होमी व्यारावाला जीवनी - Biography of Homai Vyarawalla in Hindi Jivani Published By : Jivani.org होमी व्यारावाला भारत की प्रथम महिला फोटोग्राफर थीं. गुजरात के नवसारी में मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी व्यारावाला ने 1938 में फोटोग्राफी के क्षेत्र में प्रवेश किया। उस वक्त कैमरा ही अपने आप में एक आश्चर्य कहलाता था। उस पर भी एक महिला का इस क्षेत्र में प्रवेश करना बड़े अचरज की बात थी। फोटोग्राफी का पेशा उन्होंने पूरे उसूलों के साथ अपनाया था। हालांकि उन्होंने अपने ही समकक्ष फोटोग्राफरों से ही कई बार चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा था। व्यारवाला का जन्म 13 दिसम्बर 1913 में हुआ। उनके पिता पारसी उर्दू थियेटर में अभिनेता थे। उनका पालन पोषण मुंबई में हुआ तथा उन्होंने फोटोग्राफी अपने मित्र मानेकशां व्यारवाला और जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से सीखी।व्यारावाला ने 1938 में फोटोग्राफी की खूबसूरत दुनिया में प्रवेश किया। ये वो वक़्त था जब कैमरा आम लोगो के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं था। ऐसे में होमी व्यारावाला का एक फोटोग्राफर बनना एक बहुत ही बड़ी बात थी। अपनी फोटोग्राफी के ज़रिये होमी व्यारावाला ने हमेशा कोशिश की एक परिवर्तशील राष्ट्र के सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन को दर्शाने की। होमी व्यारावाला ने अगस्त 1947 को लाल किले पर पहली बार फहराये गये झंडे, भारत से लॉर्ड माऊन्टबेन्टन के डिपार्चर, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू तथा लाल बहादुर शास्त्री की अंतिम यात्रा की भी तस्वीरें भी अपने कैमरे में कैद की।व्यारावाला की पहली तस्वीर बोम्बे क्रोनिकल में पब्लिश हुई जिसके लिए उन्हें उनकी हर फोटो के लिए १ रुपया अदा किया गया। शादी के बाद अपने पति के साथ दिल्ली आने के बाद और ब्रिटिश सूचना सेवाओं के कर्मचारी के रूप में स्वतंत्रता के दौरान की कई फोटो ली। दिूतीय विश्व युद्ध के हमले के बाद, उन्होंने इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ इंडिया मैगजीन के लिए कार्य करना शुरू किया जो 1970 तक चला। इसमें इनकी श्वेत-श्याम छायाचित्र हुए। उनके कई फोटोग्राफ टाईम, लाईफ, दि ब्लेक स्टार तथा कई अन्य अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशनों में फोटो-कहानियों के रूप में प्रकाशित हुए। व्यारवाला के कार्य एवं जीवन के बारे में सबीना गडिहोक ने अपनी पुस्तक इन्डिया इन फोकस –केमरा क्रोनिकल ऑफ होमेएव्यारवाला में बेहतर ढंग से उल्लेख किया है। फोटोग्राफरों से किए गए साक्षात्कारों के आधार पर उनकी फोटो-आत्मकथा तैयार की गई है। व्यारवाला का पसन्दीदा विषय जवाहर लाल नेहरू थे। वे फोटो ग्राफर के लिए उन्हें उपयुक्त छवि मानती थीं। वह ब्लेक एण्ड वाईट माध्यम को वरियता देती थी। फोटोग्राफी में वह फोटो-पत्रकारों के बीच उपयोग करती थी। दिन की रौशनी के दौरान, लो-एंगल शॉट तथा छवियों के विस्तार के लिए बैक लाईट का उपयोग करती थी, जिससे विषय-वस्तु की गहराई तथा ऊचाई को दिर्शाया जा सके। उनके कई फोटोग्राफ ‘’डालडा 13’’ के अंतर्गत प्रकाशित किए गए थे। इस नाम के पीछे जो उन्होंने कारण बतायें उनमें 1913 में उनका जन्म होना, 13वें में उनका विवाह होना तथा उनकी कार की नम्बर प्लेट डी एल डी 13 होना गिनाया। 1970 में, अपने पति के निधन के बाद उन्होंने फोटोग्राफी छोड़ने का निश्चय कर लिया। पिछले 40 वर्षों में एक भी फोटोग्राफ न लेने के बावजूद होमई व्याखाला सदैव एक महान विभूति बनी रही तथा उनके द्वारा ली गई तस्वीरें नेशनल गैलरी ऑफ माडर्न आर्ट ने पिछले वर्ष मार्च में प्रदर्शित की। उन्हें पदम विभूषण पुरस्कार से नवाजा गया। छायांकन द्वारा पत्रकारिता दिल्ली आते ही होमी को अपने काम को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलनी शुरू हो कई। सन् 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना की उतारी गईं उनकी कई तस्वीरें चर्चा में रहीं। बाद के दिनों में उनके छायांकन के प्रिय विषय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू रहे। उनके ज्यादातर चित्र उनके उपनाम ‘डालडा-13’ के साथ प्रकाशित हुए। उनके इस नाम के पीछे एक रोचक वाकया रहा। उनका जन्म 1913 में हुआ, अपने होने वाले पति से उपनकी पहली मुलाकात 13 साल की उम्र में हुई और उनकी पहली कार का नंबर प्लेट था डी.एल.डी 13। 1970 में अपने पति की मृत्य के बाद होमी व्यारावाला ने अचानक अपने पेशे से संन्यास ले लिया। इसकी वजह उन्होंने नई पीढ़ी के छायाकारों के बुरे बर्ताव को बताया। बाद में तकरीबन 40 वर्षों तक उन्होंने कैमरे से एक भी चित्र नहीं उतारा। जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने अपने करियर के उत्कर्ष पर छायांकन को क्यों छोड़ दिया, तो उनका जवाब था, “अब इसका कोई औचित्य नहीं रह गया था। हमारी पीढ़ी के पास छायाकारों के लिए कुछ उसूल थे। यहां तक की हम लोगों ने अपने लिए एक ड्रेसकोड का भी पालन किया। हमने एक दूसरे को सहकर्मी के रूप में सहयोग और सम्मान दिया। लेकिन अचानक सबकुछ बुरी तरह से बदल गया। नई पीढ़ी जिस किसी भी प्रकार से पैसे कमाने के पीछे पड़ी थी। मैं इस भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी।" बाद के दिनों में व्यारावाला ने अपने चित्रों का संग्रह दिल्ली स्थित अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स को दान कर दिया। जिसके बाद 2010 में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, मुंबई ने अल-काज़ी फाउंडेशन ऑफ आर्ट्स के साथ मिलकर उनके छायाचित्रों की एक प्रदर्शनी का आयोजन किया। ( 15 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0