मदनलाल धींगड़ा जीवनी - Biography of Madan Lal Dhingr in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मदनलाल धींगड़ा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अप्रतिम क्रान्तिकारी थे। वे इंग्लैण्ड में अध्ययन कर रहे थे जहाँ उन्होने विलियम हट कर्जन वायली नामक एक ब्रिटिश अधिकारी की गोली मारकर हत्या कर दी। यह घटना बीसवीं शताब्दी में भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन की कुछेक प्रथम घटनाओं में से एक है। मदनलाल धींगड़ा का जन्म १८ सितम्बर सन् १८८३ को पंजाब प्रान्त के एक सम्पन्न हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता दित्तामल जी सिविल सर्जन थे और अंग्रेजी रंग में पूरी तरह रंगे हुए थे किन्तु माताजी अत्यन्त धार्मिक एवं भारतीय संस्कारों से परिपूर्ण महिला थीं। उनका परिवार अंग्रेजों का विश्वासपात्र था और जब मदनलाल को भारतीय स्वतन्त्रता सम्बन्धी क्रान्ति के आरोप में लाहौर के एक कालेज से निकाल दिया गया तो परिवार ने मदनलाल से नाता तोड़ लिया। मदनलाल को जीवन यापन के लिये पहले एक क्लर्क के रूप में, फिर एक तांगा-चालक के रूप में और अन्त में एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पड़ा। कारखाने में श्रमिकों की दशा सुधारने हेतु उन्होने यूनियन (संघ) बनाने की कोशिश की किन्तु वहाँ से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में काम किया फिर अपनी बड़े भाई की सलाह पर सन् १९०६ में उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैण्ड चले गये जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी कालेज लन्दन में यांत्रिकी अभियांत्रिकी में प्रवेश ले लिया। विदेश में रहकर अध्ययन करने के लिये उन्हें उनके बड़े भाई ने तो सहायता दी ही, इंग्लैण्ड में रह रहे कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से भी आर्थिक मदद मिली थी। मदन लाल को एक क्लर्क रूप में, एक तांगा-चालक के रूप में और एक कारखाने में श्रमिक के रूप में काम करना पडा। वहाँ उन्होंने एक यूनियन (संघ) बनाने का प्रयास किया; परंतु वहां से भी उन्हें निकाल दिया गया। कुछ दिन उन्होंने मुम्बई में भी काम किया। अपनी बड़े भाई से विचार विमर्श कर वे सन् 1906 में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैड गये जहां 'यूनिवर्सिटी कॉलेज' लंदन में यांत्रिक प्रौद्योगिकी में प्रवेश लिया। इसके लिए उन्हें उनके बडे भाई एवं इंग्लैंड के कुछ राष्ट्रवादी कार्यकर्ताओं से आर्थिक सहायता मिली। उन दिनों लन्दन भारत के क्रान्तिकारियो का केंद्र था | श्यामजी कृष्ण वर्मा वहा थे , विनायक दामोदर सावरकर भी वही पहुच गये थे | श्यामजी कृष्ण वर्मा ने “इंडिया होमरूल सोसाइटी” की स्थापना की थी और भारतीय छात्रों के रहने की व्वयस्था के लिए “इंडिया हाउस” बना लिया था | यह हाउस छात्रों के राजनितिक प्रषिक्षण का केंद्र था | इसके लिए सावरकर ने “अभिनव भारत” नामक एक संस्था भी बना ली थी | मदन लाल (Madan Lal Dhingra) इंडिया हाउस में अधिक दिन नही रहे , पर साम्राज्यवादी अंग्रेजो के प्रति उनके अंदर आक्रोश उत्पन्न हो गया था और सावरकर ने उन्हें “अभिनव भारत” संस्था का सदस्य बना लिया | लन्दन में भारतीय सेना का एक अवकाश प्राप्त अधिकारी कर्नल विलियम वायली रहता था | वह भारतीय छात्रों की जासूसी करता था | उसने मदनलाल के पिता को सलाह दी थी कि वे अपने पुत्र को इंडिया हाउस से दूर रहने की सलाह दे | इससे मदनलाल उससे ओर भी घृणा करने लगा | क्रान्तिकारियो