बालाजी विश्वनाथ जीवनी - Biography of Balaji Vishwanath in Hindi Jivani Published By : Jivani.org बालाजी विश्वनाथ , इन्हें प्रायः पेशवा बालाजी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे और १८वीं सदी के दौरान मराठा साम्राज्य का प्रभावी नियंत्रण इनके हाथों में आ गया। बालाजी विश्वनाथ ने शाहुजी की सहायता की और राज्य पर पकड़ मजबूत बनायी। इसके पहले आपसी युद्ध तथा औरंगजेब के अधीन मुगलों की आक्रमणों के कारण मराठा साम्राज्य की स्थिति कमजोर हो चली थी। बालाजी विश्वनाथ (Balaji Vishwanath) मराठा साम्राज्य के पहले पेशवा थे जिन्होंने पेशवाई की नीव रखकर मराठा साम्राज्य को नई शक्ति दी जब मराठा साम्राज्य शिवाजी की मृत्यु के बाद कमजोर पड़ गया था | छत्रपति साहू के शाषनकाल में उन्होंने गृह युद्दो को जीतकर मुगलों को अनेक बार परास्त किया ,इसी वजह से उन्हें “मराठा साम्राज्य का द्वितीय स्थापक” भी माना जाता है | उनके बाद उनके पुत्र पेशवा बाजीराव ने मराठा साम्राज्य को आधे भारत में फैला दिया था | आइये आपको बालाजी विश्वनाथ (Balaji Vishwanath) के संघर्ष भरी जीवनी से रुबुरु करवाते है | वंश व सेनापति का पद कोंकण के 'चित्तपावन वंश' का ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध था। बालाजी को करों के बारे में अच्छी जानकरी थी, इसलिए शाहू ने उसे अपनी सेना में लिया था। 1669 से 1702 ई. के मध्य बालाजी विश्वनाथ पूना एवं दौलताबाद का सूबेदार रहा। 1707 ई. में 'खेड़ा के युद्ध' में उसने शाहू को समर्थन देते हुए ताराबाई के सेनापति धनाजी जादव को शाहू की ओर करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। धनाजी जादव की मृत्योपरान्त उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव को शाहू ने सेनापति बनाया। परन्तु उसका ताराबाई के प्रति झुकाव देखकर, उसे सेनापति के पद से हटा दिया, और साथ ही उसने नया सेनापति बालाजी विश्वनाथ को बना दिया। पेशवा का पद सेनापति का पद छिन जाने से चन्द्रसेन काफ़ी क्रोधित था, तथा इसे अपना सबसे बड़ा अपमान समझता था। इसीलिए कालान्तर में चन्द्रसेन एवं 'सीमा रक्षक' कान्होजी आंगड़े के सहयोग से ताराबाई ने छत्रपति शाहू एवं उसके पेशवा बहिरोपन्त पिंगले को कैद कर लिया। परन्तु बालाजी की सफल कूटनीति रंग लायी। कान्होजी बगैर युद्ध के ही शाहू की तरफ़ आ गया तथा चन्द्रसेन युद्ध में पराजित हुआ। इस तरह शाहू को अपने को पुनस्र्थापित करने का एक अवसर मिला। 1713 ई. में बालाजी को शाहू ने अपना पेशवा बनाया। राजाराम की मौत के बाद ताराबाई ने सम्भाला मराठा साम्राज्य छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के बाद उनके दो पुत्र सम्भाजी और राजाराम ने मुगल साम्राज्य के खिलाफ अपना अभियान जारी रखा | बादशाह औरंगजेब ने 1686 में दक्कन में प्रवेश किया ताकि वो अनुभवहीन मराठा साम्राज्य का पतन कर सके | औरंगजेब ने अगले 21 वर्षो तक लगातार दक्कन में मराठो के खिलाफ़ लगातार युद्ध जारी रखा | सम्भाजी की निर्मम हत्या और राजाराम की जल्द ही मौत हो जाने के बाद राजाराम की विधवा पत्नी ताराबाई ने मराठा साम्राज्य को सम्भाला क्योंकि उस वक्त सम्भाजी के पुत्र साहू को कमउम्र में ही मुगलों ने बंदी बना लिया था | 1707 में अहमदनगर में 88 वर्ष की उम्र में औरंगजेब की मौत हो गयी और उसकी मौत के साथ मुगल सेना भी बिखर गयी और खजाना भी खाली हो चूका था | उत्तराधिकारी के युद्ध में मुगल साम्राज्य पर राजकुमार मुअज्जम को बहादुर शाह नाम के साथ मुगल सिंहासन पर बिठाया गया | पेशवा पद की वंशागति बालाजी विश्वनाथ द्वारा की गई सेवाओं से मराठा साम्राज्य अपने गौरवपूर्ण अतीत को एक बार फिर से प्राप्त करने में काफ़ी हद तक सफल हो चुका था। इसीलिए उसके द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण सेवाओं का फल राजा शाहू ने उसे उसके जीते जी दे दिया था। शाहू ने पेशवा का पद अब बालाजी विश्वनाथ के परिवार के लिए वंशगत कर दिया। इसीलिए बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा का पद प्रदान कर दिया गया, जो एक वीर, साहसी और एक समझदार राजनीतिज्ञ था। मृत्यु 2 अप्रैल का दिन भारतीय इतिहास के लिए बहुत ही दुखद रहा है क्योंकि इसी दिन सन् 1720 में पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने इस दुनिया को अलविदा कहा था। इनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था तथा उस समय ये किसी ने भी नहीं सोचा था कि एक दिन वो मराठा साम्राज्य को गौरवांवित करेंगे। बालाजी विश्वनाथ को सन् 1713 में पेशवा की उपाधि दी गई थी। पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने सन् 1719 में सैय्यद बंधुओं के कहने पर मुगल सम्राट से संधि की। जिसे सर रिचर्ड टेम्पल ने मराठा साम्राज्य का मैग्राकाटी कहा। इस संधि से मराठों को मुगल राजनीति में हिस्सा लेने का मौका मिला। जब बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हुई तो उन्होंने उससे पहले ही महाराष्ट्र में शाहू की स्थिति काफी दृढ़ कर दी थी। बालाजी विश्वनाथ का मराठा साम्राज्य के लिए इतना कुछ करने के ही कारण उन्हें शाहू ने पेशवा के पद को बालाजी विश्वनाथ के ही परिवार को दे दिया था। जिसके बाद जब बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु हुई तो पेशवा के पद को उनके पुत्र बाजीराव प्रथम को दे दिया गया। ( 11 ) 6 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3