ई० एम० एस० नंबूदरीपाद जीवनी Biography of E. M. S. Namboodiripad in Hindi Jivani Published By : Jivani.org ईएमएस नम्बूदिरीपाद जन्म आज के मल्लापुरम ज़िले में पेरिंथलामन्ना तालुक के एलमकुलम गाँव में हुआ था। उनके पिता परमेश्वरन बड़े जमींदार थे। युवावस्था में नम्बूदिरीपाद जाति प्रथा के ख़िलाफ़ चलने वाले सुधार आन्दोलन की तरफ आकर्षित हुए। प्रगतिशील नम्बूदिरी ने युवक संगठन 'वाल्लुवानाडु योगक्षेम सभा' के पदाधिकारी के रूप में जम कर काम किया। जिस काल में अधिकांश कम्युनिस्ट सिद्धान्तकार भारतीय इतिहास को किताबी मार्क्सवादी खाँचे (आदिम साम्यवाद-दास प्रथा-सामंतवाद-पूँजीवाद) में फ़िट करके देखने की कोशिश कर रहे थे, नम्बूदिरीपाद ने अनूठी मौलिकता का प्रदर्शन करते हुए केरल की सामाजिक संरचना का विश्लेषण ‘जाति-जनमी-नेदुवाझी मेधावितम’ के रूप में किया। अपनी पहली उल्लेखनीय रचना 'केरला : मलयालीकालुडे मातृभूमि' (1948) में ईएमएस ने दिखाया कि सामाजिक संबंधों पर ऊँची जातियाँ हावी हैं, उत्पादन संबंध जनमा यानी ज़मींदारों के हाथों में हैं और प्रशासन की बागडोर नेदुवाझियों यानी स्थानीय प्रभुओं के कब्ज़े में है। ईएमएस की निगाह में अधिकांश जनता की ग़रीबी और पिछड़ेपन का कारण यही समीकरण था। अपने इसी विश्लेषण को आधार बना कर नम्बूदिरीपाद ने 1952 में 'द नैशनल क्वेश्चन इन केरला', 1967 में 'केरला : यस्टरडे, टुडे ऐंड टुमारो' और 1984 में 'केरला सोसाइटी ऐंड पॉलिटिक्स : अ हिस्टोरिकल सर्वे' की रचना की। अपने इसी विश्लेषण के आधार पर ईएमएस ने केरल में 'जाति-जनमी-नेदुवाझी मेधावितम' का गठजोड़ तोड़ने के लिए वामपंथ का एजेंडा भी तैयार किया, जिसके केंद्र में समाज सुधार और जाति-विरोधी आंदोलन था। ईएमएस ने ज़ोर दे कर कहा कि जातिगत शोषण ने केरल की नम्बूदिरी जैसी शीर्ष ब्राह्मण जाति तक का अमानवीकरण कर दिया है। उन्होंने ‘नम्बूदिरी को इनसान बनाओ’ का नारा देते हुए ब्राह्मण समुदाय के लोकतंत्रीकरण की मुहिम चलाई। कॅरिअर वर्ष 1931 में ईएमएस कॉलेज छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। सत्याग्रह आंदोलन के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा। उन्हें 1934 में कांग्रेस समाजवादी पार्टी में ऑल इंडिया ज्वाइंट सेक्रेटरी नियुक्त किया गया। इस दौरान नंबूदरीपाद पहली बार मार्क्स के सिद्धांतों से अवगत हुए। 1936 में पांच सदस्यों के साथ मिलकर उन्होंने केरला कम्यूनिस्ट पार्टी के संस्थापक समूह की स्थापना की। बाद में उन्होंने केरल में सामंतवाद विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी शक्तिशाली आंदोलन की नींव रखी। उन्होंने केरल को एक भाषाई राज्य के तौर पर एकजुट करने में अहम भूमिका निभाई। वर्ष 1939 में ईएमएस मद्रास प्रांतीय विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। वर्ष 1941 में उन्हें भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के केंद्रीय समिति में शामिल किया गया। 1950 में वह सीपीआई के पोलिट ब्यूरो के सदस्य बने और इसके सचिवालय के लिए चुने गए। केरल राज्य बनने के बाद राज्य के पहले चुनाव में कम्यूनिस्ट पार्टी प्रमुख दल के तौर पर उभरी। चुनाव में जीत का श्रेय ईएमएस को मिला और वह राज्य के मुख्यमंत्री बने। वह 1957-59 तक ही कुर्सी पर रह पाए क्योंकि उन्हें जब उन्हें गलत तरीके से बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद 1962 में उन्हें यूनाइटेड सीपीआई का जनरल सेक्रेटरी बनाया गया और इसके बाद केंद्रीय समिति और 1964 में सीपीआई एम के पोलित ब्यूरो में शामिल हुए। 