माँ ने 2 माह तक सावरकरजी की सेवा की। तब तक महाराष्ट्र के नासिक में अनंत कान्हेरे जी ने जैक्सन का वध किया था। इस घटना का संबंध सावरकर जी से हो सकता है, यह जानकर पूछताछ चालू हो गई। सावरकर जी ने ही संबंधित पिस्तौल हिंदुस्तान में भेजी थी। हिंदुस्तान एवं लंदन में अपने सहकारी संकट में होते हुए स्वयं फ्रांस में रहना उचित नहीं, यह जानकर सावरकर जी लंदन लौटने लगे। लंदन पहुंचते ही उन्हें बंदी बनाया जा सकता है, यह सोचकर मैडम कामा चिंतित हो उठीं। लंदन लौटने के विचारों से सावरकरजी को परावृत्त करने का उन्होंने प्रयत्न भी किया; परंतु सावरकरजी अपने विचारों पर अडीग रहे। 13 मार्च 1910 को मैडम कामा तथा लाला हरदयालजी सावरकरजी को छोड़ने आगगाडी स्थानक (रेलवे स्टेशन) पर आए। उस समय उन दोनों का मन बड़ा चिंताग्रस्त हो गया। विक्टोरिया स्थानक पर उतरते ही सावरकरजी को बंदी बना लिया गया और न्यायालय के आदेश अनुसार उन्हें हिंदुस्तान में भेजने का निर्णय हुआ। ( 15 ) 3 Votes have rated this Naukri. 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