मातंगीनी हज़रा जीवनी - Biography ofMatangini Hazra in Hindi Jivani Published By : Jivani.org मातंगीनी हज़रा (1869-19 42) एक भारतीय क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया जब तक कि 29 सितंबर, 1942 को तमलुक पुलिस स्टेशन (पूर्वी मिदनापुर जिले के) के सामने ब्रिटिश भारतीय पुलिस ने उन्हें मार डाला, जब तक उन्हें प्यार नहीं हुआ। गांधी बुरी के रूप में जाना जाता है, बूढ़ी औरत गांधी के लिए बांग्ला मातंगिनी हाजरा का जन्म पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) मिदनापुर जिले के होगला ग्राम में एक अत्यन्त निर्धन परिवार में हुआ था। गरीबी के कारण 12 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह ग्राम अलीनान के 62वर्षीय विधुर त्रिलोचन हाजरा से कर दिया गया। इस पर भी दुर्भाग्य उनके पीछे पड़ा रहा। छह वर्ष बाद वह निःसन्तान ही विधवा हो गयीं। पति की पहली पत्नी से उत्पन्न पुत्र उससे बहुत घृणा करता था। अतः मातंगिनी एक अलग झोपड़ी में रहकर मजदूरी से जीवनयापन करने लगीं। गाँव वालों के दुःख-सुख में सदा सहभागी रहने के कारण वे पूरे गाँव में माँ के समान पूज्य हो गयीं। 1932 में गान्धी जी के नेतृत्व में देश भर में स्वाधीनता आन्दोलन चला। वन्देमातरम् का घोष करते हुए जुलूस प्रतिदिन निकलते थे। जब ऐसा एक जुलूस मातंगिनी के घर के पास से निकला, तो उसने बंगाली परम्परा के अनुसार शंख ध्वनि से उसका स्वागत किया और जुलूस के साथ चल दी। तामलुक के कृष्णगंज बाजार में पहुँचकर एक सभा हुई। वहाँ मातंगिनी ने सबके साथ स्वाधीनता संग्राम में तन, मन, धन से संघर्ष करने की शपथ ली। मातंगिनी को अफीम की लत थी; पर अब इसके बदले उनके सिर पर स्वाधीनता का नशा सवार हो गया। 17 जनवरी, 1933 को ‘करबन्दी आन्दोलन’ को दबाने के लिए बंगाल के तत्कालीन गर्वनर एण्डरसन तामलुक आये, तो उनके विरोध में प्रदर्शन हुआ। वीरांगना मातंगिनी हाजरा सबसे आगे काला झण्डा लिये डटी थीं। वह ब्रिटिश शासन के विरोध में नारे लगाते हुई दरबार तक पहुँच गयीं। इस पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और छह माह का सश्रम कारावास देकर मुर्शिदाबाद जेल में बन्द कर दिया। क्रांतिकारी गतिविधियाँ सन 1930 के आंदोलन में जब उनके गाँव के कुछ युवकों ने भाग लिया तो मातंगिनी ने पहली बार स्वतंत्रता की चर्चा सुनी। 1932 में उनके गाँव में एक जुलूस निकला। उसमें कोई भी महिला नहीं थी। यह देखकर मातंगिनी जुलूस में सम्मिलित हो गईं। यह उनके जीवन का एक नया अध्याय था। फिर उन्होंने गाँधीजी के 'नमक सत्याग्रह' में भी भाग लिया। इसमें अनेक व्यक्ति गिरफ्तार हुए, किंतु मातंगिनी की वृद्धावस्था देखकर उन्हें छोड़ दिया गया। उस पर मौका मिलते ही उन्होंने तामलुक की कचहरी पर, जो पुलिस के पहरे में थी, चुपचाप जाकर तिरंगा झंडा फहरा दिया। इस पर उन्हें इतनी मार पड़ी कि मुँह से खून निकलने लगा। सन 1933 में गवर्नर को काला झंडा दिखाने पर उन्हें 6 महीने की सज़ा भोगनी पड़ी। भारत छोड़ो आंदोलन में भारत छोड़ो आंदोलन के एक भाग के रूप में, कांग्रेस के सदस्यों ने मिदनापुर जिले के विभिन्न पुलिस स्टेशनों और अन्य सरकारी कार्यालयों को लेने की योजना बनाई। यह जिला में ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने और एक स्वतंत्र भारतीय राज्य की स्थापना में एक कदम था। मातंगिनी हजरा, जो 73 वर्ष का था उस समय के वर्षों में, तमिलनाडु थाने पर कब्जा करने के उद्देश्य से छह हजार समर्थकों की जुलूस, ज्यादातर महिला स्वयंसेवकों का नेतृत्व किया। जब जुलूस शहर के बाहरी इलाके में पहुंच गया, तो उन्हें क्राउन पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता की धारा 144 के तहत विस्थापित करने का आदेश दिया गया। जैसे ही वह आगे बढ़े, मातंगीनी हाज़रा को एक बार गोली मार दी गई। जाहिर है, उसने आगे कदम रखा था और पुलिस को अपील की थी कि वह भीड़ पर शूट न करें। भारत छोड़ने के दौरान, मिदनापुर के लोगों ने थाना, अदालत और अन्य सरकारी कार्यालयों पर कब्जा करने के लिए हमले की योजना बनाई थी। मातंगिनी, जो तब 72 वर्ष के थे, ने जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस ने आग लगा दी एक बुलेट ने अपना हाथ मारा निश्चय ही उसने पुलिस को अपील करने के लिए अपने स्वयं के भाइयों पर गोली मारने की कोशिश नहीं की। एक और बुलेट ने उसके माथे को छेड़ा। वह नीचे गिर गई, औपनिवेशिक आंदोलन के प्रतीक, उसके हाथ में स्वतंत्रता का झंडा पकड़ कर। [ साहसिक महिला इसके बाद सन 1942 में 'भारत छोड़ो आन्दोलन' के दौरान ही एक घटना घटी। 29 सितम्बर, 1942 के दिन एक बड़ा जुलूस तामलुक की कचहरी और पुलिस लाइन पर क़ब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ा। मातंगिनी इसमें सबसे आगे रहना चाहती थीं। किंतु पुरुषों के रहते एक महिला को संकट में डालने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। जैसे ही जुलूस आगे बढ़ा, अंग्रेज़ सशस्त्र सेना ने बन्दूकें तान लीं और प्रदर्शनकारियों को रुक जाने का आदेश दिया। इससे जुलूस में कुछ खलबली मच गई और लोग बिखरने लगे। ठीक इसी समय जुलूस के बीच से निकलकर मातंगिनी हज़ारा सबसे आगे आ गईं। शहादत मातंगिनी ने तिरंगा झंडा अपने हाथ में ले लिया। लोग उनकी ललकार सुनकर फिर से एकत्र हो गए। अंग्रेज़ी सेना ने चेतावनी दी और फिर गोली चला दी। पहली गोली मातंगिनी के पैर में लगी। जब वह फिर भी आगे बढ़ती गईं तो उनके हाथ को निशाना बनाया गया। लेकिन उन्होंने तिरंगा फिर भी नहीं छोड़ा। इस पर तीसरी गोली उनके सीने पर मारी गई और इस तरह एक अज्ञात नारी 'भारत माता' के चरणों मे शहीद हो गई। ( 15 ) 10 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3