धनराज पिल्लै जीवनी - Biography of Dhanraj Pillay in Hindi Jivani Published By : Jivani.org भारतीय हॉकी के इस महान सितारे का जन्म पुणे के निकट खिड़की में 16 जुलाई, 1968 को हुआ था। धनराज बहुत ही सामान्य परिवार से हैं, उनके माता-पिता मूलतः तमिलनाडू से थे लेकिन रोजी-रोटी की तलाश वे खिड़की आ गए थे| माता-पिता ने पैसों के अभाव में जन्मे अपने चौथे पुत्र का नाम इस उम्मीद में “धनराज” रखा कि वो उनकी किस्मत बदल सके…और जैसा कि हम जानते हैं; आगे चलकर हुआ भी यही। पिता ने पैसों के अभाव में जन्मे अपने चौथे पुत्र का नाम इस उम्मीद में “धनराज” रखा कि वो उनकी किस्मत बदल सके…और जैसा कि हम जानते हैं; आगे चलकर हुआ भी यही। धनराज का बचपन Ordinance Factory Staff Colony में बीता, जहां उनके पिता बतौर ग्राउंड्समैन काम करते थे। बड़ा परिवार और सीमित आय के कारण धनराज का परिवार सुख-सुविधाओं के अभाव में ही रहता था। खुद धनराज टूटी हुई हॉकी और फेंकी हुई बॉल से खेला करते थे और ऐसे करने की प्रेरणा उन्हें उनकी माँ से मिलती थी। तमाम तकलीफों के बीच भी उनकी माँ हमेशा अपने पाँचों बेटों को हुई खेलने के लिए प्रोत्साहित किया करती थीं। जब धनराज छोटे थे तब भारत में हॉकी ही सबसे लोकप्रिय खेल था और अक्सर बच्चे यही खेल खेला करते थे। भारतीय खेल जगत में हॉकी खिलाड़ी धनराज पिल्लै का नाम बहुत गर्व से लिया जाता है । हॉकी के इतिहास में सर्वश्रेष्ठ सेन्टर फारवर्ड खिलाड़ी समझे जाने वाले धनराज की तुलना क्रिकेट के सचिन तेंदुलकर से की जाती है । जैसे क्रिकेट में सचिन का कोई सानी नहीं है, इसी प्रकार धनराज पिल्लै भी हॉकी के खेल में सर्वश्रेष्ठ समझे जाते हैं । धनराज पिल्लै की कहानी एक ऐसे सामान्य दर्जे के लड़के की कहानी है जो गरीब परिवार से निकलकर कड़ी मेहनत करके अपना मुकाम हासिल करता है । पुणे की हथियारों की फैक्टरियों की गलियों में खेल-खेलकर उनका बचपन बीता । पांच बहन-भाइयों के बीच धनराज के यहां धन की कमी होते हुए भी उसे खेल के लिए पूरा नैतिक समर्थन प्राप्त हुआ । धन की कमी के कारण धनराज व उसका भाई हॉकी खरीदने में पैसे खर्च करने में असमर्थ थे । अत: वे इसके स्थान पर टूटी हुई हॉकी को रस्सी से बांध कर उससे खेला करते थे । धनराज को बचपन से आज तक अपनी माँ से बेहद लगाव है । धनराज का कहना है- ‘यह कल्पना करना कठिन है कि घर में इतने कम साधन होते हुए भी माँ ने हमें पाल-पोसकर बड़ा किया और हम सब को एक अच्छा इंसान बनाया । अपने लम्बे लहराते बालो की वजह से टीम में पहचाने जाने वाले धनराज पिल्लै Golden Boy ही नही है बल्कि अपने खेल के कौशल द्वारा ये विपक्षी रक्षा पंक्ति के खिलाडियों को चकमा देकर बॉल को गोल पोस्ट के भीतर पहुचाकर ही दम लेते है | धनराज (Dhanraj Pillay) को बॉल मिली नही कि इनका एकमात्र लक्ष्य उसे गोल पोस्ट तक पहचाना ही रहता था | विपक्षी खिलाड़ी धनराज को किसी तरह रोकने में सफल हो , उनकी कोशिश यही रहती थी | ये अब तक विश्व कप , ओलम्पिक , एशिया कप ,एशो-अफ्रीका हॉकी खेल चुके है | अब तक सर्वाधिक गोल बनाने भारतीय टीम में इनका रिकॉर्ड रहा है | धनराज पिल्लै (Dhanraj Pillay) निसंदेह ही भारतीय हॉकी के सिरमौर है तथापि ये काफी विवादों में बने रहते है