सेठ गोविन्द दास जीवनी - Biography of Seth Govind Das in Hindi Jivani Published By : Jivani.org सेठ गोविन्द दास का जन्म संवत 1953 (सन् 1896) को विजयादशमी के दिन जबलपुर के प्रसिद्ध माहेश्वरी व्यापारिक परिवार में राजा गोकुलदास के यहाँ हुआ था। राज परिवार में पले-बढ़े सेठजी की शिक्षा-दीक्षा भी आला दर्जे की हुई। अंग्रेजी भाषा, साहित्य और संस्कृति ही नहीं, स्केटिंग, नृत्य, घुड़सवारी का जादू भी इन पर चढ़ा। तभी गांधीजी के असहयोग आंदोलन का तरुण गोविंददास पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैभवशाली जीवन का परित्याग कर वे दीन-दुखियों के साथ सेवकों के दल में शामिल हो गए तथा दर-दर की ख़ाक छानी, जेल गए, जुर्माना भुगता और सरकार से बगावत के कारण पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार भी गंवाया। सेठजी पर देवकीनंदन खत्री के तिलस्मी उपन्यासों 'चन्द्रकांता संतति' की तर्ज पर उन्होंने 'चंपावती', 'कृष्णलता' और 'सोमलता' नामक उपन्यास लिखे, वह भी मात्र सोलह वर्ष की किशोरावस्था में। साहित्य में दूसरा प्रभाव सेठजी पर शेक्सपीयर का पड़ा। शेक्सपीयर के 'रोमियो-जूलियट', 'एज़यू लाइक इट', 'पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर' और 'विंटर्स टेल' नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठजी ने 'सुरेन्द्र-सुंदरी', 'कृष्णकामिनी', 'होनहार' और 'व्यर्थ संदेह' नामक उपन्यासों की रचना की। इस तरह सेठजी की साहित्य-रचना का प्रारंभ उपन्यास से हुआ। इसी समय उनकी रुचि कविता में बढ़ी। अपने उपन्यासों में तो जगह-जगह उन्होंने काव्य का प्रयोग किया ही, 'वाणासुर-पराभव' नामक काव्य की भी रचना की। सन् 1917 में सेठजी का पहला नाटक 'विश्व प्रेम' छपा। उसका मंचन भी हुआ। प्रसिद्ध विदेशी नाटककार इब्सन से प्रेरणा लेकर आपने अपने लेखन में आमूल-चूल परिवर्तन कर डाला। उन्होंने नई तकनीक का प्रयोग करते हुए प्रतीक शैली में नाटक लिखे। 'विकास' उनका स्वप्न नाटक है। 'नवरस' उनका नाट्य-रुपक है। हिन्दी में मोनो ड्रामा पहले-पहल सेठजी ने ही लिखे। सेठजी के जीवन में ही भारत और भारतियों पर मार्क्सवाद का प्रभाव पड़ना परमभ हो गया था.विश्व स्तर पर मार्क्सवादी शक्तियां अपनी विचार्दारा को भारत पर भी लादना चाहती थीं.दूसरी और, यूरोपीय विचारधारा का देश में अन्धानुकरण भी फैशन के रूप में तेजी से सामने आया था.हिंदी इसी दो मुहे साप के बीच अपनी मौलिकता खोने लगी थी. सेठ जी भारतीय संकृति यानी भारतीय चिंतन और जीवन धारा पर हो रहे हमले और उसके प्रभाव को अपने अंत:करण में महसूसने लगे थे. उन्होंने चेताया था," हमें न तो साम्यवादी विचारधारा और न यूरोपीय विचारधारा की आवश्यकता है. हमारी विचारधारा तो हमारी माटी में उपजेगी.