गुरु हनुमान जीवनी - Biography of Guru Hanuman in Hindi Jivani Published By : Jivani.org गुरु हनुमान भारत के महान् कुश्ती प्रशिक्षक (कोच) थे। वे स्वयं भी महान् पहलवान थे उन्होंने सम्पूर्ण विश्व में भारतीय कुश्ती को महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाया। उनकी कुश्ती के क्षेत्र विशेष में उपलब्धियों के कारण इन्हें सन 1988 में द्रोणाचार्य पुरस्कार और सन 1983 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। गुरु हनुमान का जन्म राजस्थान के झुंझुनू ज़िला के चिड़ावा तहसील में 1901 में हुआ था। गुरु हनुमान का बचपन का नाम विजय पाल था। बचपन में कमज़ोर सेहत का होने के कारण अक्सर ताकतवर लड़के इन्हें तंग करते थे। इसलिए उन्होंने सेहत बनाने के लिए बचपन में ही पहलवानी को अपना लिया था। कुश्ती के प्रति अपने आगाध प्रेम के चलते इन्होंने 20 साल की उम्र में दिल्ली की और प्रस्थान किया। भारतीय मल्लयुद्ध के भगवान हनुमान से प्ररित होकर इन्होंने अपना नाम हनुमान रख लिया और ताउम्र ब्रह्मचारी रहने का प्रण कर लिया। उनके अनुसार उनकी शादी तो कुश्ती से ही हुई थी। ये बात कोई अतिश्योक्ति भी नहीं थी क्योंकि जितने पहलवान उनके सान्निध्य में आगे निकले है शायद किसी और गुरु को इतना सम्मान मिल पाया है। कुश्ती के प्रति उनके प्रेम के चलते मशहूर भारतीय उद्योगपति के.के बिरला ने उन्हें दिल्ली में अखाडा चलने के लिए ज़मीन दान में दे दी थी। सन 1940 में वो आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये। 1947 में भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से शरणार्थियों की उन्होंने खूब सेवा की। 1947 के बाद हनुमान अखाडा दिल्ली पहलवानों का मंदिर हो गया। 1980 में इनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया। कुश्ती प्रेमियों के मसीहा गुरु हनुमान ने जब यह देखा कि प्राय: सभी पहलवानों को बुढ़ापे में आर्थिक तंगी होती ही है तो उन्होंने सरकार से पहलवानों को रोजगार देने के लिये सिफारिश भी की। जिसके परिणामस्वरुप आज अनेकों राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने वाले पहलवानों को भारतीय रेलवे में भर्ती कर लिया जाता है। इस तरह उन्होंने हमेशा ही अपने शिष्यों की सहायता अपने बच्चों के समान की। उनका रहन सहन बिलकुल गाँव वालों की तरह था। उन्होंने सम्पूर्ण जीवन में धोती कुरते के अतिरिक्त कुछ और पहना ही नहीं। भारतीय स्टाइल की कुश्ती के वे माहिर थे। उन्होंने भारतीय स्टाइल और अन्तराष्ट्रीय स्टाइल दोनों प्रकार की कुश्ती-शैलियों का आपस में योग कराकर अनेकों एशियाई चैम्पियन भारतवर्ष को दिये। पहलवानों को कुश्ती के गुर सिखाने के लिये उनकी लाठी कुश्ती के अखाड़े में काफी मशहूर थी। इसी लाठी के चलते सतपाल, करतार सिंह, १९७२ के ओलम्पियन प्रेमनाथ, सैफ विजेता वीरेन्दर ठाकरान (धीरज पहलवान), सुभाष पहलवान, हंसराम पहलवान जैसे अनगिनत पहलवान कुश्ती की मिसाल बने। ये उनकी लाठी का ही कमाल था जो अखाड़े के पहलवानों को ३ बजे ही