अमोल पालेकर जीवनी - Biography of Amol Palekar in Hindi Jivani Published By : Jivani.org ऐक्टर बनने से पहले अमोल पालेकर थिएटर जगत में निर्देशक के रूप में स्थाई पहचान बना चुके थे। नामचीन निर्देशक सत्यदेव दुबे के साथ उन्होंने मराठी थिएटर में कई नए प्रयोग किए। बाद में 1972 में उन्होंने अपना थिएटर ग्रुप अनिकेत शुरू किया। वे ऐक्टिंग में आने से पहले थिएटर में निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी और बासु भट्टाचार्य उनके नाटक देखने आया करते थे। 1971 में सत्यदेव दुबे की मराठी फिल्म शांतता कोर्ट चालू आहे से अमोल ऐक्टिंग में आए। यह मराठी सिनेमा की उल्लेखनीय फिल्म कही जाती है। हिंदी फिल्मों में उन्होंने सन 1974 में बासु चटर्जी की फिल्म रजनीगंधा से कदम रखा। फिल्म सफल हुई और फिर उनके अनवरत सफर का आगाज हो गया। उन्होंने ऐक्टर के रूप में चितचोर, घरौंदा, मेरी बीवी की शादी, बातों-बातों में, गोलमाल, नरम-गरम, श्रीमान-श्रीमती जैसी कई यादगार फिल्में दीं। वे ज्यादातर फिल्मों में मध्यवर्गीय समाज के नायक का प्रतिनिधित्व करते दिखे। उनकी हास्य फिल्मों को दर्शक आज भी याद करते हैं। उन्हें खुशी है कि वे अपने करियर में फिल्म इंडस्ट्री के श्रेष्ठ निर्देशक और श्रेष्ठ तकनीशियनों के साथ काम कर सके। सन 1981 में मराठी फिल्म आक्रित से अमोल ने फिल्म निर्देशन में कदम रखा। अब तक वे कुल दस हिंदी-मराठी फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। उनकी पिछली हिंदी फिल्म पहेली को ऑस्कर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था जिस पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने निर्देशक के रूप में मनमाफिक फिल्में बनाई। एक्टिंग से ऐसे जुड़ा रिश्ता : अमोल पालेकर की गर्लफ्रेंड थिएटर में दिलचस्पी रखती थीं। जब वह थिएटर में रिहर्सल के लिए जातीं तो अमोल वहां उनका इंतजार किया करते। इसी सिलसिले में एक दिन थिएटर में सत्यदेव दुबे की नजर उन पर पड़ी। दुबे ने उन्हें मराठी नाटक ‘शांताता! कोर्ट चालू आहे’ में ब्रेक दिया। इस नाटक को काफी अच्छा रिव्यू मिला। इसके बाद सत्यदेव दुबे ने अमोल से कहा कि अब जब लोगों ने इसे गंभीरता से लिया है तो उन्हें एक्टिंग की ट्रेनिंग लेनी चाहिए। अगले नाटक के लिए उन्होंने अमोल को कड़ी ट्रेनिंग दी। इस तरह नाटकों में एक्टिंग का सिलसिला काफी आगे बढ़ गया। अमोल पालेकर शुरू से तड़क-भड़क से दूर रहने वाले हैं। वह ऑटोग्राफ देने से भी मना कर दिया करते थे। उनकी छोटी बेटी इसके लिए उन्हें डांटती भी थीं। अमोल ने दो शादियां कीं। पहली पत्नी चित्रा पालेकर से बेटी शलमाली हुईं। वह आजकल ऑस्ट्रेलिया की एक यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं। संध्या गोखले से हुई बेटी का नाम उन्होंने समीहा रखा। उन्होंने कानून की पढ़ाई की है और दस साल न्यूयॉर्क में प्रैक्टिस करने के बाद आजकल समाजसेवा करती हैं। अमोल पालेकर का फिल्मी सफर : अमोल पालेकर ने अपने फिल्मी कॅरियर की शुरुआत एक मराठी फिल्म से की. इसके बाद साल 1974 में उन्हें बसु चटर्जी की रजनीगंधा में काम करने का मौका मिला और इसके बाद तो उन्हें जैसे आम आदमी का आइना मान लिया गया. उन्होंने अधिकतर फिल्मों में कॉमेडियन किरदार किए जो आम आदमी की मनोदशा को दर्शाते थे. उनकी कुछ बेहद सफल फिल्में गोलमाल, नरम-गरम, घरौंदा, बातों-बातों, छोटी सी बात आदि शामिल है. फिल्म गोलमाल के लिए उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया. सिर्फ अभिनय ही नहीं अमोल पालेकर ने बतौर निर्देशक भी कई फिल्में बनाईं जिनमें कच्ची धूप, नकाब और पहेली जैसी कई फिल्में हैं जिन्हें देश भर में काफी प्रशंसा मिली. 