जाकिर हुसैन जीवनी - Biography of Zakir Hussain in Hindi Jivani Published By : Jivani.org डॉ जाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी, 1897 को हैदराबाद आंध्रप्रदेश के सुम्भ्रांत परिवार में हुआ। माता नाजनीन बेगम का प्लेग की बीमारी से ग्रस्त होने के कारण 1911 मे इंतकाल हो गया। हुसैन के जन्म के थोड़े समय बाद ही परिवार उत्तर प्रदेश आकर बस गया। कुछ समय बाद हुसैन ने अपने पिता को भी खो दिया। परिवार शिक्षित और आर्थिक रूप से संपन्न था जिसकी झलक हुसैन के व्यक्तित्व पर साफ दिखाई पड़ती थी| शिक्षा के प्रति लगाव उन्हें अपने पिता से विरासत में मिला था। पिता ने भी कानून के क्षेत्र में अपनी अच्छी जगह प्राप्त की थी। शिक्षा के महत्व को वे भली-भांति जानते थे। यही वजह है कि हुसैन ने माता-पिता को खो देने के बाद भी पिता की इच्छा पूर्ती के लिए अपनी पढ़ाई बिना किसी रुकावट के जारी रखी। प्रारंभिक शिक्षा इस्लामिया हाई स्कूल, इटावा में हुई। फिर कानून की पढ़ाई के लिए ऐंग्लो-मुस्लिम ऑरिएंटल कॉलेज मे दाखिला लिया, जिसे अब अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है। यहाँ से M.A. करने के बाद हुसैन जर्मनी चले गए। जर्मनी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पी.एच.डी की डिग्री प्राप्त की। वे एक प्रतिभाशाली छात्र के साथ-साथ एक कुशल वक्ता भी थे। 1927 में जब वह भारत लौटे उस समय जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी जिसकी नींव उन्होंने जर्मनी जाने से पहले खुद रखी थी, अब बंद होने के कगार पर थी। तब उन्होंने इसे बंद होने से रोकने और इसकी दशा सुधारने के लिए इसका पूर्ण संचालन अपने कंधो पर ले लिया। अगले 20 वर्षों तक उन्होंने इस संस्थान को बहुत अच्छे ढंग से चलाया। वह एक विद्वान और पुस्तको के प्रेमी थे | नम्रता और सब धर्मो का आदर करना उनके गुण थे जिन्हें बालक जाकिर हुसैन ने भी अपनाया | इटावा से उन्होंने मैट्रिक किया और उसके बाद अलीगढ़ में मुस्लिम एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज में दाखिल हो गये |एम.ए. की परीक्षाये होने वाली थी | वह उन दिनों पढने के साथ पढाने का काम भी करते थे तभी महात्मा गांधी अलीगढ़ आये और उन्होंने असहयोग आन्दोलन का बिगुल फूंका | गांधीजी के असहयोग आन्दोलन ने विशेष रूप से 1921 के आन्दोलन में अनेक भारतीय युवको के जीवन की धारा ही बदल दी | जाकिर हुसैन जिस कॉलेज में पढ़ते थे वहा के छात्रों में दो दल हो गये | एक असहयोग आन्दोलन के पक्ष में था दूसरा विरोध में | बड़ी गरमागरमी हुयी , बहस-मुबाहिसे हुए परन्तु जाकिर हुसैन कॉलेज छोड़ने के अपने निश्चय पर अटल रहे | प्रिंसिपल ने उन्हें बहुतेरा समझाया कि एम.ए. कर लो , उसके बाद तुम्हे बढिया नौकरी दिलवा दी जायेगी पर न तो किसी प्रलोभन में आये और न अपने निश्चय से डगे | उन्होंने गांधीजी के आह्वान पर कॉलेज छोड़ दिया | इसके बाद उन्होंने अलीगढ़ में जामिया मिलिया इस्लामिया की नींव डाली | जाकिर हुसैन पहले ही गांधीजी , मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना आजाद के विचारो से अत्यधिक प्रभावित हो चुके थे अत: उन्होंने ज्यादा सोचने की आवश्यकता नही समझी | अपने इस एतेहासिक निर्णय की चर्चा करते हुए बाद में एक बार उन्होंने कहा था “अपनी ख्वाहिश से किया गया मेरी जिन्दगी का यह पहला अहम फैसला था भारत लौटने के बाद की गतिविधियां डॉ॰ जाकिर हुसैन उच्च शिक्षा के लिए जर्मनी गए थे परन्तु जल्द ही वे भारत लौट आये। वापस आकर उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया को अपना शैक्षणिक और प्रशासनिक नेतृत्व प्रदान किया। विश्वविद्यालय वर्ष 1927 में बंद होने के कगार पर पहुँच था, लेकिन डॉ॰ जाकिर