वराहमिहिर जीवनी - Biography of Varahamihira in Hindi Jivani Published By : Jivani.org वराहमिहिर (वरःमिहिर) ईसा की पाँचवीं-छठी शताब्दी के भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ थे। वाराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकेण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। वरःमिहिर बचपन से ही अत्यन्त मेधावी और तेजस्वी थे। अपने पिता आदित्यदास से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान के शहंशाह नौशेरवाँ के आमन्त्रण पर जुन्दीशापुर नामक स्थान पर वेधशाला की स्थापना - उनके कार्यों की एक झलक देते हैं। वराहमिहिर (Varahamihira) का जन्म 505 ईस्वी में हुआ था | ब्रूहजातक में उन्होंने अपने पिता आदित्यदास का परिचय देते हुए लिखा है कि “मैंने कालपी नगर में सूर्य से वर प्राप्त कर अपने पिता आदित्यदास से ज्योतिषशास्त्र की शिक्षा प्राप्त की | ” इसके बाद वे उज्जयिनी जाकर रहने लगे | यही उन्होंने ब्रुह्जातक की रचना की | वो सूर्य के उपासक थे | वराहमिहिर (Varahamihira) ने लघुजातक ,विवाह-पटल ,ब्रुह्क्तसंहिता , योगयात्रा और पंचसिधान्तिका नामक ग्रंथो की ढ़कना की | वो विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक माने जाते है | वराहमिहिर (Varahamihira) भारतीय ज्योतिष साहित्य के निर्माता है | उन्होंने अपने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रन्थ से पांच सिद्धांतो की जानकारी दी है जिसमे भारतीय तथा पाश्चात्य ज्योतिष विज्ञान की जानकारी सम्मिलित है | उन्होंने अपनी बृहत्संहिता नामक ज्ञानकोष में तत्कालीन समय की संस्कृति तथा भौगोलिक स्थिति की जानकारी दी है | फलत ज्योतिष की जानकारी उनके ग्रंथो में अधिक है | जन्मकुंडली बनाने की विद्या को जिस होरोशास्त्र के नाम से जाना जाता है उनका बृहत्जातक ग्रन्थ इसी शास्त्र पर आधारित है | लघुजातक इसी ग्रन्थ का संक्षिप्त रूप है | योगयात्रा में यात्रा पर निकलते समय शुभ अशुभ आदि संबधी घटनाओं का वर्णन है | इन ग्रंथो में ज्ञान के साथ साथ अन्धविश्वास को भी काफी बल मिला | यदि अन्धविश्वास संबंधी बातो को दरकिनार कर दे तो इस ग्रन्थ की अच्छे बाते हमारे ज्ञान में सहायक होगी | पृथ्वी की अयन-चलन नाम की ख़ास गति के कारण ऋतुये होती है इसका ज्ञान कराया | गणित द्वारा की गयी नई गणनाओं के आधार पर पंचाग का निर्माण किया | वराहमिहिर के अनुसार “समय समय पर ज्योतिषीयो को पंचाग सुधार करते रहना चाहिए क्योंकि गढ़ नक्षत्रो तथा ऋतुओ की स्थिति में परिवर्तन होते रहते है ” | राजा चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के पुत्र की मृत्यु का दिन भी उन्होंने ज्योतिष के आधार पर उन्हें बताया था। उन्होंने यह भी बताया था कि उनके पुत्र की मृत्यु को उस दिन कोई नहीं टाल सकेगा उसे बनेला जंगली सूअर मारेगा। यह सुनकर राजा ने अपने पुत्र के प्राण रक्षा के काफी प्रयत्न किए, किन्तु वे उसकी मृत्यु का ना रोक सके। पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर राजा ने मिहिर को राज दरबार में आमंत्रित किया और कहा आप पूर्ण ज्योतिषज्ञ है, मुझे इसका पूर्ण विश्वास हो गया हैं। यह कह कर राजा ने उनके मगध राज्य का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘वराह चिन्ह’ देकर सम्मानित किया। इसके बाद ही मिहिर को वराह मिहिर कहा जाने लगा था। वाराहमिहिर ने आर्यभट्ट प्रथम द्वारा प्रतिपादित ज्या सारणी को और अधिक