आशुतोष मुखर्जी जीवनी - Biography of Ashutosh Mukherjee in Hindi Jivani Published By : Jivani.org जन्म 29 जून सन् 1864 ई. को कलकत्ता में हुआ था। शिक्षा दीक्षा कलकत्ता में ही हुई। विश्वविद्यालय की शिक्षा पूर्ण हो जाने पर आपकी इच्छा गणित में अनुसंधान करने की थी किंतु अनुकूलता न होने के कारण कानून की ओर आकृष्ट हुए। तीस वर्ष की अवस्था के पूर्व ही आपने विधि में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त कर ली। सन् 1904 में आप कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्त हुए। देश के विधिविशारदों में आपका प्रमुख स्थान था। सन् 1920 ई. में आपने कलकत्ता उच्च न्यायालय के प्रधान के पद पर भी कुछ समय तक कार्य किया। 2 जनवरी 1924 को आपने इस पद से अवकाश ग्रहण किया। विश्वविद्यालयीय, शिक्षा के मानदंड को स्थिर करने तथा तत्संबंधी आदर्शों की स्थापना के लिए श्री आशुतोष का नाम राष्ट्र के इतिहास में अमर रहेगा। कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा लेनेवाली संस्था से उन्नत कर शिक्षा प्रदान करनेवाली संस्था बनाने का मुख्य श्रेय आपको ही है। सन् 1906 से 14 तक तथा 1921 से 1923 तक आप कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर रहे। विश्वविद्यालय के "फेलो" तो आप सन् 1889 से सन् 1924 तक बने रहे। बँगला भाषा को विश्वविद्यालयीय स्तर प्रदान कराने का श्रेय भी आपको ही प्राप्त है। कवींद्र रवींद्र ने आपके विषय में यह कथन किया था - "शिक्षा के क्षेत्र में देश को स्वतंत्र बनाने में आशुतोष ने वीरता के साथ कठिनाइयों से संघर्ष किया।" राष्ट्रीय शिक्षा की रूपरेखा स्थिर कर उसे आदर्श रूप में कार्यान्वित करे के लिए आपका सदा स्मरण किया जाएगा। शिक्षा के क्षेत्र में सर आशुतोष मुखर्जी (Ashutosh Mukherjee) का सबसे अधिक योगदान है | वे प्रथम बार 1906 से 1914 तक कोलकाता विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे | दुसरी बार 1921 में उन्हें पुन: इस पद पर नियुक्त किया गया | उनके कार्यकाल में विश्वविद्यालय का चतुर्दिक विकास हुआ | वहा नये नये विभाग खोले गये | सबसे बड़ा काम यह हुआ कि भारत में पहली बार इसी विश्वविद्यालय में भारतीय भाषाओ में एम.ए. का अध्यापन आरम्भ हुआ था | प्रत्यक्ष राजनीती में भाग न लेते हुए भी आशुतोष मुखर्जी पक्के राष्ट्रवादी व्यक्ति थे | उन्होंने कभी विदेशी वेशभूषा धारण नही की | सनातनी विचारों के होते हुए भी छुआछूत के विरोधी थे | अपनी बाल विधवा पुत्री का फिर से विवाह करके उन्होंने समाज के सामने नया उदाहरण रखा | अपने स्वतंत्र विचारो का ही प्रभाव था कि लेफ्टिनेंट गर्वनर के कहने पर भी “बंग-भंग” का विरोध करने वाले छात्रों के विरुद्ध उन्होंने कोई कार्यवाही नही की | जब सरकार ने विश्वविद्यालय को आर्थिक सहायता देने पर कुछ शर्ते लगाई तो आशुतोष मुखर्जी (Ashutosh Mukherjee) ने उन्हें स्वीकार न करके त्यागपत्र दे दिया था परन्तु कोलकाता विश्वविद्यालय से उनका संबध जीवन के अंत तक बना रहा | विश्वविद्यालय में भारतीयों के साथ अंग्रेज , जर्मन औ अमेरिकी प्रोफेसरों की भी नियुक्ति उन्होंने ही की और इस प्रकार कोलकाता विश्वविद्यालय को अग्रणी विश्वविद्यालय बना दिया | वे देश विदेश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किये गये थे | लन्दन की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी और पेरिस की मैथमेटिकल सोसाइटी ने उन्हें अपना सदस्य मनोनीत किया | उच्च शिक्षा प्रसार कलकत्ता विश्वविद्यालय से उनका जीवन की अन्तिम घड़ी तक सम्बन्ध बना रहा। लॉर्ड कर्ज़न ने भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम, भारत में उच्च शिक्षा का प्रसार रोकने के उद्देश्य से बनाया गया था, किन्तु आशुतोष मुखर्जी ने उसी के माध्यम से बंगाल में उच्च शिक्षा का प्रसार कर दिया और कलकत्ता विश्वविद्यालय को परीक्षा की व्यवस्था करने वाली संस्था मात्र से ऊपर उठाकर उच्चतम स्नातकोत्तर शिक्षण देने वाली संस्था बना दिया। उन्होंने केवल कला संकाय में ही विभिन्न विषयों में एम.ए. की कक्षाएँ नहीं खोली, प्रयोगात्मक एवं प्रयुक्त विज्ञानों (Applied sciences) के प्रशिक्षण हेतु भी स्नातकोत्तर शिक्षा का प्रबन्ध किया, जिसके लिए इसके पूर्व कोई प्राविधान न था। भारतीय भाषाओं का प्रयोग उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय के लिए महाराज दरभंगा, सर तारकनाथ पालित एवं रास बिहारी घोष से प्रचुर दान प्राप्त किया और इस धनराशि से उन्होंने विश्वविद्यालय में पुस्तकालय और विज्ञान कॉलेजों के विशाल भवनों का निर्माण कराया, जो कि प्रयोगशालाओं से युक्त थे। इस प्रकार उन्होंने देश में शिक्षा की धारा को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने बंगला तथा भारतीय भाषाओं को एम.ए. की उच्चतम डिग्री के लिए अध्ययन का विषय बनाया। भारतीयता की झलक उनकी वेशभूषा और आचार व्यवहार में भारतीयता झलकती थी। कदाचित वह प्रथम भारतीय थे, जिन्होंने रॉयल कमीशन (सैडलर समिति) के सदस्य की हैसियत से सम्पूर्ण भारत में धोती और कोट पहनकर भ्रमण किया। वह कभी इंग्लैण्ड नहीं गए और उन्होंने अपने जीवन तथा कार्य-कलापों से सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से एक सच्चा भारतीय अपने विचारों में सनातनपंथी, कार्यों में प्रगतिशील तथा विश्वविद्यालय के हेतु अध्यापकों के चयन में अंर्तराष्ट्रीयतावादी हो सकता है। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय में भारतीय ही नहीं, अंग्रेज़, जर्मन और अमेरिकी प्रोफ़ेसरों की भी नियुक्ति की और उसे पूर्व का अग्रगण्य विश्वविद्यालय बना दिया। ( 20 ) 6 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3