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Biography :


पी. टी. उषा जीवनी - Biography of P. T. Usha in Hindi Jivani

Published By : Jivani.org
     

 

        पिलावुळ्ळकण्टि तेक्केपरम्पिल् उषा जो आमतौर पर पी॰ टी॰ उषा के नाम से जानी जाती हैं, भारत के केरल राज्य की खिलाड़ी हैं। "भारतीय ट्रैक ऍण्ड फ़ील्ड की रानी" माने जानी वाली पी॰ टी॰ उषा भारतीय खेलकूद में १९७९ से हैं। वे भारत के अब तक के सबसे अच्छे खिलाड़ियों में से हैं। केरल के कई हिस्सों में परंपरा के अनुसार ही उनके नाम के पहले उनके परिवार/घर का नाम है। उन्हें "पय्योली एक्स्प्रेस" नामक उपनाम दिया गया था।

        1979 में पी.टी. उषा ने राष्ट्रिय शालेय खेलो में भाग लिया था, जहाँ ओ.एम. नम्बिअर को उन्होंने अपने खेल प्रदर्शन से काफी प्रभावित किया था, बाद में वही उनके कोच बने और उन्होंने उषा को प्रशिक्षण भी दिया। 1980 के मास्को ओलंपिक्स में उन्होंने खेलो में अपना पर्दापण किया था। 1982 में नयी दिल्ली के एशियन खेलो में उषा ने 100 मीटर और 200 मीटर में सिल्वर मेडल जीता था लेकिन इसके एक साल बाद ही कुवैत में एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में उषा ने 400 मीटर में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था और यह एक एशियन रिकॉर्ड भी था। एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में उषा ने कुल 13 गोल्ड अर्जित किये थे।


प्रारंभिक जीवन :

        ‘उड़न परी’, ‘पायोली एक्सप्रेस’, ‘स्वर्ण परी’ आदि नामों से उसे जाना जाता है । ‘पी. टी. उषा’ यानी पिलावुल्लकन्डी थेकापराम्विल उषा ने खेलों के इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया है । अनेक महिला खिलाड़ी पी. टी. उषा को अपनी प्रेरणास्रोत मानती हैं। पी. टी. उषा अपने पिता पैठल, जो कपड़े के एक व्यापारी हैं और मां लक्ष्मी की छह संतानों में से एक हैं । उन्हें बचपन से ही कठिन काम करके आनन्द आता था जैसे ऊंची चारदीवारी फांदना । खेलों में उनकी रुचि तब जागृत हुई जब वह कक्षा 4 में पढ़ती थीं और उनके व्यायाम के अध्यापक बालाकृष्णन ने एक दिन उषा को 7वीं कक्षा की चैंपियन छात्रा के साथ दौड़ा दिया और उषा उस दौड़ में जीत गई।

        जब उषा 7वीं कक्षा में पढ़ती थी, तब उसने उप जिला एथलेटिक्स में औपचारिक रूप से खेलों की शुरुआत की और जिले की चैंपियन बनकर उभरीं । उन्होंने 4 स्पर्धाओं में प्रथम व एक स्पर्धा में द्वितीय स्थान प्राप्त किया । तब जी.वी. रजा खेल विद्यालय की केरल में स्थापना की गई जिसमें लड़कियों के लिए खेल विभाग बनाया गया । उषा अनेक विरोधों के बावजूद 1976 में कन्नूर के खेल विभाग में शामिल हो गईं | उसके बाद ओ.एम. नाम्बियार ने उनके कोच के रूप में उनको चैंपियन बनाने के लिए कड़ी म्हणत की | उषा को यदि जिन्दगी भर अफसोस रहेगा तो केवल ओलंपिक मैडल न जीत पाने का | एक मिनट के सौवें हिस्से अर्थात् .001 में क्या कुछ हो सकता है इसके बारे में पी.टी. उषा से बेहतर कोई नहीं जान सकता । यह ओलंपिक मैडल जीतने और हारने का फर्क है|

        १९७९ में उन्होंने राष्ट्रीय विद्यालय खेलों में भाग लिया, जहाँ ओ॰ ऍम॰ नम्बियार का उनकी ओर ध्यानाकर्षित हुआ, वे अंत तक उनके प्रशिक्षक रहे। १९८० के मास्को ओलम्पिक में उनकी शुरुआत कुछ खास नहीं रही। १९८२ के नई दिल्ली एशियाड में उन्हें १००मी व २००मी में रजत पदक मिला, लेकिन एक वर्ष बाद कुवैत में एशियाई ट्रैक और फ़ील्ड प्रतियोगिता में एक नए एशियाई कीर्तिमान के साथ उन्होंने ४००मी में स्वर्ण पदक जीता।

