नेल्ली सेनगुप्ता जीवनी - Biography of Nellie Sengupta in Hindi Jivani Published By : Jivani.org नेल्ली सेनगुप्ता (1886-19 73) एक अंग्रेजी स्त्री थी जो भारतीय स्वतंत्रता के लिए लड़े। 1933 में कलकत्ता में अपने 47 वें वार्षिक सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए थे। कोलकाता कांग्रेस अधिवेशन (1933) की अध्यक्ष रहीं नेली सेनगुप्त कैम्ब्रिज, इंग्लैंड में पैदा हुईं। उन्होंने 1904 में सीनियर कैम्ब्रिज पास की। भारत के राष्ट्रवादी नेता यतीन्द्र मोहन सेनगुप्त से प्रेम विवाह (1909) के पूर्व वे नेली ग्रे थीं। नेली कांग्रेस अध्यक्ष पद संभालने वाली तीसरी महिला थीं। उनके पूर्व यह पद ऐनी बेसेंट (1917) और सरोजिनी नायडू (1925) ने सुशोभित किया था। ब्याह के बाद नेली उनके पति के साथ चटगाँव आईं और उनकी सहचरी के रूप में 1921 से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। उन्होंने पति की जेल यात्राओं के दौरान आमसभाओं को संबोधित किया और जेल गईं। 'नेली के निधन पर अक्टूबर 1973 में प्रधानमंत्री (स्व.) इंदिरा गाँधी ने कहा था, 'इंग्लैंड में जन्म लेने के बावजूद, यह उनकी व्यक्तिगत निष्ठा, भारतीय समाज की सेवा और साहस का ही परिणाम था कि संकट के समय उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष जैसा जिम्मेदारी का पद दिया गया था।' नेली सेनगुप्त ने 1931 में दिल्ली में अँगरेजों द्वारा गैर कानूनी घोषित सभा में आजादी की माँग के लिए भाषण देने के कारण चार माह की सजा भुगती। तीस के दशक में जब कई कांग्रेसी नायक जेल में थे, तब उन्होंने निर्भीक होकर राष्ट्रपे्रेम का प्रचार किया। 1933 के कोलकाता कांग्रेस के लिए चुने गए अध्यक्ष मालवीयजी जब पकड़े गए तब नेली एकमत से अध्यक्ष चुनी गईं। प्रशासन की चेतावनी के बाद भी वे आमसभा में बोलीं और पकड़ी गईं। वे कोलकाता कॉर्पोरेशन की एल्डरमैन रहीं। 1940 व 46 में बंगाल लेजिस्लेटिव असेंबली में वे निर्विरोध चुनी गईं। विभाजन के बाद वे पाकिस्तान में रहीं और बाद में उपचार हेतु कोलकाता आईं, जहाँ उनका 1973 में निधन हुआ। परिवार जन्म एडिथ एलेन ग्रे, वह फ्रेडरिक और एडिथ हेनरीटा ग्रे की बेटी थीं। वह कैंब्रिज में पैदा हुआ और लाया गया था, जहां उनके पिता एक क्लब में काम करते थे, एक युवा लड़की के रूप में, वह अपने पैतृक घर में दर्ज होने वाले डाउनिंग कोलेग्यूहो में रहने वाले एक युवा बंगाली छात्र के साथ प्यार में पड़ गया। माता-पिता के विरोध के बावजूद, उन्होंने जतिन्द्रमोहन से शादी की और उसके साथ कलकत्ता वापस लौटे। नाली के रूप में वह जाना जाता था और जतिन के दो बेटे सिशिर और अनिल थे। क्रांतिकारी गतिविधि वर्ष 1921 के 'असहयोग आन्दोलन' में जब उनके पति जतीन्द्र मोहन सेनगुप्त कूद पड़े तो नेली ने भी सुख-सुविधा का जीवन त्याग कर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का निश्चय कर लिया। असम-बंगाल की रेल हड़ताल के सिलसिले में जब जतीन्द्र मोहन गिरफ्तार हुए तो उनके बाद नेली ने मोर्चा संभाल लिया। उन्होंने खद्दर बेचने पर लगा प्रतिबंध तोड़ा, जिस कारण अंग्रेज़ पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और जेल में डाल दिया। कांग्रेस की अध्यक्षता नेली सेनगुप्त का सबसे साहसपूर्ण कार्य था, सन 1933 की कोलकाता कांग्रेस की अध्यक्षता। इस अधिवेशन के लिए निर्वाचित अध्यक्ष महामना मदन मोहन मालवीय पहले ही गिरफ्तार कर लिए गए थे। इस पर चुपचाप नेली को अध्यक्ष चुन लिया गया। पर ब्रिटिश सरकार अधिवेशन रोकने के लिए हर उपाय कर रही थी। जो स्वागताध्यक्ष बनाया जाता उसे गिरफ्तार कर लिया जाता, जो स्थान निर्धारित होता, उस पर पुलिस कब्ज़ा कर लेती। इस पर लोगों ने बिना विचार किये 'इसप्लेनेड' नामक स्थान में अधिवेशन आयोजित किया और अध्यक्ष पद से नेली ने भाषण दिया। उन्हें तुरन्त गिरफ्तार कर लिया गया। उनके पति पहले से ही जेल में बन्द थे। बंगाल असेम्बली' की सदस्य नेली सेनगुप्त वर्ष 1940 और 1946 में निर्विरोध 'बंगाल असेम्बली' की सदस्य चुनी गई थीं। 1947 के बाद वे पूर्वी बंगाल में ही रहीं और 1954 में निर्विरोध पूर्वी पाकिस्तान असेम्बली की सदस्य बनीं। आजादी के बाद स्वतंत्रता के पश्चात, उन्होंने तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू के विशिष्ट अनुरोध पर अपने पति के चटगांव में पूर्व पाकिस्तान में रहने का फैसला किया, जिन्होंने पूर्वी पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक के हितों की देखभाल करने के लिए कहा। 1954 में पूर्व पाकिस्तान विधान सभा में उन्हें निर्विरोध [उद्धरण वांछित] चुना गया। वह अल्पसंख्यक बोर्ड के सदस्य थे और एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता रहे। जब 1 9 71 में बांग्लादेश आया था, तब वह चटगांव में रहती रही और बंगलादेश के प्रधान मंत्री शेख मुजीबुर रहमान ने इसे अच्छी तरह से देखभाल की। 1972 में उसने अपने कूल्हे को तोड़ दिया और इंदिरा गांधी के हस्तक्षेप के माध्यम से उन्हें कलकत्ता लाया गया जहां उन्हें संचालित किया गया और भारतीय चिकित्सा संस्थान द्वारा सभी चिकित्सा व्यय का भुगतान किया गया। उन्हें कलकत्ता में जबरदस्त स्वागत किया गया था और दोनों सरकार और लोगों ने अपने पति देशप्राति जतिन्द्र मोहन सेनगुप्ता और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के लिए उनके काम के साथ दोनों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए सम्मानित किया था। 1973 में वह कलकत्ता में मृत्यु हो गई निधन भारत की आज़ादी में योगदान देने वाली नेली सेनगुप्त जब बहुत बीमार हुईं तो वर्ष 23 अक्टूबर, 1973 में इलाज के लिए कोलकाता आयीं, तभी उनका देहान्त हुआ। ( 15 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0