मुल्कराज आनंद जीवनी - Biography Of Mulk Raj Anand in Hindi Jivani Published By : Jivani.org नाम :– मुल्कराज आनंद । जन्म :– 12 दिसंबर 1905 पेशावर। पिता : । माता : । पत्नी/पति :– शिरिन वाजिफादर। प्रारम्भिक जीवन : मुलक राज आनंद एक भारतीय लेखक थे, जो परंपरागत भारतीय समाज में गरीब जातियों के जीवन के चित्रण के लिए उल्लेखनीय थे। इंडो-एंग्लियन कथाओं के अग्रदूतों में से एक, वह, आर के नारायण, अहमद अली और राजा राव के साथ, अंतरराष्ट्रीय पाठकों को प्राप्त करने के लिए अंग्रेजी में भारत के पहले लेखकों में से एक थे। आनंद को उनके उपन्यासों और लघु कथाओं के लिए प्रशंसा की जाती है, जिन्होंने आधुनिक भारतीय अंग्रेजी साहित्य के क्लासिक कामों की स्थिति हासिल की है, जो पीड़ितों के जीवन में उनकी समझदार अंतर्दृष्टि और गरीबी के उनके विश्लेषण, शोषण और दुर्भाग्य के विश्लेषण के लिए उल्लेखनीय हैं। वह अंग्रेजी में पंजाबी और हिंदुस्तान मुहावरे को शामिल करने वाले पहले लेखकों में से एक होने के लिए भी उल्लेखनीय है और पद्म भूषण के नागरिक सम्मान प्राप्तकर्ता थे। यह एक विडंबना है कि उन्होंने अपने परिवार की समस्याओं के कारण साहित्यिक कैरियर की शुरुआत की थी। उनका पहला निबंध उनकी चाची की आत्महत्या की प्रतिक्रिया से संबंधित था, जिसे उनके परिवार द्वारा मुसलमान के साथ भोजन साझा करने के कारण बहिष्कृत किया गया था। उनका पहला उपन्यास “अनटचेबल” वर्ष 1935 में प्रकाशित हुआ था, जिसमें उन्होंने भारत की “अछूत” समस्या का बेबाक चित्रण किया था। उनका दूसरा उपन्यास “कुली” एक बाल श्रमिक के रूप में काम कर रहे 15 वर्षीय लड़के पर आधारित था, जो तपेदिक से ग्रस्त होने के कारण मर जाता है। मुल्कराज आनंद ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया था और स्पेनिश नागरिक युद्ध में गणतंत्रवादियों के साथ लड़े थे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने लंदन में बीबीसी के लिए एक पटकथा लेखक के रूप में काम किया था, जहाँ वह जॉर्ज ऑरवेल के मित्र बन गए थे। कुली अन्तर्राष्टीय ख्याति के भारतीय लेखक डाँ मुल्कराज का युगान्तकारी उपन्यास है,जो अपने प्रथम प्रकाशन के कोई 60-65 साल बाद भी प्रांसगिक बना हुआ है। यह हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा इलाके के एक ऐसे अनाथ और विपन्न किशोर को केन्द्र में रखकर लिखा गया है, जिसे पेट भरने के लिए मुम्बई जैसे महानगर की खाक छाननी पड़ी, गलाजत की जिन्दगी जीनी पड़ी और तब भी वह दो दानों का मोहताज बना रहा। क्षयग्रस्त शरीर के बावजूद परिस्थितियाँ उसे हाथ-रिक्शा खींचने वाले कुली का पेशा करने को मजबूर कर देती हैं। तब भी क्या मुन्नू नाम का वह अनाथ-विपन्न किशोर भूख और दुर्भाग्य को पछाड़ने में कामयाब हो पाया। स्थान काल-पात्रों की दृष्टि से बहुत विस्तृत फलक पर रचा गया यह उपन्यास यद्यपि ब्रिटिश भारत में घटित होता है,किन्तु अभावग्रस्त ग्रामीण जीवन को जिन सामाजिक आर्थिक परिस्थितियों से टकराते-जूझते यहाँ दिखाया गया है वे पहले की तुलना में आज और अधिक गम्भीर और अधिक जटिल हुई हैं। साहित्य जगत में मुल्कराज आनंद का नाम हुआ उनके उपन्यास अनटचेबल्स से जिसमें उन्होंने भारत में अछूत समस्या पर बारीक और ठोस चित्रण किया। अनटचेबल्स की भूमिका लिखी थी प्रख्यात अंग्रेज़ी लेखक ई एम फ़ोर्स्टर ने। अपने अगले उपन्यासों कुली, टू लीव्स एंड अ बड, द विलेज, अक्रॉस द ब्लैक वाटर्स और द सोर्ड एंड द सिकल में भी उन्होंने पीड़ितों की व्यथा को उकेरा। भारत की आज़ादी के लिए जारी संघर्ष से प्रभावित होकर मुल्कराज आनंद 1946 में भारत लौट गए। पेशावर में 12 दिसंबर 1905 को पैदा हुए आनंद अमृतसर के खालसा कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद इंग्लैंड चले गए और कैम्ब्रिज तथा लंदन विश्वविद्यालय में पढ़ाई की। पीएचडी की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने लीग ऑफ नेशंस स्कूल ऑफ इंटेलेक्चुअल को-ऑपरेशन जिनेवा में अध्यापन किया। दूसरे विश्व युद्ध के बाद वे भारत लौट आए और तत्कालीन बंबई में स्थायी रूप से रहने लगे। 1948 से 1966 तक उन्होंने देश के कई विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया। बाद में वे ललित कला अकादमी और लोकायत ट्रस्ट से भी जुड़े। 28 दिसंबर 2004 में पुणे में उनका निधन हो गया। वे अंतिम समय तक सक्रिय रहे और साहित्य सृजन और समाज सेवा करते रहे। ( 6 ) 8 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 2