बन्ना सिंह जीवनी - Biography of Bana Sing in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मानद कैप्टन बन्ना सिंह अथवा बाना सिंह परमवीर चक्र से सम्मानित भारतीय भूतपूर्व सैनिक हैं। आपको यह सम्मान वर्ष १९८७ में मिला था जब इन्होंने सियाचिन ग्लेशियर को पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त कराने के अभियान में अप्रतिम शौर्य का प्रदर्शन किया था। अलंकरण के समय आप नायब सूबेदार के पद पर थे जो बाद में क्रमशः सूबेदार, सूबेदार मेजर व मानद कैप्टन बने। भारत की गणतंत्र दिवस परेड का नेतृत्व व भारत के राष्ट्रपति को सर्वप्रथम सलामी देने का अधिकार आपके पास ही सुरक्षित है। पाकिस्तानी सेना के साथ भारतीय सेना की चार मुलाकातें युद्धभूमि में तो हुई हीं, कुछ और भी मोर्चे हैं, जहाँ हिन्दुस्तान के बहादुरों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर कर रख दिया। सियाचिन का मोर्चा भी इसी तरह का एक मोर्चा है, जिसमें जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री के आठवें दस्ते के नायब सूबेदार बाना सिंह को उनकी चतुराई, पराक्रम और साहस के लिए भारत सरकार द्वारा परमवीर चक्र दिया गया। बहादुर बाना सिंह का जन्म 6 जनवरी 1949 को जम्मू और कश्मीर के काद्याल गाँव में हुआ था। 6 जनवरी 1969 को उनका सैनिक जीवन जम्मू कश्मीर लाइट इन्फेंट्री में शुरू हुआ। श्री सिंह को सम्मान देने व उनकी वीरता को याद रखने के लिए सियाचिन में जिस चौकी को बाना सिंह द्वारा फतह किया गया था उसका नाम बाना पोस्ट रख दिया गया। बाना सिंह ने इसी कार्यवाही के लिए परमवीर चक्र पाया था। सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय सीमा में पाकिस्तान द्वारा बनाई गई कायद चौकी को फतह करने के लिए बानासिंह ने अदम्य साहस का परिचय दिया और सैनिकों के साथ बर्फ की बनी उस सपाट दीवार को लांघने में कामयाब हुए जिसे पार करना अब तक सैनिकों के लिए मुश्किल भरा कार्य था। बाना सिंह ने न केवल उसे पार किया, बल्कि उसे पार कर चौकी पर तैनात पाकिस्तानी सैनिकों पर ग्रेनेड और बैनेट से हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया। पाक के स्पेशल सर्विस ग्रुप के कमांडो, जो चौकी पर तैनात थे, मारे गए और बाकी भाग निकले। इस तरह बानासिंह से बहादुरी के साथ सियाचिन पर चौकी को दुश्मन के कब्जे से फतह किया। फौजी जीवन सियाचिन के बारे में दूर बैठकर केवल कल्पना ही की जा सकती है, वह भी शायद बहुत सही ढांग से नहीं। समुद्र तट से 21 हजार एक सौ तिरपन फीट की ऊचाँई पर स्थित पर्वत श्रणी, जहाँ 40 से 60 किलोमीटर प्रति घण्टे की रफ्तार से बर्फानी हवाएँ चलती ही रहती हैं और जहाँ का अधिकतम तापमान -35° C सेल्सियस होता है वहाँ की स्थितियों के बारे में क्या अंदाज लगाया जा सकता है। लेकिन यह सच है कि यह भारत के लिए एक महत्त्वपूर्ण जगह है। दरअसल, 1949 में कराची समझौते के बाद, जब युद्ध विराम रेखा खींची गई थी, तब उसका विस्तार, जम्मू-कश्मीर क्षेत्र में उत्तर की तरफ खोर से लेकर दक्षिण की ओर मनावर तक था। इस तरह यह रेखा उत्तर की तरफ NJ9842 के हिमशैलों (ग्लेशियर्स) की तरह जाती है। इस क्षेत्र में घास का एक तिनका तक नहीं उगता है, साँस लेना तक सर्द मौसम के कारण बेहद कठिन है। लेकिन कुछ भी हो, यह ठिकाना ऐसा है जहाँ भारत, पाकिस्तान और चीन की सीमाएँ मिलती है, इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से इसका विशेष महत्त्व है। हमेशा की तरह अतिक्रमण और उकसाने वाली कार्यवाही पाकिस्तान द्वारा ही यहाँ भी की गई। पहले तो उसने सीमा तय होते समय 5180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जो भारत का होता उसे चीन की सीमा में खिसका दिया। इसके अलावा वह उस क्षेत्र में विदेशी पर्वतारोहियों को और वैज्ञानिक परीक्षणों के लिए बाहर के लोगों को भी बुलवाता रहता है, जब कि वह उसका क्षेत्र नहीं हैं। इसके अतिरिक्त भी उसकी ओर से अनेक ऐसी योजनाओं की खबर आती रहती है जो अतिक्रमण तथा आपत्तिजनक कही जा सकती है। यहाँ हम जिस प्रसंग का ज़िक्र विशेष रूप से कर रहे हैं, वह वर्ष 1987 का है। सेवानिवृत्ति के बाद एनबी उपबाना सिंह को सुबेदार के रूप में पदोन्नत किया गया था और अंततः सुबेदर मेजर के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्हें कप्तान के मानद रैंक दिया गया था। होनी कैप्टन बाना सिंह 31 अक्टूबर 2000 को सेवा से सेवानिवृत हुए। जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने उन्हें प्रति माह 166 रुपये की पेंशन दी। बाना सिंह ने कम राशि के खिलाफ विरोध किया, जिसमें बताया गया कि पंजाब और हिमाचल प्रदेश के पड़ोसी राज्य ने परम वीर चक्र विजेताओं को 10,000 रुपये से अधिक मासिक पेंशन प्रदान की। अक्टूबर 2006 में, कप्तान अमरिंदर सिंह की अगुआई में पंजाब सरकार ने उनके लिए 1,000,000 का नकद पुरस्कार घोषित किया। मार्च 2007 में अमरिंदर के उत्तराधिकारी प्रकाश सिंह बादल ने बाना सिंह को यह चेक पेश किया था। पंजाब सरकार ने उन्हें 2,500,000 रुपये, मासिक वेतन 15,000 रुपये और 25 एकड़ का प्लॉट (वर्थ कॉरस) दिया था, अगर वह चले गए पंजाब को हालांकि, उन्होंने प्रस्ताव से इनकार कर दिया और कहा कि वह जम्मू-कश्मीर के निवासी हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार ने उसके बाद जम्मू के आरएस पुरा इलाके में एक स्टेडियम का नाम रखा और 2010 में इसके विकास के लिए 5,000,000 रुपये की राशि मंजूर की। हालांकि, 2013 में द ट्रिब्यून ने रिपोर्ट किया कि धन जारी नहीं हुआ है, और बाना सिंह मेमोरियल स्टेडियम एक खराब आकार में था ( 1 ) 13 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3