लक्ष्मी सहगल जीवनी – Biography of Lakshmi Sahgal in Hindi Jivani Published By : Jivani.org कप्तान लक्ष्मी सहगल भारत की अब तक की, सबसे सफल महिलाओं में से एक है। लक्ष्मी सहगल ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा स्थापित ‘आजाद हिंद फौज (आईएनए)’ के लिए अपने हाथों में गन थामी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक शेरनी की भांति लड़ीं। डॉक्टर लक्ष्मी सहगल का जन्म 1914 में एक परंपरावादी तमिल परिवार में हुआ और उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली, फिर वे सिंगापुर चली गईं। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी सेना ने सिंगापुर में ब्रिटिश सेना पर हमला किया तो लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज में शामिल हो गईं थीं। वे बचपन से ही राष्ट्रवादी आंदोलन से प्रभावित हो गई थीं और जब महात्मा गाँधी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आंदोलन छेड़ा तो लक्ष्मी सहगल ने उसमे हिस्सा लिया। वे 1943 में अस्थायी आज़ाद हिंद सरकार की कैबिनेट में पहली महिला सदस्य बनीं। एक डॉक्टर की हैसियत से वे सिंगापुर गईं थीं लेकिन 98 (1914-2012=98) वर्ष की उम्र में वे अब भी कानपुर के अपने घर में बीमारों का इलाज करती हैं। आज़ाद हिंद फ़ौज की रानी झाँसी रेजिमेंट में लक्ष्मी सहगल बहुत सक्रिय रहीं। बाद में उन्हें कर्नल का ओहदा दिया गया लेकिन लोगों ने उन्हें कैप्टन लक्ष्मी के रूप में ही याद रखा। दिसम्बर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड में वे अपने मेडिकल टीम के साथ पीडितो की सहायता के लिए भोपाल पहुची। 1984 में सिक्ख दंगो के समय कानपूर में शांति लाने का काम करने लगी और 1996 में बैंगलोर में मिस वर्ल्ड कॉम्पीटिशन के खिलाफ अभियान करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। 92 साल की उम्र में 2006 में भी वह कानपूर के अस्पताल में मरीजो की जाँच कर रही थी। 2002 में चार पार्टी – कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया, दी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी), क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक ने सहगल का नामनिर्देशन राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी किया। उस समय राष्ट्रपति पद के उम्मेदवार ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की वह एकमात्र विरोधी उम्मेदवार थे। शिक्षा 1938 में सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की स्त्री रोग और प्रसूति में डिप्लोमा स्वतंत्रता संग्राम में योगदान सिंगापुर में उन्होंने न केवल भारत से आए अप्रवासी मज़दूरों के लिए निशुल्क चिकित्सालय खोला बल्कि 'भारत स्वतंत्रता संघ' की सक्रिय सदस्या भी बनीं। वर्ष 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब अंग्रेज़ों ने सिंगापुर को जापानियों को समर्पित कर दिया तब उन्होंने घायल युद्धबन्दियों के लिये काफ़ी काम किया। उसी समय ब्रिटिश सेना के बहुत से भारतीय सैनिकों के मन में अपने देश की स्वतंत्रता के लिए काम करने का विचार उठ रहा था। नेताजी से मुलाकात विदेश में मज़दूरों की हालत और उनके ऊपर हो रहे जुल्मों को देखकर उनका दिल भर आया। उन्होंने निश्चय किया कि वह अपने देश की आजादी के लिए कुछ करेंगी। लक्ष्मी के दिल में आजादी की अलख जग चुकी थी इसी दौरान देश की आजादी की मशाल लिए नेता जी सुभाष चन्द्र बोस 2 जुलाई 1943 को सिंगापुर आए तो डॉ. लक्ष्मी भी उनके विचारों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकीं और अंतत: क़रीब एक घंटे की मुलाकात के बीच लक्ष्मी ने यह इच्छा जता दी कि वह उनके साथ भारत की आजादी की लड़ाई में उतरना चाहती हैं। लक्ष्मी के भीतर आज़ादी का जज़्बा देखने के बाद नेताजी ने उनके नेतृत्व में 'रानी लक्ष्मीबाई रेजीमेंट' बनाने की घोषणा कर दी जिसमें वह वीर नारियां शामिल की गयीं जो देश के लिए अपनी जान दे सकती थीं। 