हमारे चिंतन से सामने आयेगी. हम जब अपने ह्रदय से गुलामी के दिनों में बनी तस्वीरों से अंग्रेजों द्वारा गढ़े गए झूठे इतिहासों से मुक्त होंगे तभी हमारा भारतवर्ष समुन्नत होगा. अंग्रेजों का इतिहास भ्रम पैदा करने वाला था. उन्ग्रेजों ने यह जताने की झूठी कोशिस की कि भारतीय आर्य भारत के रहने वाले नहीं थे. इनका सम्बन्ध यूरोपीय या अन्य संस्कृतियों से सिर्फ इतना है कि भारत ने उन्हें प्रारंभिक ज्ञान दिया, भाषा दी. अक्षर दी और सामाजिक आदमी का जीवन दिया. कहने का तात्पर्य यह है कि सेठ जी सम्पूर्ण भारतीय थे और उनकी आत्मा में मा भारती का वास था. वैभवशाली जीवन का परित्याग गांधी जी के असहयोग आंदोलन का तरुण गोविंद दास पर गहरा प्रभाव पड़ा और वैभवशाली जीवन का परित्याग कर वे दीन-दुखियों के साथ सेवकों के दल में शामिल हो गए तथा दर-दर की ख़ाक छानी, जेल गए, जुर्माना भुगता और सरकार से बगावत के कारण पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकार भी गंवाया। रचनाएं - 1. कर्तव्य (नाटक ) 2. पंचभूत (एकांकी संग्रह) 3. गरीबी और अमीरी ( नाटक ) भाषा-शैली- भाषा- सेठ गोविंददास मुख्यतः नाटककार हैं। आपकी भाषा शुध्द साहित्यिक खड़ी बोलीहै। भाषा भाव,विषय एवं पात्रानुकूल है । आपकी रचनाओं में तत्सम शब्दों के साथ-साथ, तदभव,देशज एवं उर्दू आदि शब्दों का सुन्दर समावेश हुआ है। चित्रोपमता, सजीवता एवं प्रवाहशीलता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषता है । शैली- सेठ गोविन्ददास जी की शैली शिल्प और भाव प्रधान है । इन्होने मुख्यतः नाट्यशैली का प्रयोग किया है। आपकी नाटकों में चरित्र-चित्रण और संवाद की गतिशीलता के दर्शन सहज ही किए जा सकते हैं। साहित्य में स्थान- सेठ गोविन्ददास गाँधीवादी थे। विचारों की उच्चता, आचरण की पवित्रता और जीवन की सादगी आपके व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषता है । प्रसिद्ध नाटक और एकांकीकार राष्ट्रीयचेतना के सर्जक के रूप में आपका स्थान महत्वपूर्ण है। शेक्सपीयर से प्रभावित साहित्य में दूसरा प्रभाव सेठ जी पर शेक्सपीयर का पड़ा। शेक्सपीयर के 'रोमियो-जूलियट', 'एज़यू लाइक इट', 'पेटेव्कीज प्रिंस ऑफ टायर' और 'विंटर्स टेल' नामक प्रसिद्ध नाटकों के आधार पर सेठ जी ने 'सुरेन्द्र-सुंदरी', 'कृष्णकामिनी', 'होनहार' और 'व्यर्थ संदेह' नामक उपन्यासों की रचना की। इस तरह सेठ जी की साहित्य-रचना का प्रारंभ उपन्यास से हुआ। इसी समय उनकी रुचि कविता में बढ़ी। अपने उपन्यासों में तो जगह-जगह उन्होंने काव्य का प्रयोग किया ही, 'वाणासुर-पराभव' नामक काव्य की भी रचना की। नाटक सन 1917 में सेठ जी का पहला नाटक 'विश्व प्रेम' छपा। उसका मंचन भी हुआ। प्रसिद्ध विदेशी नाटककार इब्सन से प्रेरणा लेकर आपने अपने लेखन में आमूल-चूल परिवर्तन कर डाला। उन्होंने नई तकनीक का प्रयोग करते हुए प्रतीक शैली में नाटक लिखे। 'विकास' उनका स्वप्न नाटक है। 'नवरस' उनका नाट्य-रुपक है। हिन्दी में मोनो ड्रामा पहले-पहल सेठ जी ने ही लिखे। भारतीय संस्कृति के संवाहक हिन्दी भाषा की हित-चिंता में तन-मन-धन से संलग्न सेठ गोविंद दास हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अत्यंत सफल सभापति सिद्ध हुए। हिन्दी के प्रश्न पर इन्होंने कांग्रेस की नीति से हटकर संसद में दृढ़ता से हिन्दी का पक्ष लिया। सेठ भारतीय संस्कृति के प्रबल अनुरागी तथा हिन्दी भाषा के प्रबल पक्षधर थे। ( 20 ) 7 Votes have rated this Naukri. 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