कसरत करने के लिये जगा देती थी। उनके अखाड़े में रहकर खिलाडी केवल पहलवानी ही नहीं बल्कि ब्रह्मचर्य, आत्मनिर्भरता और शाकाहार की ताकत भी सीखते थे। अपने घर आने वालो को भी वे चाय के स्थान पर बादाम की लस्सी पिलाते थे। उनके शिष्य महाबली सतपाल छत्रसाल स्टेडियम में पहलवानों को अत्याधुनिक तरीके से मैट पर प्रशिक्षण देते हैं। इसी का परिणाम है कि उनके शिष्य पहलवानों में सुशील कुमार, योगेश्वर दत्त एवं नरसिंह यादव जैसे पहलवान राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन कर चुके हैं। गुरु हनुमान अखाड़े की स्थापना कुश्ती के प्रति उनकी लगन को देखकर भारत के मशहूर उद्योगपति कृष्णकुमार बिड़ला ने उन्हें दिल्ली में अखाड़े के लिये जमीन दान में दे दी। १९४० में वे स्वतन्त्रता संग्राम में भी शामिल हुए। १९४७ में भारत विभाजन के समय पाकिस्तान से भगाये गये हिन्दू शरणार्थियों की उन्होंने सेवा और सहायता की। १९४७ के बाद गुरु हनुमान अखाड़ा दिल्ली में पहलवानों का मन्दिर हो गया। १९८३ में उनको पद्मश्री से सम्मानित किया गया। इस प्रकार१९२० में दिल्ली की "बिड़ला व्यायामशाला" का विस्तार गुरु हनुमान अखाड़े के रूप में हुआ। उन्होंने मीडिया वालों से कुश्ती कवरेज के लिये भी प्रार्थना की। गुरु हनुमान एक गुरु ही नहीं बल्कि अपने शिष्यों के लिये पिता तुल्य थे। कुश्ती का जितना सूक्ष्म ज्ञान उन्हें था शायद ही किसी और को हो। कुश्ती के हनुमान एवं शिष्यों के द्रोणाचार्य गुरु हनुमान एक गुरु ही नहीं बल्कि अपने शिष्यों के लिए पिता तुल्य थे। कुश्ती का जितना सूक्ष्म ज्ञान उन्हें था शायद ही किसी को हो! गुरु हनुमान ने जब ये देखा की उनके पहलवानों को बुढ़ापे में आर्थिक तंगी होती है तो उन्होंने सरकार से पहलवानों के लिए रोज़गार के लिए सिफारिश की परिणामस्वरूप आज बहुत से राष्ट्रीय प्रतियोगिता जीतने वाले पहलवानों को भारतीय रेलवे में हाथों हाथ लिया जाता है। इस तरह उन्होंने हमेशा अपने शिष्यों की सहायता अपने बच्चो के समान की। उनका रहन सहन बिल्कुल गाँव वालों की तरह ही था। उन्होंने अपने जीवन के तमाम वर्ष एक धोती कुरते में ही गुजर दिए। भारतीय स्टाइल की कुश्ती के वे माहिर थे, उन्होंने भारतीय स्टाइल और अंतर्राष्ट्रीय स्टाइल का मेल कराकर अनेक एशियाई चैम्पियन दिए। सम्मान और पुरस्कार कुश्ती के प्रति उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें सन 1988 में "द्रोणाचार्य पुरस्कार" से सम्मानित किया गया। उनके तीन चेले सुदेश कुमार, प्रेम नाथ, वेदप्रकाश ने 1972 कार्डिफ़ कॉमनवेल्थ खेल में स्वर्ण पदक जीता था। सतपाल पहलवान और करतार सिंह ने 1982 और 1986 के एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। उनके 8 चेलों ने भारत का खेल सम्मान अर्जुन पुरस्कार जीता है। निधन वे कुँवारे थे और उन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। वे 24 मई, 1999 को कार दुर्घटना में हरिद्वार में उनकी मृत्यु हो गयी। ( 13 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0