ने अंग्रेजो के जासूस वायली की हत्या करने का निश्चय किया और यह काम मदनलाल ढींगरा (Madan Lal Dhingra) को सौंपा गया | कुछ समय तक निशाना साधने का अभ्यास करने के बाद 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ने एक समारोह में कर्जन वायली को गोली मार दी जिससे कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गयी | लंदनमें ढींगरा भारतके प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्णवर्माके संपर्कमें आए । वे लोग ढींगराके प्रचण्ड देशभक्तिसे बहुत प्रभावित हुए । मदनलाल उच्च शिक्षण हेतु लंडनमें रहते थे । उस समय सावरकरजी भी वहींपर थे, उस समय सावरकरजीको एक भोजन प्रसंगमें रंगभेदका अनुभव हुआ । उन्हें अंग्रेजोंद्वारा उनके साथ न बैठ अलग टेबलपर बैठनेको कहा गया । ज्वलंत देशाभिमान और अत्यंत स्वाभिमानी सावरकरजीको यह बात सहन नहीं हुई और वह वहांसे बाहर चले गए । उस समय मदनलाल और उनका एक दोस्त वहां उपस्थित था । मदनलाल जीने सावरकरजीको समझानेका प्रयत्न किया कि इस प्रकारके वर्तन की उन्हें आदत डालनी होगी । मदनलाल और सावरकर, यह इनकी प्रथम भेंट थी । भारतको स्वतंत्रता मिलनेके लिए देशभक्तोंने अनेक मार्ग ढूंडे । अंग्रेजोंपर दबाव बनानेके लिए क्रांतीकारी मार्गसे देशभक्तोने टक्कर देने हेतु राष्ट्ररक्षा एवं ब्रिटिशोंसे मुक्तताके लिए क्रांतिकारी संगठनोंका उदय हुआ । ऐसा विश्वास किया जाता है कि सावरकरने ही मदनलालको अभिनव भारत मंडलका सदस्य बनवाया और हथियार चलानेका प्रशिक्षण दिया । मदनलाल, इण्डिया हाउसके भी सदस्य थे, जो भारतीय विद्यार्थियोंके राजनैतिक क्रियाकलापोंका केंद्र था । ये लोग उस समय खुदीराम बोस, कन्नाई दत्त, सतिन्दर पाल और कांशी राम जैसे क्रान्तिकारियोंको मृत्युदण्ड दिये जानेसे बहुत क्रोधित थे । भारतीयोंके लिए मातृभूमिको देनेके लिए क्या है, तो वह स्वयंका रक्त ही है, ऐसा ढींगराजीका मानना था । मदनलाल और वीर सावरकर : इंडिया हाउस नामक एक संगठन में, जो उन दिनों भारतीय विद्यार्थियों के राजनैतिक क्रियाकलापों का केन्द्र था, वहां मदनलाल ढींगरा भारत के प्रख्यात राष्ट्रवादी विनायक दामोदर सावरकर एवं श्यामजी कृष्णवर्मा के सम्पर्क में आए. उन दिनों सावरकर जी बम बनाने और अन्य शस्त्रों को हासिल करने की कोशिशें कर रहे थे. सावरकर जी मदनलाल की क्रांतिकारी भावना और उनकी इच्छाशक्ति से बहुत प्रभावित हुए. सावरकर ने ही मदनलाल को अभिनव भारत मण्डल का सदस्य बनवाया और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया. इसके बाद मदनलाल, वीर सावरकर के साथ मिलकर काम करने लगे. कई लोग मानते हैं कि उन्होंने वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न को भी मारने की कोशिश की थी पर वह कामयाब नहीं हो पाए थे. इसके बाद सावरकर जी ने मदनलाल को साथ लेकर कर्ज़न वाईली को मारने की योजना बनाई और मदनलाल को साफ कह दिया गया कि इस बार किसी भी हाल में सफल होना है. निधन : कर्ज़न वाइली को गोली मारने के बाद मदन लाल ढींगरा ने अपने पिस्तौल से अपनी हत्या करनी चाही; परंतु उन्हें पकड लिया गया। 23 जुलाई को ढींगरा के प्रकरण की सुनवाई पुराने बेली कोर्ट, लंदन में हुई। उनको मृत्युदण्ड दिया गया और 17 अगस्त सन् 1909 को फांसी दे दी गयी। इस महान क्रांतिकारी के रक्त से राष्ट्रभक्ति के जो बीज उत्पन्न हुए वह हमारे देश के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है। ( 16 ) 3 Votes have rated this Naukri. 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