मोहम्मद अली जिन्ना जीवनी - Biography of Muhammad Ali Jinnah in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मुहम्मद अली जिन्ना बीसवीं सदी के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे जिन्हें पाकिस्तान के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। वे मुस्लिम लीग के नेता थे जो आगे चलकर पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल बने। पाकिस्तान में, उन्हें आधिकारिक रूप से क़ायदे-आज़म यानी महान नेता और बाबा-ए-क़ौम यानी राष्ट्र पिता के नाम से नवाजा जाता है। मोहम्मद अली जिन्ना का जन्म एक समृद्ध खोजा परिवार में 23 दिसम्बर सन् 1876 में करांची में हुआ था । उन्होंने बैरिस्टर की परीक्षा इंग्लैण्ड से उत्तीर्ण की । वहां से आकर वे बम्बई में वकालत करने लगे । सन् 1913 से 1918 तक वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के समर्थक थे । सन् 1916 में उन्होंने कांग्रेस और मुस्लिम लीग में समझौता करवाया था । 1920 में कांग्रेस की सरकार के विरुद्ध असहयोग नीति के कारण वे कांग्रेस से अलग हो गये । 1928 में उन्होंने साइमन कमीशन के विरोध में मोतीलाल नेहरू और लाला लाजपतराय का साथ दिया । 1928 के बाद जिन्ना ने राजनीतिक नीति में आश्चर्यजनक परिवर्तन करते हुए अपनी जाति का विश्वास प्राप्त करने के लिए साम्प्रदायिक नीति को अपनाया और इसका प्रयोग राजनीति में किया, जिसकी वजह से मुसलमान जाति उन्हें अपना देवता मानने लगी । उन्होंने 1929 में 14 शोर्तों वाला कार्यक्रम लीग के सामने प्रस्तुत किया । केन्द्रीय और प्रान्तीय व्यवस्थापिका में एक तिहाई प्रतिनिधित्व मुसलमानों के लिए मांगा और साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली पर जोर दिया । सन् 1935 के अधिनियम के कार्यान्वित होने के बाद प्रान्तों में उनका प्रभाव मुसलमानों पर बढ़ने लगा । 1944 में उन्होंने मुस्लिम सम्प्रदाय को यह समझाया कि संयुक्त भारत में बहुमत के शासन का अर्थ-सदा के लिए मुसलमानों को गुलाम बनना होगा और इस्लाम संकट में पड़ जायेगा । अपने प्रारम्भिक राजनीतिक जीवन में वे राष्ट्रवादी तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता के प्रतीक माने जाते थे । मुस्लिम लीग में प्रवेश के बाद कट्टर मुसलमानों के सम्पर्क में आकर हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी विचारों को त्याग दिया और साम्प्रदायिकता तथा कांग्रेस विरोधी विचारों को ग्रहण किया । भारतीय मुसलमानों के प्रति कांग्रेस के उदासीन रवैये को देखते हुए जिन्ना ने कांग्रेस छोड़ दी। मुस्लिमों को स्वतंत्र राष्ट्र चाहिये ये भूमिका उन्होंने लीग के व्यासपीठ से पहली बार रखी, उन्होंने देश में मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा और स्वशासन के लिए चौदह सूत्रीय संवैधानिक सुधार का प्रस्ताव रखा। लाहौर प्रस्ताव के तहत उन्होंने मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र का लक्ष्य निर्धारित किया। 