        १९८३-८९ के बीच में उषा ने एटीऍफ़ खेलों में १३ स्वर्ण जीते। १९८४ के लॉस ऍञ्जेलेस ओलम्पिक की ४०० मी बाधा दौड़ के सेमी फ़ाइनल में वे प्रथम थीं, पर फ़ाइनल में पीछे रह गईं। मिलखा सिंह के साथ जो १९६० में हुआ, लगभग वैसे ही तीसरे स्थान के लिए दाँतों तले उँगली दबवा देने वाला फ़ोटो फ़िनिश हुआ। उषा ने १/१०० सेकिंड की वजह से कांस्य पदक गँवा दिया। ४००मी बाधा दौड़ का सेमी फ़ाइनल जीत के वे किसी भी ओलम्पिक प्रतियोगिता के फ़ाइनल में पहुँचने वाली पहली महिला और पाँचवी भारतीय बनीं।

        1984 में लोस एंजेल ओलंपिक्स में 400 मीटर की बाधा दौड़ में सेमी फाइनल प्रथम स्थान पर रहते हुए जीत लिया लेकिन फाइनल में वह मेडल जीतने से थोड़े से अंतर से चुक गयी थी, यह पल 1960 में मिल्खा सिंह की हार की याद दिलाने वाला था। लेकिन फिर भी उषा तीसरे पायदान पर स्थान बनाने में सफल रही थी। लेकिन उषा ने 1/100 सेकंड के अंतर से ब्रोंज मेडल खो दिया था। 1986 में सीओल में आयोजित 10 वे एशियन खेलो में ट्रैक एंड फील्ड खेलो में पी.टी. उषा ने 4 गोल्ड मेडल और 1 सिल्वर मेडल जीते। इसके साथ ही 1985 में जकार्ता में आयोजित छठे एशियन ट्रैक एंड फील्ड चैंपियनशिप में उषा ने 5 गोल्ड मेडल अपने नाम किये थे। किसी भी एक इंटरनेशनल चैंपियनशिप में इतने मेडल जीतना भी किसी एकल एथलिट का रिकॉर्ड ही है।

        इसके बाद इन्होने अपनी परफॉरमेंस में और अधिक सुधार के लिए और प्रयास किया, और 1984 में होने वाले ओलंपिक की तैयारी जमकर करने लगी. 1984 में लॉसएंजिल्स में हुए ओलंपिक में पी टी उषा ने सेमी फाइनल के पहले राउंड की 400 मीटर बढ़ा दौड़ को अच्छे से समाप्त कर लिया, लेकिन इसके फाइनल में वे 1/100 मार्जिन ने हार गई, और उनको ब्रोंज मैडल नहीं मिल पाया. यह मैच बहुत रोमांच से भरा रहा, जिसने 1960 में ‘मिल्खा सिंह’ की एक रेस याद दिला दी थी. इस मैच का आखिरी समय ऐसा था, की लोग अपने दांतों तले उंगलियाँ चबा जाएँ.

        हार के बाद भी पी टी उषा की यह उपलब्धि बहुत बड़ी थी, यह भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था, जब कोई महिला एथलीट ओलंपिक के किसी फाइनल राउंड में पहुंची थी. इन्होने 55.42 सेकंड में रेस पूरी की थी, जो आज भी भारत के इवेंट में एक नेशनल रिकॉर्ड है. इसके बाद इन्होने अपनी परफॉरमेंस में और अधिक सुधार के लिए और प्रयास किया, और 1984 में होने वाले ओलंपिक की तैयारी जमकर करने लगी. 1984 में लॉसएंजिल्स में हुए ओलंपिक में पी टी उषा ने सेमी फाइनल के पहले राउंड की 400 मीटर बढ़ा दौड़ को अच्छे से समाप्त कर लिया, लेकिन इसके फाइनल में वे 1/100 मार्जिन ने हार गई, और उनको ब्रोंज मैडल नहीं मिल पाया. यह मैच बहुत रोमांच से भरा रहा, जिसने 1960 में ‘मिल्खा सिंह’ की एक रेस याद दिला दी थी. 

