लाला हंसराज जीवनी – Biography of Lala Hansraj in Hindi Jivani Published By : Jivani.org लाला हंसराज अविभाजित भारत के पंजाब के आर्यसमाज के एक प्रमुख नेता एवं शिक्षाविद थे। पंजाब भर में दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालयों की स्थापना करने के कारण उनकी कीर्ति अमर है। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उनके बड़े बेटे का नाम बलराज था जिन्हें अंग्रेजों ने देशद्रोह के आरोप में सात वर्ष जेल में बन्द रखा। उनके छोटे बेटे का नाम जोधराज था। उन्होने २२ वर्ष की आयु में डीएवी स्कूल में प्रधानाचार्य के रूप में अवैतनिक सेवा आरम्भ की जिसे २५ वर्षों तक करते रहे। अगले २५ वर्ष उन्होने समाज सेवा के लिये दिये। ७४ वर्ष की आयु में आपका निधन हो गया। हंसराज का जन्म 19 अप्रैल 1864 को पंजाब के होशियारपुर जिले के एक छोटे से शहर, पंजाब में हुआ था। हंसराज के 12 साल बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और उसके बाद उनके बड़े भाई की देखभाल और शिक्षित किया गया था। उसके बाद उसके परिवार लाहौर गए जहां उन्होंने एक मिशनरी स्कूल में शामिल हो गए। इस बीच, उन्होंने स्वामी दयानंद के व्याख्यान को सुना और इसने अपना जीवनकाल हमेशा के लिए बदल दिया। उन्होंने उत्कृष्ट अंकों के साथ अपने बैचलर ऑफ आर्ट्स (बीए) डिग्री पूरी करने के लिए चले गए। वैदिक स्रोत से प्रेरणा लेते हुए, महर्षि दयानंद की स्मृति को चिरस्थाई करने के लिए और 1883 में उनके निधन से हतप्रभ हुए आर्यो में एक बार फिर आशा और आत्मविश्वास का संचार करने के लिए लाहौर आर्य समाज ने निर्णय लिया कि ऐसी शिक्षा संस्था बनाई जाए जो वैदिक मूल्यो को जन जन तक पहुंचाए। युवा वर्ग को विषेश रूप से महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित वैदिक धर्म में दीक्षित करने के लिए शिक्षा का माध्यम ही अनोखा माध्यम माना गया। उसी निर्णय के अनुरूप 1 जून 1886 को लाहौर में दयानंद एंग्लो वैदिक स्कूल की स्थापना की गई। युवा वर्ग को अपनी ओर खींचने के लिए एक संकल्पित युवक ही उस भूमिका में खरा उतर सकता था। धन की कमी के कारण विदेशों में शिक्षित और दीक्षित अनुभवी प्रधानाचार्य को डी ए वी संस्था में लाना कल्पना से परे था। इन परिस्थितियों में एक नवयुवक आगे आया और उन्होनें कहा कि वे डी ए वी स्कूल के मुख्य अध्यापक का पदभार अवैतनिक रूप से स्वीकार करेंगे। यह तो कुंआ अपने आप प्यासे के पास आ गया। और संस्था ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार किया। वो 22 वर्षीय युवक जिन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री अर्जित की थी और कोई नहीं हंसराज जी ही थे। उन दिनों उन्हें उच्च स्तर का सरकारी अफसर का पद सहज रूप से मिल सकता था। किंतु हंसराज जी ने वैदिक धर्म का प्रचार करना और नवयुवकों में दयानंद मिशन को लोकप्रिय करना अपने जीवन का ध्येय माना। यह एक उदाहरण है चरम त्याग का। और वह त्याग मूर्ति हंसराज आजीवन अपने प्रण का पालन करते रहे। हंसराज एक सत्यनिष्ठ आर्य के रूप में हमारे सामने आए। कार्य केवल २२ वर्ष की आयु में डीएवी स्कूल लाहौर के प्रधानाचार्य बने। सन् १८९५ में बीकानेर में आये भीषण अकाल के दौरान दो वर्षों तक बचाव व सहायता का कार्य किया और इसाई मिशनरियों को सेवा के छद्मवेश में पीड़ित जनता का धर्म-परिवर्तन करने से रोका। लाला लाजपत राय इस कार्य में अग्रणी रहे। जोधपुर के अकाल में लोगों की सहायता - १४००० अनाथ बच्चे आर्य आनाथालयों में पालन-पोषण के लिये लिये गये। इसी तरह हंसराज जी के नेतृत्व में सन् १९०५ में कांगड़ा में, १९३५ में क्वेटा में, सन् १९३४ में बिहार में पीड़ितों की सहायता की गयी। स्वामी दयानन्द का प्रभाव सन 1885 में जब वे लाहौर में अपने बड़े भाई मुल्कराज के यहाँ रहकर शिक्षा प्राप्त कर रहे थे, उसी समय लाहौर में स्वामी दयानन्द सरस्वती के सत्संग में जाने का अवसर इन्हें मिला। स्वामी दयानन्द के प्रवचन का युवक हंसराज पर बहुत प्रभाव पड़ा। अब उन्होंने समाज सेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। हंसराज जी आवश्यक कार्यों से बचा सारा समय मोहल्ले के गरीब तथा अनपढ़ लोगों की चिट्ठी-पत्री पढ़ने और लिखने में ही लगा देते थे। विद्यालय की स्थापना स्वामी दयानन्द की स्मृति मे एक शिक्षण संस्था की स्थापना का विचार बहुत समय से चल रहा था। पंरन्तु धन का अभाव इनके रास्ते में आ रहा था। उनके बड़े भाई लाला मुल्कराज स्वंय भी आर्य समाज के विचारों वाले व्यक्ति थे। उन्होंने हंसराज के सामने प्रस्ताव रखा कि वे इस शिक्षा संस्था का अवैतनिक प्रधानाध्यापक बनना स्वीकार कर लें। उनके भरण-पोषण के लिए वे हंसराज को अपना आधा वेतन अर्थात तीस रुपये प्रति मास देते रहेगें। व्यक्तिगत सुख के ऊपर समाज की सेवा को प्रधानता देने वाले हंसराज ने संहर्ष ही इसे स्वीकर कर लिया। इस प्रकार 1 जून, 1886 को महात्मा हंसराज 'दयानन्द एंग्लो-वैदिक हाई स्कूल' लाहौर के अवैतनिक प्रधानाध्यापक बन गए। इस समय उनकी आयु 22 वर्ष थी। राष्ट्रभक्त महात्मा हंसराज एक राष्ट्रभक्त भी थे, परंतु 'असहयोग आंदोलन' के समय उन्होंने डी.ए.वी. कॉलेजों को बन्द करने का घोर विरोध किया था। उनका कहना था कि इन कॉलेजों पर न तो विदेशी सरकार का कोई नियंत्रण है और न ही ये सरकार से किसी प्रकार की सहायता लेते हैं। विरासत आज, हंस राज महिला महा विद्यालय, जलनाधर, पंजाब हंस राज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय सहित, कई शैक्षणिक संस्थानों का नाम है, जहां महात्मा हंस राज कॉलेज रोड विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर के केंद्र में स्थित है। ( 20 ) 33 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3