1946 में ज्यादातर मुस्लिम सीटों पर मुस्लिम लीग की जीत हुई और मुहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की आजादी के लिए त्वरित कार्रवाई का अभियान शुरू किया। कांग्रेस की कड़ी प्रतिक्रिया के कारण भारत में व्यापक पैमाने पर हिंसा हुई। मुस्लिम लीग और कांग्रेस पार्टी, गठबन्धन की सरकार बनाने में असफल रहे। इस समय जिन का आदर बहोत होने के वजह से मुस्लिमों के एकमेव नेता ऐसी उनकी छवी हुयी। इस प्रभाव के वजह से कॉग्रेस और ब्रिटिशों को उनकी स्वतंत्र राष्ट्र की मांग माननी पड़ी। स्वतंत्र पाकिस्तान के वो पहले गव्हर्नर और घटना समिती के अध्यक्ष थे। राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1896 में जिन्ना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गये। तब तक कांग्रेस भारतीय राजनीतिक का सबसे बड़ा संगठन बन चुका था। सामान्य नरमपन्थियों की तरह जिन्ना ने भी उस समय भारत की स्वतन्त्रता के लिये कोई माँग नहीं की, बल्कि वे अंग्रेजों से देश में बेहतर शिक्षा, कानून, उद्योग, रोजगार आदि के बेहतर अवसर की माँग करते रहे। जिन्ना साठ सदस्यीय इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य बन गये। इस परिषद को कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे और इसमें कई यूरोपीय और ब्रिटिश सरकार के भक्त शामिल थे। जिन्ना ने बाल विवाह निरोधक कानून, मुस्लिम वक्फ को जायज बनाने और साण्डर्स समिति के गठन के लिए काम किया, जिसके तहत देहरादून में भारतीय मिलिट्री अकादमी की स्थापना हुई। जिन्ना ने प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीयों के शामिल होने का समर्थन भी किया था। मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई। शुरु-शुरू में जिन्ना अखिल भारतीय मुस्लिम लीग में शामिल होने से बचते रहे, लेकिन बाद में उन्होंने अल्पसंख्यक मुसलमानों को नेतृत्व देने का फैसला कर लिया। 1913 में जिन्ना मुस्लिम लीग में शामिल हो गये और 1916 के लखनऊ अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1916 के लखनऊ समझौते के कर्ताधर्ता जिन्ना ही थे। यह समझौता लीग और कांग्रेस के बीच हुआ था। कांग्रेस और मुस्लिम लीग का यह साझा मंच स्वशासन और ब्रिटिश शोषकों के विरुद्ध संघर्ष का मंच बन गया। 1918 में जिन्ना ने पारसी धर्म की लड़की से दूसरी शादी की। उनके इस अन्तर्धार्मिक विवाह का पारसी और कट्टरपन्थी मुस्लिम समाज में व्यापक विरोध हुआ। अन्त में उनकी पत्नी रत्तीबाई ने इस्लाम कबूल कर लिया। 1919 में उन्होंने अपनी एक मात्र सन्तान डीना को जन्म दिया। लखनऊ समझौता 1910 ई. में वे बम्बई के मुस्लिम निर्वाचन क्षेत्र से केन्द्रीय लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य चुने गए, 1913 ई. में मुस्लिम लीग में शामिल हुए और 1916 ई. में उसके अध्यक्ष हो गए। इसी हैसियत से उन्होंने संवैधानिक सुधारों की संयुक्त कांग्रेस लीग योजना पेश की। इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई। इसी समझौते को 'लखनऊ समझौता' कहते हैं। कश्मीर मुद्दा तथा मृत्यु मुहम्मद अली जिन्ना ने लीग का पुनर्गठन किया और 'क़ायदे आज़म' (महान नेता) के रूप में विख्यात हुए। 1940 ई. में उन्होंने धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन तथा मुसलिम बहुसंख्यक प्रान्तों को मिलाकर पाकिस्तान बनाने की मांग की। बहुत कुछ उन्हीं वजह से 1947 ई. में भारत का विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना हुई। पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल बनकर उन्होंने पाकिस्तान को एक इस्लामी राष्ट्र बनाया। पंजाब के दंगे तथा सामूहिक रूप से जनता का एक राज्य से दूसरे राज्य को निगर्मन उन्हीं के जीवनकाल में हुआ। भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा भी उन्होंने ही खड़ा किया। 11 सितम्बर, 1948 ई. को कराची में उनकी मृत्यु हो गई। ( 10 ) 6 Votes have rated this Naukri. 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