काशीबाई जीवनी - Biography of Kashibai in Hindi Jivani Published By : Jivani.org जन्म पुणे के चासकमान गाँव में चासकर परिवार में हुआ था। नाम काशीबाई पर प्यार से लोग मुझे लाडोबाई के नाम से पुकारते थे। परिवार अमीर होने के साथ साथ मराठी संस्कारो से परिपूर्ण था, इसलिये शिक्षा और पढाई में दिलचस्पी थी। सन १७११ में शादी पुणे के बाजीराव पेशवा के साथ हुयी। काशीबाई, बाजीराव पेशवा प्रथम की पहली पत्नी थी। यूं तो काशीबाई से जुड़े कई तथ्य हम पहले भी जान चुके हैं लेकिन उनका जीवन इससे भी ज्यादा दिलचस्प था, उनके चरित्र से जुड़ी कई ऐसी बाते हैं जिन्हें आज हम जानने का प्रयास कर रहे हैं। काशीबाई और बाजीराव बहुत से लोग ये जानते हैं कि काशीबाई और बाजीराव पेशवा के दो पुत्र, नानासाहेब और रघुनाथ राव, थे लेकिन जनार्दन नाम का उनका तीसरा पुत्र भी था जिसकी बहुत कम ही उम्र में मृत्यु हो गई थी। काशीबाई अपने पति बाजीराव पेशवा के प्रति अत्याधिक समर्पित थी। बाजीराव और काशीबाई, दोनों एक-दूसरे से बेहद प्रेम करते थे लेकिन ये साथ तब तक बिल्कुल सही था जब तक इस संबंध में तीसरे व्यक्ति यानि मस्तानी का आगमन नहीं हुआ था। बुंदेला राजा छत्रसाल और फारसी मुसलमान नर्तकी रुहानी बेगम की पुत्री थी। बाजीराव पेशवा ने बुंदेलखंड को मुसलमान आक्रांताओं से बचाया था, आभार के तौर पर राजा ने अपनी पुत्री का विवाह बाजीराव से कर दिया था। काशीबाई और बाजीराव ये संबंध जुड़ते ही काशीबाई और बाजीराव के बीच रिश्तों में खटास आने लगी। काशीबाई यह जानती थी कि पुरुषों का दूसरा विवाह करना एक सामान्य घटनाक्रम है, लेकिन वे अपने पति पर पूरा विश्वास करती थी कि वे अन्य पुरुषों जैसे नहीं हैं। परंतु जब बाजीराव ने मस्तानी से विवाह किया तब काशीबाई का विश्वास और उनका गुरूर दोनों टूट गए। पुणे के ब्राह्मणों ने बाजीराव के मस्तानी के साथ संबंधों के कारण पेशवा परिवार का बहिष्कार किया। चिमाजी अप्पा और बालाजी बाजीराव उर्फ नानासाहेब ने १७४० में बाजीराव और मस्तानी के पृथक्करण हेतु बलप्रयोग की शुरुआत की। जब बाजीराव अभियान पर पुणे से बाहर थे, तब मस्तानी को घर में नजरबंद किया गया। अभियान पर बाजीराव कि बिगड़ती स्वास्थ्य को देखकर चिमाजी ने नानासाहेब को मस्तानी को छोड़ने और बाजीराव से मिलने के लिए भेज देने का आदेश दिया। पर नानासाहेब ने इसके बजाय अपनी मां काशीबाई को भेजा। कहा जाता है कि काशीबाई ने बाजीराव की मृत्युशय्या पर एक वफ़ादार और कर्तव्य परायण पत्नी बनकर उनकी सेवा की है और उनका विवरण पति को अत्यधिक समर्पित बताया गया है। उन्होंने और उनके बेटे जनार्दन ने बाजीराव का अंतिम संस्कार किया। बाजीराव की मौत के बाद १७४० में मस्तानी का भी निधन हो गया और काशीबाई ने उनके पुत्र शमशेर बहादुर प्रथम का ख्याल रखा और उन्हें हथियारों में प्रशिक्षण देने की सुविधा दी। वह अपने पति की मृत्यु के बाद और अधिक धार्मिक हो गई। उन्होंने विभिन्न तीर्थयात्राएं की और बनारस में चार साल तक रही। इस तरह के एक दौरे पर वह १०,००० से अधिक तीर्थयात्रियों के साथ थी और इस यात्रापर एक लाख रुपए खर्च किए थे। जुलाई १७४७ में तीर्थयात्रा से लौटने पर, उसने अपने गाव छास में शिव भगवान को समर्पित सोमेश्वर मंदिर बनाने का कार्य शुरु किया। १७४९ में निर्मित मंदिर १.५ एकड़ भूमि पर खड़ा है और त्रिपुरारी पौर्णिमा उत्सव के लिए लोकप्रिय है। पुणे के पास एक पर्यटक स्थल के रूप में इस मंदिर को गिना जाता है बाजीराव का व्यक्तिगत जीवन पेशवा बाजीराव (Peshwa Bajirao) की पहली पत्नी का नाम काशीबाई था जिससे तीन पुत्र बालाजी बाजी राव (नाना साहेब), रघुनाथ राव और जनार्दन राव (बचपन में ही मौत हो गयी ) | 1740 में बाजीराव की मृत्यु के बाद नाना साहेब , बालाजी बाजी राव के नाम से पेशवा के उत्तराधिकारी बने | बाजीराव (Peshwa Bajirao) की दुसरी पत्नी महाराज छत्रसाल की बेटी मस्तानी थी | बाजीराव मस्तानी से बहुत गहरा प्यार करते थे इसलिए उनके लिए अपने निवास स्थान पुणे में एक महल भी बनवाया जिसे मस्तानी महल के नाम से जाना जाता है | उस दौर में हिन्दू ब्राह्मण समाज ने इस शादी को मानने से इनकार कर दिया था क्योंकि मस्तानी का एक मुस्लिम भाई था | इसी वजह से भट परिवार को अपम्नानित भी होना पड़ा था | बाजीराव के भाई चिमनाजी अप्पा और माँ राधाबाई ने कभी मस्तानी को अपने परिवार का हिस्सा नही समझा | कई बार तो उन्होंने मस्तानी मी मौत की साजिश भी रची लेकिन छत्रपति साहू की मदद से मस्तानी बच गयी थी | 1734 में बाजीराव और मस्तानी के एक पुत्र हुआ जिसका जन्म के समय नाम कृष्णराव था | बाजीराव उसे ब्राह्मण बनना चाहते थे लेकिन माँ के मुस्लिम होने की वजह से पुजारियों ने हिन्दू उपनयन समारोह करने से मना कर दिया | इसी कारण उस बालक को मुस्लिम की बड़ा किया गया जो बाद में शमशेर बहादुर के नाम से जाना गया | काशीबाई ने छ साल के बच्चे को अपने संरक्षण में लिया और उसे अपने बच्चे की तरह पालन पोषण किया | 1761 में पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठो और अफगानों के बीच हुयी लड़ाई में शमशेर बहादुर की केवल 27 वर्ष की उम्र में मौत हो गयी थी | ( 19 ) 4 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 4