जिसका खामियाजा उन्हें व्यक्तिगत तौर पर योग्यताओं के बावजूद टीम के बाहर रहने पर मजबूर करता है जिसके कारण इनका खेल प्रभावित होता है | करियर की शुरूआत : धनराज पिल्लै ने अंतराष्ट्रीय हॉकी में 1989 में कदम रखा जब उन्होंने नई दिल्ली में ऑलवेन एसिया कप खेला। अंतराष्ट्रीय करियर : धनराज पिल्लै जिनका करियर दिसंबर 1989 से अगस्त 2004 के बीच चला, ने कुल 339 अंतराष्ट्रीय मैचों में हिस्सा लिया। भारतीय हॉकी फेडरेशन ने उनके द्वारा किए गए गोल्स का रिकॉर्ड नहीं रखा यही वजह है कि धनराज पिल्लै द्वारा लगाए गए गोल्स की सही संख्या के विषय में नहीं कहा जा सकता। उन्होंने करीब 170 गोल्स किए हैं ऐसा अनुमान धनराज पिल्लै का है। अचीवमेंट : वह अकेले ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्होंने चार ओलंपिक में हिस्सा लिया है। 1992, 1996, 2000 और 2004 के ओलपिंक में धनराज पिल्लै खेले। 995, 1996, 2002, और 2003 में हुई चैंपियंस ट्रॉफी का भी हिस्सा रहे। 1990, 1994, 1998, और 2002 में हुए एशियन गेम्स में भी धनराज पिल्लै खेले। भारत ने 1998 में और 2003 में एशियन गेम्स और एशिया कप धनराज पिल्लै की कप्तानी में जीता। साथ ही वह बैंकाक एशियन गेम्स में सबसे अधिक गोल करने वाले खिलाड़ी बने। क्लब हॉकी : धनराज पिल्लै विदेशी क्लब जैसे द इंडियाना जिमखाना (लंदन), एचसी ल्योन (फ्रांस), बीएसएन एचसी एंड टेलेकॉम मलेशिया एच सी (मलेशिया), अबाहानी लिमिटेड (ढाका), एचटीसी स्टुटगार्ट किकर्स (जर्मनी) और खाल्सा स्पोर्टस क्लब (हांगकांग) के लिए खेला है। ’ पुरस्कार : वर्ष 1999-2000 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित किया गया। वर्ष 2000 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्म श्री प्रदान किया गया। छोटी कद-काठी और लहराते बालों वाले धनराज अपने युग के सबसे प्रतिभाशाली फॉरवर्ड खिलाड़ी रहे हैं जो विरोधियों के गढ़ में कहर बरपाने की क्षमता रखते थे। वे 2002 एशियाई खेलों की विजेता हॉकी टीम के सफल कप्तान थे कोलोन, जर्मनी में आयोजित 2002 चैंपियंस ट्रॉफी में उन्हें टूर्नामेंट का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी पुरस्कार प्रदान किया गया। पिल्लै वर्तमान में मुंबई में एक हॉकी अकादमी शुरू करने की कोशिश कर रहे हैं। अपनी अकादमी हेतु धन जुटाने के लिए, वे एक अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं जिसके तहत मुंबई में खाली प्रिंटर कार्ट्रिज एकत्र करके एक यूरोपीय रीसाइक्लिंग कंपनी को बेच दिया जाता है। विवाद : धनराज को अक्सर तेज-तर्रार के रूप में वर्णित किया जाता है और वे कई विवादों का हिस्सा रह चुके हैं। हॉकी प्रबंधन के खिलाफ वे कई बार अपना रोष प्रकट कर चुके हैं। बैंकाक एशियाई खेलों के बाद भारतीय टीम के लिए उनका चयन नहीं किया गया था। आधिकारिक कारण यह दिया गया कि धनराज और 6 अन्य वरिष्ठ खिलाड़ियों को विश्राम दिया गया है। लेकिन इसे काफी हद तक, अनुचित स्वागत और मैच फीस का भुगतान न किये जाने के कारण उनके द्वारा प्रबंधन के खिलाफ नाराजगी जाहिर करने के लिए एक प्रतिशोध के रूप में देखा गया। ( 13 ) 139 Votes have rated this Naukri. 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