जिगर मुरादाबादी जीवनी - Biography of Jigar Moradabadi in Hindi Jivani Published By : Jivani.org जिगर मुरादाबादी , एक और नाम: अली सिकंदर (1890–1960), 20 वीं सदी के सबसे प्रसिद्ध उर्दू कवि और उर्दू गजल के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक। उनकी अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। जिगर मुरादाबादी (Jigar Moradabadi) की गणना उर्दू के चोटी के शायरों में की जाती है | उनका जन्म 1890 में मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ | उन्होंने विविध विषयों पर लिखा और उनकी रचनाये सादगी से अपूर्व होते हुए भी गहराई से भरपूर होती थी | पढने का ढंग भी उनका ऐसा निराला कि आज तक शायर उनकी नकल करते है | शिक्षा बहुत साधारण ,अंग्रेजी बस नाममात्र को जानते है | शक्ल सुरत भी बहुत साधारण थी लेकिन ये सब कमियाँ अच्छे शेयर कहने की योग्यता तले दबकर रह गयी | शायर बनने से पहले “जिगर” साहब स्टेशनों पर घूम घूमकर चश्मे बेचते थे | उनका पूरा नाम अली सिकन्दर “जिगर” मुरादाबादी (Jigar Moradabadi) था और वे मौलवी अली “नजर” के यहा , जो स्वयं एक अच्छे शायर थे पैदा हुए थे | शाही प्रकोप के कारण पिता दिल्ली छोडकर मुरादाबाद में जा बसे थे | तेरह-चौदह वर्ष की आयु में उन्होंने शेयर कहने शुरू कर दिए थे | पहले वह अपने पिता से संशोधन लेते थे फिर “दाग” देहलवी , मुंशी अमीरुल्ला “तस्लीम” और “रसा” रामपुरी को अपनी गजले दिखाते रहे | उनकी शायरी में सूफियाना अंदाज “असगर” गौंडवी की संगति से आया | शराब पीने की लत उन्हें बुरी तरह लग गयी थी लेकिन एक दिन उन्होंने इससे तौबा कर ली और मरते दम तक हाथ न लगाया | लेकिन इस कारण वे बीमार भी बहुत हुए | फिर उन्होंने सिगरेट पीनी शुरू की | फिर उसे भी छोड़ दिया और ताश खेलने में मन लगाया | “जिगर” बड़े हसमुख और विशाल हृदय व्यक्ति थे | बड़े धार्मिक भी थे लेकिन मजहबी कट्टरता से हमेशा दूर रहे | साहित्यिक जीवन अली सिकंदर से जिगर मुरादाबादी हो जाने तक की यात्रा उनके लिए सहज और सरल नहीं रही थी। हालांकि शायरी उन्हें विरासत में मिली थी। अंग्रेज़ी से बस वाकिफ़ भर थे। पेट पालने के लिए कभी स्टेशन-स्टेशन चश्मे बेचते, कभी कोई और काम कर लिया करते। ‘जिगर’ साहब का शेर पढ़ने का ढंग कुछ ऐसा था कि उस समय के युवा शायर उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ को अपनाने की कोशिश किया करते थे। इतना ही नहीं उनके जैसा होने के लिए नए शायरों की पौध उनकी ही तरह रंग-रूप करने का जतन करती थी। ‘जिगर’ पहले मिर्ज़ा ‘दाग’ के शिष्य थे। बाद में ‘तसलीम’ के शिष्य हुए। इस युग की शायरी के नमूने ‘दागे़जिगर’ में पाये जाते हैं। असग़र’ की संगत के कारण उनके जीवन में बहुत बडा़ परिवर्तन आया। पहले उनके यहाँ हल्के और आम कलाम की भरमार थी। अब उनके कलाम में गम्भीरता, उच्चता और स्थायित्व आ गया। उनके पढ़ने का ढंग इतना दिलकश और मोहक था कि सैंकड़ो शायर उसकी कॉपी करने का प्रयत्न करते थे। निधन जिगर का निधन गोंडा में 9 सितंबर 1960 को हो गया। उनके निधन के पश्चात गोंडा शहर में एक छोटे से आवासीय कॉलोनी का नाम उनकी स्मृति में जिगरगंज रखा गया, जो उनके घर के काफी करीब था। साथ ही वहाँ के एक इंटर्मेडिएट कॉलेज का नाम भी उनके नाम पर "दि जिगर मेमोरियल इंटर कॉलेज" रखा गया। मज़ार-ए-जिगर मुरदाबादी, तोपखाना, गोंडा में स्थित है। एक्लेम जिगर मोरादाबाद गज़ल लिखने के शास्त्रीय विद्यालय के थे और मर्जुह सुल्तानपुरी के गुरु थे, जो भारतीय फिल्म उद्योग में एक प्रमुख गीतकार बने और उर्दू में कई लोकप्रिय गीत लिखे थे। जिगर जनता के साथ बेहद लोकप्रिय थे, जिन्होंने उन्हें पीपुल्स कवि के रूप में माना। जिगर मोरादाबाद उनकी मृत्यु के बाद और भी ज्यादा लोकप्रिय हो गए हैं, क्योंकि उनकी कविता अधिक प्रशंसकों को विशेष रूप से फिल्म प्रेमी के साथ मिलती रहती है, जो उनके गीतों से परिचित हैं। उन्होंने कभी औपचारिक उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की। अब उन्हें सभी समय के महान उर्दू कवियों में से एक माना जाता है। जिगर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में केवल दूसरे कवि थे, उन्हें सम्मानित डी। लिट से सम्मानित किया गया - इस सम्मान को प्राप्त करने वाला पहला व्यक्ति मुहम्मद इकबाल था। फैज अहमद फैज, प्रतिष्ठित उर्दू कवि और शैक्षणिक, ने जिगर मोरादाबाद को अपने क्षेत्र में एक मास्टर शिल्पकार के रूप में माना। अलीगढ़ जिगर के पसंदीदा शहरों में से एक था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र, जो अक्सर मुशैरस में भाग लेते थे, जिसमें दोनों फ़ैज़ और जिगर भाग लेने वाले थे, याद करते हैं कि जिगर अपनी गज़लों के अपने प्रदर्शन के साथ शो चुराएंगे और यह मशैरा का जीवन और आत्मा था। ( 9 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0