हुसैन के प्रयासों की वजह यह शैक्षिक संस्थान अपनी लोकप्रियता बरकरार रखने में कामयाब रहा था। उन्होंने लगातार अपना समर्थन देना जारी रखा, इस प्रकार उन्होंने इक्कीस वर्षों तक संस्था को अपना शैक्षिक और प्रबंधकीय नेतृत्व प्रदान किया। उनके प्रयासों की वजह से इस विश्वविद्यालय ने ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के लिए संघर्ष में योगदान दिया। एक शिक्षक के रूप में डॉ॰ जाकिर हुसैन ने महात्मा गांधी और हाकिम अजमल खान के आदर्शों को प्रचारित किया। उन्होंने वर्ष 1930 के दशक के मध्य तक देश के कई शैक्षिक सुधार आंदोलन में एक सक्रिय सदस्य के रूप में कार्य किया। डॉ॰ जाकिर हुसैन स्वतंत्र भारत में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति (पहले इसे एंग्लो-मुहम्मडन ओरिएंटल कॉलेज के नाम से जाना जाता था) चुने गए। वाइस चांसलर के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान डॉ॰ जाकिर हुसैन ने पाकिस्तान के रूप में एक अलग देश बनाने की मांग के समर्थन में इस संस्था के अन्दर कार्यरत कई शिक्षकों को ऐसा करने से रोकने में सक्षम हुए. डॉ॰ जाकिर हुसैन को वर्ष 1954 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। डॉ॰ जाकिर हुसैन को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में अपने कार्यकाल के अंत में राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया था। इस प्रकार वे वर्ष 1956 में भारतीय संसद के सदस्य बन गये। वे केवल एक वर्ष के लिए बिहार के राज्यपाल बनाए, पर बाद में वे पांच वर्ष (1957 से 1962) तक इस पद पर बने रहे। कार्यक्षेत्र डॉ. ज़ाकिर हुसैन भारत के राष्ट्रपति बनने वाले पहले मुसलमान थे। देश के युवाओं से सरकारी संस्थानों का वहिष्कार की गाँधी की अपील का हुसैन ने पालन किया। उन्होंने अलीगढ़ में मुस्लिम नेशनल यूनिवर्सिटी (बाद में दिल्ली ले जायी गई) की स्थापना में मदद की और 1926 से 1948 तक इसके कुलपति रहे। महात्मा गाँधी के निमन्त्रण पर वह प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष भी बने, जिसकी स्थापना 1937 में स्कूलों के लिए गाँधीवादी पाठ्यक्रम बनाने के लिए हुई थी। 1948 में हुसैन अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने और चार वर्ष के बाद उन्होंने राज्यसभा में प्रवेश किया। 1956-58 में वह संयुक्त राष्ट्र शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति संगठन (यूनेस्को) की कार्यकारी समिति में रहे। 1957 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया और 1962 में वह भारत के उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए। 1967 में कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में वह भारत के राष्ट्रपति पद के लिए चुने गये और मृत्यु तक पदासीन रहे। अनुशासनप्रिय व्यक्तित्त्व डॉ. ज़ाकिर हुसैन बेहद अनुशासनप्रिय व्यक्तित्त्व के धनी थे। उनकी अनुशासनप्रियता नीचे दिये प्रसंग से समझा जा सकता है। यह प्रसंग उस समय का है, जब डॉ. जाकिर हुसैन जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति थे। जाकिर हुसैन बेहद ही अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। वे चाहते थे कि जामिया मिलिया इस्लामिया के छात्र अत्यंत अनुशासित रहें, जिनमें साफ-सुथरे कपड़े और पॉलिश से चमकते जूते होना सर्वोपरि था। इसके लिए डॉ. जाकिर हुसैन ने एक लिखित आदेश भी निकाला, किंतु छात्रों ने उस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। छात्र अपनी मनमर्जी से ही चलते थे, जिसके कारण जामिया विश्वविद्यालय का अनुशासन बिगड़ने लगा। ( 10 ) 0 Votes have rated this Naukri. 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