1967 में नंबूदरीपाद दोबारा मुख्यमंत्री बने और 1969 तक सत्ता में रहे। वर्ष 1977 में भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी एम के महासचिव निर्वाचित हुए। उन्हें एक विख्यात पत्रकार के तौर भी जाना जाता था – उन्होंने अपने अनुभवों और विचारों पर कई किताबें भी लिखीं, जो केरल के लोगों के लिए हमेशा उपयोगी बनी रहेंगी। कांग्रेस कमेटी के सचिव जिस समय नंबूदरीपाद बी. ए. में थे, तब वे 1932 में 'सविनय अवज्ञा आन्दोलन' से जुड़ गए। उन्हें गिरफ्तार कर तीन वर्ष की सज़ा सुनाई गयी, किन्तु उन्हें 1933 में रिहा कर दिया गया। सन 1937 में ई. एम. एस. नंबूदरीपाद कांग्रेस के टिकट पर मद्रास विधान परिषद में चुने गये। वे प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव भी बनाये गये थे। सन 1940 में नंबूदरीपाद भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य चयनित हुए। वे कुछ वर्षों तक पार्टी के पोलितब्यूरो के सदस्य रहे। मुख्यमंत्री 1957 में ई. एम. एस. नंबूदरीपाद केरल असेम्बली के सदस्य चुने गये और प्रदेश के पहले कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री बने। इस पद पर वह 5 अप्रैल, 1957 से 31 जुलाई, 1959 तक रहे। यह सरकार 1959 में बर्खास्त कर दी गई तो 1960 के मध्यावधि चुनाव के बाद वे विधान सभा में विरोधी दल के नेता बने। 1967 में उन्होंने संयुक्त मोर्चा के नेता के रूप में पुन: मुख्यमंत्री का पद सम्भाला और 6 मार्च, 1967 से 1 नवम्बर, 1969 तक इस पद पर कार्य किया। कला और पत्र के लिए प्रगतिशील आंदोलन के साथ एसोसिएशन नामबूदिरिपद, केसरी बालाकृष्ण पिल्लै, जोसेफ मुंदासेरी, एम। पी। पॉल और के। दामोदरन "जीववत साहित्य प्रानतनम" के आर्किटेक्ट थे, इसका नाम बदलकर पुरोगामना साहित्य प्रानतनाम (प्रोग्रेसिव एसोसिएशन फॉर आर्ट्स एंड लेटर्स) था। हालांकि केसरिया में केसरी में कला और पत्र के प्रगतिशील आंदोलन के द्रष्टाओं में से एक केसरी को माना जाता था, हालांकि पूर्णकालिक कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं और अन्य व्यक्तित्व, केसरी और मुंडसेरी के बीच राय के गंभीर मतभेद उभरे। इस संदर्भ में, नंबुद्दीपड़ ने प्रसिद्ध तौर पर केसरी को "पेटी-बुर्जुआ बौद्धिक" होने का आरोप लगाया, एक पदोन्नति उन्होंने वापस लिया। राष्ट्रबुद्दीपाद ने प्रगतिशील साहित्य और आर्ट्स मूवमेंट के संबंध में कम्युनिस्ट पार्टी के पहले गलत धारणाओं को स्वीकार किया। यह बहस आधुनिक मलयालम साहित्य के विकास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, "रुपा भद्रता विवाद" के नाम से जाना जाता है। मौत उनकी उम्र और असफल स्वास्थ्य के बावजूद, ई.एम.एस. अभी भी राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में सक्रिय था। उन्होंने 1998 के लोकसभा चुनावों के दौरान सक्रिय रूप से अभियान चलाया। चुनाव के परिणाम आने के तुरंत बाद, उन्हें निमोनिया का सामना करना पड़ा, और तिरुवनंतपुरम में एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वह 1 9 मार्च, 1 99 8 को 1 9 मार्च, 1 9 8 को 4 बजे निधन हो गया। तिरुवनंतपुरम में थेकाड इलेक्ट्रिक श्मशान में पूर्ण राज्य सम्मान के साथ उन्हें अंतिम संस्कार किया गया। उन्होंने आर्य अनंतजामम से विवाह किया था और उनके दो बेटे और दो बेटियां थीं। उनकी मृत्यु के पांच साल के बाद उनके परिवार में अगस्त 2001 में उनकी बहू डॉ। यमुना से शुरू हुई, और बाद में उनकी पत्नी आर्य अनंतजनम द्वारा जनवरी 2002 में उनके बेटे ईएम श्रीधरन, एक कुएं के साथ समाप्त होने के बाद उनके परिवार में तीन और अधिक मौतें हुईं। ( 10 ) 0 Votes have rated this Naukri. 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