परिशुद्धत बनाया। उन्होंने शून्य एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया। वराहमिहिर ‘संख्या-सिद्धान्त’ नामक एक गणित ग्रन्थ के भी रचयिता हैं जिसके बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस ग्रन्थ के बारे में पूरी जानकारी नहीं है क्योंकि इसका एक छोटा अंश ही प्राप्त हो पाया है। प्राप्त ग्रन्थ के बारे में पुराविदों का कथन है कि इसमें उन्नत अंकगणित, त्रिकोणमिति के साथ-साथ कुछ अपेक्षाकृत सरल संकल्पनाओं का भी समावेश है। वराहमिहिर ने ही वर्तमान समय में पास्कल त्रिकोण (Pascal’s triangle) के नाम से प्रसिद्ध संख्याओं की खोज की। इनका उपयोग वे द्विपद गुणाकों (binomial coefficients) की गणना के लिये करते थे। वराहमिहिर का प्रकाशिकी में भी योगदान है। उन्होने कहा है कि परावर्तन कणों के प्रति-प्रकीर्णन (back-scattering) से होता है। उन्होने अपवर्तन की भी व्याख्या की है। वराहमिहिर की मृत्यु सन 587 में हुई थी। कृतियाँ 550 ई. के लगभग इन्होंने तीन महत्वपूर्ण पुस्तकें बृहज्जातक, बृहत्संहिता और पंचसिद्धांतिका, लिखीं। इन पुस्तकों में त्रिकोणमिति के महत्वपूर्ण सूत्र दिए हुए हैं, जो वराहमिहिर के त्रिकोणमिति ज्ञान के परिचायक हैं। पंचसिद्धांतिका में वराहमिहिर से पूर्व प्रचलित पाँच सिद्धांतों का वर्णन है। ये सिद्धांत हैं : पोलिशसिद्धांत, रोमकसिद्धांत, वसिष्ठसिद्धांत, सूर्यसिद्धांत तथा पितामहसिद्धांत। वराहमिहिर ने इन पूर्वप्रचलित सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें लिखकर अपनी ओर से 'बीज' नामक संस्कार का भी निर्देश किया है, जिससे इन सिद्धांतों द्वारा परिगणित ग्रह दृश्य हो सकें। इन्होंने फलित ज्योतिष के लघुजातक, बृहज्जातक तथा बृहत्संहिता नामक तीन ग्रंथ भी लिखे हैं। बृहत्संहिता में वास्तुविद्या, भवन-निर्माण-कला, वायुमंडल की प्रकृति, वृक्षायुर्वेद आदि विषय सम्मिलित हैं। अपनी पुस्तक के बारे में वराहमिहिर कहते है: ज्योतिष विद्या एक अथाह सागर है और हर कोई इसे आसानी से पार नहीं कर सकता। मेरी पुस्तक एक सुरक्षित नाव है, जो इसे पढ़ेगा वह उसे पार ले जायेगी। यह कोरी शेखी नहीं थी। इस पुस्तक को अब भी ग्रन्थरत्न समझा जाता है। कृतियों की सूची पंचसिद्धान्तिका, बृहज्जातकम्, लघुजातक, बृहत्संहिता टिकनिकयात्रा बृहद्यात्रा या महायात्रा योगयात्रा या स्वल्पयात्रा वृहत् विवाहपटल लघु विवाहपटल कुतूहलमंजरी दैवज्ञवल्लभ लग्नवाराहि मृत्यु इस महान् वैज्ञानिक की मृत्यु ईस्वी सन् 587 में हुई। वराह मिहिर की मृत्यु के बाद ज्योतिष गणितज्ञ ब्रह्म गुप्त ( ग्रंथ- ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, खण्ड खाद्य), लल्ल(लल्ल सिद्धांत), वराह मिहिर के पुत्र पृथुयशा (होराष्ट पंचाशिका) और चतुर्वेद पृथदक स्वामी, भट्टोत्पन्न, श्रीपति, ब्रह्मदेव आदि ने ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों पर टीका ग्रंथ लिखे। तथ्य गुप्त काल के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराहमिहिर है। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ 'वृहत्संहिता' तथा 'पञ्चसिद्धन्तिका' है। वृहत्संहिता में नक्षत्र-विद्या, वनस्पतिशास्त्रम्, प्राकृतिक इतिहास, भौतिक भूगोल जैसे विषयों पर वर्णन है। राय-चौधरी के अनुसार एरिआके वृहत्संहित में उल्लिखित अर्यक भी हो सकता है। ( 20 ) 36 Votes have rated this Naukri. 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