        उषा को बचपन से ही थोड़ा तेज चलने का शौक था। उन्हें जहाँ जाना होता बस तपाक से पहुंच जाती फिर चाहे वो गाँव की दुकान हो या स्कूल तक जाना। बात उन दिनों की है जब उषा मात्र 13 साल की थीं और उनके स्कूल में कुछ कार्यक्रम चल रहे थे जिसमें एक दौड़ की प्रतियोगिता भी थी। पी. टी. उषा के मामा ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि तू दिन भर इधर से उधर भागती रहती है, दौड़ प्रतियोगिता में भाग क्यों नहीं लेती? बस मामा की बात से प्रेरित होकर उषा ने दौड़ में भाग ले लिया। ये जानकर आपको हैरानी होगी कि उस दौड़ में 13 लड़कियों ने भाग लिया था जिनमें उषा सबसे छोटी थीं।

        जब दौड़ की शुरुआत हुई तो पी. टी. उषा इतनी तेज दौड़ी कि बाकि लड़कियाँ देखती ही रह गयीं और पी. टी. उषा ने कुछ ही सेकेंड में दौड़ जीत ली। वो दिन उषा के चमकते करियर का पहला पड़ाव था। इसके बाद उषा को 250 रुपये मासिक छात्रवृति मिलने लगी जिससे वो अपना गुजारा चलाती। वो दौड़ तो पी. टी. उषा ने आसानी से जीत ली लेकिन उस प्रतियोगिता में एक रिकॉर्ड बना जिसे कोई नहीं जानता था और ना ही किसी से उम्मीद की थी। यहाँ तक कि उषा खुद नहीं जानती थीं कि अनजाने में ही उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ दिया है। मात्र 13 वर्ष की आयु में उषा ने नेशनल रिकॉर्ड तोड़ डाला, जरा सोचिये कितना जोश रहा होगा उस लड़की में, कितना उत्साह भरा होगा उसकी रगों को, ये सोचकर ही मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं।


उपलब्धियाँ :

• कराची अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में ४ स्वर्ण पदक 1981.
• 
पुणे अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में २ स्वर्ण पदक
• 
हिसार अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में १ स्वर्ण पदक.
• 
लुधियाना अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में २ स्वर्ण पदक 1982
• 
सियोल में १ स्वर्ण व एक रजत जीता.
• 
नई दिल्ली एशियाई खेलों में २ रजत पदक 1983.
•
कुवैत में एशियाई दौड़कूद प्रतियोगिता में १ स्वर्ण व १ रजत.
• 
नई दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में २ स्वर्ण पदक प्राप्त किए 1984.
• 
इंगल्वुड संयुक्त राज्य में अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में २ स्वर्ण पदक.
• 
सिंगापुर में 8 देशीय अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में ३ स्वर्ण पदक.
• 
टोक्यो अंतर्राष्ट्रीय आमंत्रण खेलों में ४००मी बाधा दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया 1985.
• 
चेक गणराज्य में ओलोमोग में विश्व रेलवे खेलों में २ स्वर्ण व २ रजत पदक जीते, उन्हें सर्वोत्तम रेलवे खिलाड़ी घोषित किया गया।
• 
प्राग के विश्व ग्रां प्री खेल में ४००मी बाधा दौड़ में ५वाँ स्थान लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में ४००मी बाधा दौड़ में कांस्य पदक ब्रित्स्लावा के विश्व ग्रां प्री खेल में ४००मी बाधा दौड़ में रजत पदक पेरिस के विश्व ग्रां प्री खेल में ४००मी बाधा दौड़ में ४था स्थान बुडापेस्ट के विश्व ग्रां प्री खेल में ४००मी दौड़ में कांस्य पदक लंदन के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक ओस्त्रावा के विश्व ग्रां प्री खेल में रजत पदक कैनबरा के विश्व कप खेलों में ४००मी बाधा दौड़ में ५वाँ स्थान व ४००मी में ४था स्थान जकार्ता की एशियाई दौड़-कूद प्रतियोगिता में ५ स्वर्ण व १ कांस्य पदक 1986.
• 
मास्को के गुडविल खेलों में ४००मी में ६ठा स्थान.
• 
सिंगापुर की एशियाई दौड़ कूद प्रतियोगिता में ३ स्वर्ण व २ रजत पदक
• 
सिंगापुर मुक्त दौड़ प्रतियोगिता में ३ स्वर्ण पदक।


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