22 अक्तूबर, 1943 में डॉ. लक्ष्मी ने रानी झाँसी रेजिमेंट में 'कैप्टन' पद पर कार्यभार संभाला। अपने साहस और अद्भुत कार्य की बदौलत बाद में उन्हें 'कर्नल' का पद भी मिला, जो एशिया में किसी महिला को पहली बार मिला था। लेकिन लोगों ने उन्हें 'कैप्टन लक्ष्मी' के रूप में ही याद रखा। गिरफ्तारी आईएनए की बर्मा यात्रा का एक हिस्सा बनने के लिए, मई 1945 में ब्रिटिश सेना ने कप्तान लक्ष्मी को गिरफ्तार कर लिया। राजनीति करियर – पति की मौत के बाद कैप्टन लक्ष्मी कानपुर आकर रहने लगीं और बाद में कैप्टन सहगल सक्रिय राजनीति में भी आयीं। 1971 में वह मर्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी/ माकपा (कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया/ सीपीआईएम) की सदस्यता ग्रहण की और राज्यसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। वे अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (ऑल इण्डिया डेमोक्रेटिक्स वोमेन्स एसोसिएशन) की संस्थापक सदस्यों में रहीं। बांग्लादेश विवाद के समय उन्होंने कलकत्ता में बांग्लादेश से भारत आ रहे शरणार्थीयो के लिए बचाव कैंप और मेडिकल कैंप भी खोल रखे थे। 1981 में स्थापित ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक विमेंस एसोसिएशन की वह संस्थापक सदस्या है और इसकी बहुत सी गतिविधियों और अभियानों में उन्होंने नेतृत्व भी किया है। दिसम्बर 1984 में हुए भोपाल गैस कांड में वे अपने मेडिकल टीम के साथ पीडितो की सहायता के लिए भोपाल पहुची। 1984 में सिक्ख दंगो के समय कानपूर में शांति लाने का काम करने लगी और 1996 में बैंगलोर में मिस वर्ल्ड कॉम्पीटिशन के खिलाफ अभियान करने के लिए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता के लिए काफ़ी संघर्ष किया। वर्ष 2002 में 88 वर्ष की आयु में उनकी पार्टी (वाम दल) के लोगों के दबाव में उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के ख़िलाफ़ राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव मैदान में भी उतरी लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उनकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आई। एक लम्बे राजनीतिक जीवन को जीने के बाद 1997 में वह काफ़ी कमज़ोर हो गयीं। उनके क़रीबी बताते हैं कि शरीर से कमज़ोर होने के बाद भी कैप्टन सहगल हमेशा लोगों की भलाई के बारे में सोचती थीं तथा मरीजों को देखने का प्रयास करती थीं। संघर्ष आज़ाद हिंद फ़ौज की हार के बाद ब्रिटिश सेनाओं ने स्वतंत्रता सैनिकों की धरपकड़ की और 4 मार्च 1946 को वे पकड़ी गईं पर बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया। लक्ष्मी सहगल ने 1947 में कर्नल प्रेम कुमार सहगल से विवाह किया और कानपुर आकर बस गईं। लेकिन उनका संघर्ष ख़त्म नहीं हुआ और वे वंचितों की सेवा में लग गईं। वे भारत विभाजन को कभी स्वीकार नहीं कर पाईं और अमीरों और ग़रीबों के बीच बढ़ती खाई का हमेशा विरोध करती रही हैं। गतिविधियां और उपलब्धियां उन्होंने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद शांति बहाल करने के लिए भी काम किया। बैंगलोर में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के खिलाफ अभियान में, लक्ष्मी सहगल को गिरफ्तार किया गया था। 2002 में, चार वामपंथी पार्टियों – भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक और रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी द्वारा राष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार के रूप में चुनी गई थीं। निजी जिंदगी सहगल ने मार्च 1947 में लाहौर में प्रेम कुमार सहगल से शादी कर ली थी। उनकी शादी के बाद वे कानपूर में बस गये, जहाँ लक्ष्मी मेडिकल का अभ्यास करने लगी और बटवारे के बारे भारत आने वाली शर्णार्थियो की भी सहायता करती थी। उनकी दो बेटियाँ है : सुभाषिनी अली और अनीसा पूरी। मृत्यु 19 जुलाई 2012 को एक कार्डिया अटैक आया और 23 जुलाई 2012 को सुबह 11:20 AM पर 97 साल की उम्र में कानपूर में उनकी मृत्यु हो गयी। उनके पार्थिव शरीर को कानपूर मेडिकल कॉलेज को मेडिकल रिसर्च के लिए दान में दिया गया। उनकी याद में कानपूर में कप्तान लक्ष्मी सहगल इंटरनेशनल एअरपोर्ट बनाया गया। लक्ष्मी सहगल के अवार्ड 1998 में सहगल को भारत के राष्ट्रपति के.आर.नारायण ने पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया था। ( 15 ) 11 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 2