दुर्गा खोटे जीवनी - Biography of Durga in Hindi Jivani Published By : Jivani.org दुर्गा खोटे (निधन: 22 सितंबर, 1991) हिन्दी अपने जमाने मे हिन्दी व मराठी फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री रही हैं। उन्होंने अनेक हिट फिल्मों में शानदार अभिनय किया। आरम्भिक फिल्मों में नायिका की भूमिकाएँ करने के बाद जब वे चरित्र अभिनेत्री की भूमिकाओं में दर्शकों के सामने आईं, तबके उनके बेमिसाल अभिनय को आज तक लोग याद करते हैं। व्यक्तिगत जीवन दुर्गा खोटे का बचपन तो सामान्य रूप से ठीक़ ही कटा। लेकिन अपनी पसन्द से विवाह के बाद भी उनका घरेलू जीवन बहुत ही कठिन व दुख से भरा रहा। अपने पति की ओर से बेहद परेशान रही दुर्गा को जो कुछ खुशी मिली, वह अपने बच्चों से ही मिली। इतना होने पर भी अपने नाकारा पति को उन्होंने जीवन भर निभाया। मराठी में लिखी अपनी आत्मकथा "मी दुर्गा खोटे" (हिन्दी अनुवाद "मैं दुर्गा खोटे" नाम से प्रकाशित) मे उन्होंने अपने जीवन की मर्मस्पर्शी घटनाऐं विस्तार से बयान की हैं। कैरियर दुर्गा खोते प्रभात फिल्म कंपनी द्वारा अस्पष्ट 1931 में चुप फिल्म फरेबी जाल में किरदार की भूमिका निभाई, इसके बाद माया मचंद्रा (1 932) 1 9 32 के डबल संस्करण (हिंदी और मराठी) में उन्हें जल्द ही नायिका खेलने के लिए पदोन्नत की गई, एक और प्रभात फिल्म, जो पहली बार मराठी बोलने वाली थी, और एक भगोड़ा हिट साबित हुई, जहां उन्होंने रानी तारामती की भूमिका निभाई। [ दरअसल, वह एक और अग्रणी प्रवृत्ति का पीछा करती रही: प्रभात फिल्म कंपनी के साथ मिलकर काम करने के बावजूद, वह "स्टूडियो सिस्टम" (एक स्टूडियो के साथ विशेष अनुबंध, मासिक वेतन पर अपनी फिल्मों में काम करने के लिए विशेष अनुबंध) से अलग हो गया और फिर से प्रचलित हो गया उस युग के पहले "फ्रीलांस" कलाकार, जो कभी-कभी न्यू थियेटर्स, ईस्ट इंडिया फिल्म कंपनी (दोनों कलकत्ता में) और प्रकाश पिक्चर्स के साथ काम कर रहे थे।1936 में, उन्होंने अमर ज्योति में सौदामिनी की भूमिका निभाई, जो उनके सबसे "यादगार" भूमिकाओं में से एक है। 1937 में, उन्होंने भारतीय सिनेमा में इस भूमिका में कदम रखने वाली पहली महिला बनाने वाली एक साथी की फिल्म बनाई और निर्देशित की। 40 के दशक में उनके लिए एशरी अत्रे की पछी दासी (मराठी) और चार्नों की दासी (1941) और विजय भट्ट की क्लासिक भरत मिलाप (1 9 42) में पुरस्कार विजेता प्रदर्शन के साथ बड़े पैमाने पर खुल गए, दोनों ने उन्हें बीएफजेए लगातार दो वर्षों के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार बाद में कैरियर दुर्गा खोते ने कैरियर में कई तरह की भूमिका निभाई जो कि केवल लंबे समय तक ही नहीं बल्कि घोटाले से भी अछूते थे। वह भारतीय अभिनेत्री की कई पीढ़ियों के लिए प्रेरणा थीं, जिसमें स्वर्गीय शोभना समर्थ जैसे दिग्गज शामिल थे, जिन्होंने अक्सर कहा था कि वह किस तरह से खोत के उदाहरण से प्रेरित थे। बाद के वर्षों के दौरान, उसने कई महत्वपूर्ण चरित्र भूमिकाएं निभाई, जैसे नायक की मां जोधाबाई का उनके चित्रण, अकबर की रानी अपने पति के प्रति कर्तव्य के बीच फाड़ और मुगल-ए-आज़म (19 60) में अपने बेटे के प्रति प्यार था। 1963 में, उसने मर्चेंट आइवरी की पहली फिल्म, द होल्डरर (1 963) में अभिनय किया, बाद में बॉबी में नायिका की दादी (1973), अभिमान (1973) में हीरो की मासी, और वास्तव में यादगार बिदाई (1974), जहां उन्होंने खेली थी, की भूमिका में अन्य व्यापक रूप से सराहनीय चरित्र भूमिकाएं निभाई। एक माँ, एक बहुत ही संवेदनशील भूमिका है कि एक रो कर सकती है और फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का पुरस्कार प्राप्त कर सकता है। उनकी अंतिम यादगार भूमिका सुभाष घई के करज (1 9 80) में थी, जहां उन्होंने राज किरण की मां की भूमिका निभाई थी और बाद में ऋषि कपूर ने फिल्म में राज किरण की स्क्रीन पर मृत्यु के बाद राज किरण के पुनर्जन्म की भूमिका निभाई थी। फ़िल्मों में प्रवेश पति के निधन के बाद दुर्गा खोटे पर दो बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी भी आ गई थी। ऐसे में उन्होंने फ़िल्मों की राह ली। उस दौर में बहुधा पुरुष ही महिलाओं की भूमिका निभाते थे और अधिकतर घरों में फ़िल्मों को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। दुर्गा खोटे मूक फ़िल्मों के दौर में ही फ़िल्मों में आ गई थी और 'फरेबी जाल' उनकी पहली फ़िल्म थी। बतौर नायिका 'अयोध्येचा राजा' उनकी पहली फ़िल्म थी जो मराठी के साथ साथ हिंदी में भी थी। यह फ़िल्म कामयाब रही और दुर्गा खोटे नायिका के रूप में सिनेमा की दुनिया में स्थापित हो गईं। दुर्गा खोटे की कामयाबी ने कइयों को प्रेरित किया और हिंदी फ़िल्मों से जुड़ी सामाजिक वर्जना टूटने लगी। दुर्गा खोटे ने एक और पहल करते हुए स्टूडियो व्यवस्था को भी दरकिनार कर दिया और फ्रीलांस कलाकार बन गई। स्टूडियो सिस्टम में कलाकार मासिक वेतन पर किसी एक कंपनी के लिए काम करते थे। लेकिन दुर्गा खोटे ने इस व्यवस्था को अस्वीकार करते हुए एक साथ कई फ़िल्म कंपनियों के लिए काम किया। लड़कियों को दिखाई फ़िल्म की राह दुर्गा खोटे के फ़िल्मों में काम करने से पहले पुरुष ही स्त्री पात्र भी निभाते थे। हिन्दी फ़िल्मों के पितामह दादा साहेब फाल्के ने जब पहली हिन्दी फीचर फ़िल्म “राजा हरिश्चंद्र” बनायी तो उन्हें राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती का किरदार निभाने के लिए कोई महिला नहीं मिली। उन्हें मजबूर होकर एक युवक सालुंके से यह भूमिका करानी पडी। इस स्थिति को देखकर दुर्गा खोटे ने फ़िल्मों में काम करने का फैसला किया और उनके इस कदम से सम्मानित परिवारों की लड़कियों के लिए भी फ़िल्मों के दरवाज़े खोलने में मदद मिली। ( 2 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0