बैरम खान जीवनी - Biography of Bairam Khan in Hindi Jivani Published By : Jivani.org बैरम खान अब्दुल रहीम खानेखाना के पिता जाने-माने योद्धा थे। वह अकबर के संरक्षक थे व तुर्किस्तान से आए थे। उन्हीं के संरक्षण में अकबर बड़े हुए लेकिन दरबार के कुछ लोगों ने अकबर को बैरम खान के खिलाफ भड़का दिया और उन्हें संरक्षक पद से हटा दिया गया, वह जब हज के लिए जा रहे थे तो रास्ते में उनकी हत्या कर दी गई। उस समय अब्दुल रहीम ५ साल के थे। उन्हें अकबर ने अपने पास रख लिया। बैरम खाँ तेरह वर्षीय अकबर के अतालीक (शिक्षक) तथा अभिभावक थे। बैरम खाँ खान-ए-खाना की उपाधि से सम्मानित थे। वे हुमायूँ के साढ़ू और अंतरंग मित्र थे। रहीम की माँ वर्तमान हरियाणा प्रांत के मेवाती राजपूत जमाल खाँ की सुंदर एवं गुणवती कन्या सुल्ताना बेगम थी। जब रहीम पाँच वर्ष के ही थे, तब गुजरात के पाटन नगर में सन १५६१ में इनके पिता बैरम खाँ की हत्या कर दी गई। रहीम का पालन-पोषण अकबर ने अपने धर्म-पुत्र की तरह किया। मध्य कालीन युद्धों के अरबी इतिहास ग्रंथ के प्रथम अध्याय में बैरम खां द्वारा बनवाई गई `कल्ला मीनार' का उल्लेख है। इस स्थान का नाम सर मंजिल रखा गया था। सिकंदर शाह सूरी के साथ लड़ने में जितने सिर कटे थे या सैनिक मरे थे, उन्हें बटोर कर उन्हें ईंट, पत्थरें की जगह काम में लाया गया और यह ऊंची मीनार खड़ी की गई थी। मुगल बादशाहों ने और भी कितनी ही ऐसी कल्ला मीनारें युद्ध विजय के दर्प-प्रदर्शन के लिए बनवाई थीं। कल्ला, फारसी में सिर को कहते हैं। बैरम ख़ाँ हुमायूँ का सहयोगी तथा उसके नाबालिग पुत्र अकबर का वली अथवा संरक्षक था। वह बादशाह हुमायूँ का परम मित्र तथा सहयोगी भी था। अपने समस्त जीवन में बैरम ख़ाँ ने मुग़ल साम्राज्य की बहुत सेवा की थी। वंश परिचय बैरम ख़ाँ का सम्बन्ध तूरान (मध्य एशिया) की तुर्कमान जाति से था। हैदराबाद के निज़ाम भी तुर्कमान थे। इतिहासकार कासिम फ़रिश्ता के अनुसार वह ईरान के कराकुइलु तुर्कमानों के बहारलु शाखा से सम्बद्ध था। अलीशकर बेग तुर्कमान तैमूर के प्रसिद्ध सरदारों में से एक था, जिसे हमदान, दीनवर, खुजिस्तान आदि पर शासक नियुक्त किया गया था। अलीशकर की सन्तानों में शेरअली बेग हुआ। तैमूरी शाह हुसेन बायकरा के बाद जब तूरान में सल्तनत बरबाद हुई, तो शेरअली काबुल की तरफ भाग्य परीक्षा करने के लिए आया। उसका बेटा यारअली और पोता सैफअली अफ़ग़ानिस्तान चले आये। यारअली को बाबर ने ग़ज़नी का हाकिम नियुक्त किया। थोड़े ही दिनों के बाद उसके मरने पर बेटे सैफअली को वहीं दर्जा मिला। सैन्य सेवा बैरम ने 16 साल की उम्र में बाबुर की सेवा में प्रवेश किया और भारत के शुरुआती मुगल विजयों में सक्रिय भूमिका निभाई। बाद में बैरम खान ने हुमायूं के अधीन मुगल साम्राज्य की स्थापना के लिए काफी योगदान दिया जब उन्हें मुह्धर (सीलों के रक्षक) की जिम्मेदारी सौंपी गई और बानास, बंगाल और गुजरात में सैन्य अभियानों में भाग लिया। वह हुमायूं के साथ फारस में अपने निर्वासन के दौरान और नौ साल तक अपने राज्यपाल के रूप में सेवा करने से पहले कंधार को जीतने में मदद करता था। 1556 में, उन्होंने हुमायूं की हिंदुस्तान की अगुवाई में कमांडर के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभाई। 1556 में हुमायूं की मृत्यु के बाद, बैरम खान को युवा राजकुमार अकबर पर रीजेंजर नियुक्त किया गया रीजेन्ट के तौर पर, उन्होंने उत्तर भारत में मुगल अधिकार को समेकित किया और सबसे ज्यादा उल्लेखनीय रूप से पानीपत की दूसरी लड़ाई में मुगल सेना का नेतृत्व किया, जो नवंबर 1556 में अकबर और हेमू के बीच लड़ा गया था। बाद के वर्ष बैरम खान एक शिया मुस्लिम थे और उन्हें सुन्नी तुर्क नेताओं से नापसंद किया गया था। एक शिया हालांकि, उन्होंने एक सुप्रसिद्ध सूफी की मस्जिद में शुक्रवार की सेवाएं लीं और 1555 में हुमायूं की वापसी के बाद सिकंदर लोदी के अदालत कवि जामली कानबोहा के बेटे शाह गाडा के लिए भी जिम्मेदार थे, मुगल साम्राज्य में सद्र-शूद्र बने । बैरम ख़ाँ की हत्या ख़ानख़ाना (बैरम ख़ाँ) ने तीसरी बात मंज़ूर कर ली। हज के लिए जहाज़ पकड़ने वह समुद्र की ओर जाता हुआ, पाटन (गुजरात) में पहुँचा। जनवरी, 1561 में वह विशाल सहसलंग सरोवर में नाव पर सैर कर रहा था। शाम की नमाज़ का वक़्त आ गया। ख़ानख़ाना किनारे पर उतरा। इसी समय मुबारक ख़ाँ लोहानी तीस-चालीस पठानों के साथ मुलाकात करने के बहाने वहाँ आ गया। बैरम ख़ाँ हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ा। लोहानी ने पीठ में खंजर मारकर छाती के पार कर दिया। ख़ानख़ाना वहीं गिरकर तड़पने लगा। लोहानी ने कहा-माछीवाड़ा में तुमने मेरे बाप को मारा था, उसी का बदला आज हमने ले लिया। बैरम ख़ाँ का बेटा और भीवी हिन्दी का महान् कवि अब्दुर्रहीम उस समय चार साल का था। अकबर को मालूम हुआ तो उसने ख़ानख़ाना की बेगमों को दिल्ली बुलवाया। बैरम ख़ाँ की बीबी तथा अपनी फूफी (गुलरुख बेगम) की लड़की सलीमा सुल्तान के साथ स्वयं विवाह करके बैरम ख़ाँ के परिवार के साथ घनिष्ठता स्थापित की। सलीमा बानू अकबर की बहुत प्रभावशाली बेगमों में से थी। ( 20 ) 7 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3