1970 के दशक में उनकी गिनती एक सुपरस्टार के तौर पर होती थी. यूं तो उन्हें अधिक मीडिया हाइप नहीं मिली लेकिन उनकी फिल्मों की सफलता ही उनकी कहानी कहती है. समानांतर सिनेमा में उनका कद एक बड़े कलाकार के रूप में रहा. उनकी अभिनय की खास विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने आप को पर्दे पर हमेशा साधारण नायक के रूप में पेश किया. यही वजह की आम आदमी खुद को उनसे जुड़ा हुआ पाता था. अमोल पालेकर ने1974 में ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म से डेब्यू किया था। इसके बाद उनकी दो फ़िल्में 1975 में 'छोटी सी बात' और 1976 में ‘चितचोर’ प्रदर्शित हुई थीं। इन तीनों फ़िल्मों ने मुंबई में सिल्वर जुबली मनायी। अमोल पालेकर ने कैरियर की शुरुआत मराठी मंच से की। सफल अभिनेता और निर्देशक अमोल का जन्म 24 नवंबर, 1944 को बम्बई(अब मुम्बई) में हुआ और वहीं जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़ाई की। पढ़ाई के साथ-साथ थियेटर की ओर भी रुझान था। थियेटर में कैरियर के लिए संघर्ष करने के साथ ही अमोल एक बैंक में क्लर्क का काम भी कर रहे थे। अमोल पालेकर ने अभिनय में साल 1971 में सत्यदेव दुबे की मराठी फ़िल्म 'शांतता कोर्ट चालू आहे' से शुरुआत की। इनकी पहली हिंदी फ़िल्म ‘रजनीगंधा’ की सफलता ने इन्हें इसी तर्ज की कई कम बजट वाली कॉमेडी फ़िल्में दिलाई। बासु चटर्जी और ऋषिकेश मुखर्जी की ‘चितचोर’ (1976), ‘छोटी सी बात’ (1975) तथा ‘गोलमाल’ (1979) 70’ के दशक की सफल कॉमेडी फ़िल्में रहीं। अमोल पालेकर सशक्त और हल्के गुदगुदाते सभी भूमिकाओं में फिट जल्दी ही सिनेमा जगत में जाना-माना नाम बन गए। भीमसेन की ‘घरौंदा’ (1977), श्याम बेनेगल की ‘भूमिका’ (1976) और कुमार साहनी की ‘तंरग’ (1984) अमोल के अभिनय बहुआयामी कला छवि को दर्शाती हैं। अभिनय के साथ निर्देशन भी : अमोल एक अच्छे अभिनेता तो थे ही अच्छे निर्देशक भी हैं। उनकी पहली फ़िल्म निर्देशित फ़िल्म मराठी भाषा की ‘आकृएत’ (1981) थी। इस फ़िल्म में इन्होंने अभिनय भी किया। किसी मनोरोग से पीडि़त व्यक्ति जो हत्याएं करता फिरता है का अभिनय निश्चित ही चुनौतीपूर्ण भूमिका थी। उनकी पहली निर्देशित हिन्दी फ़िल्म ‘अनकही’ (1984) थी। इसके बाद क्रमश: ‘थोड़ा-सा रूमानी हो जाएं ’(1989), ‘दायरा’ (1996) और ‘कैरी’ (2000) सरीखी उत्कृष्ट आलोचनात्मक फ़िल्मों का सफल निर्देशन किया। बड़े पर्दे के साथ ही छोटे पर्दे के लिए ‘कच्ची धूप’ और ‘नकाब’ जैसी धारावाहिकों का निर्देशन भी किया। दायरा, अनाहत, कैरी, समांतर, पहेली , अक्स रचनात्मकता के हर रंग -रूप में ख़ास नजर आते हैं। भाषा, देश, संस्कृति किसी भी आधार पर सिनेमा के विभाजन को नहीं मानते। सम्मान और पुरस्कार : बेहतरीन अभिनय और निर्देशन के लिए अमोल पालेकर को कई पुरस्कार और सम्मान मिले। इनमें शामिल है- फ़िल्म ‘दायरा’ (1996) के लिए पहला राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार और पारिवारिक उत्थान के क्षेत्र में निर्देशित फ़िल्म ‘कल का आदमी’ के लिए सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार। इसके अतिरिक्त ‘गोलमाल’ में अपने रोल के लिए अमोल को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। ( 2 ) 4 Votes have rated this Naukri. 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