नील आर्मस्ट्रांग जीवनी - Biography of Neil Armstrong in Hindi Jivani Published By : Jivani.org नील एल्डन आर्मस्ट्रांग एक अमेरिकी खगोलयात्री और चंद्रमा पर कदम रखने वाले पहले व्यक्ति थे। इसके अलावा वे एक एयरोस्पेस इंजीनियर, नौसेना अधिकारी, परीक्षण पायलट, और प्रोफ़ेसर भी थे। खगोलयात्री (ऍस्ट्रोनॉट) बनने से पूर्व वे नौसेना में थे। नौसेना में रहते हुए उन्होंने कोरिया युद्ध में भी हिस्सा लिया। नौसेना के बाद उन्होंने पुरुडु विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि ली और तत्पश्चात् एक ड्राइडेन फ्लाईट रिसर्च सेंटर से जुड़े और एक परीक्षण पायलट के रूप में ९०० से अधिक उड़ानें भरीं। यहाँ सेवायें देने के बाद उन्होंने दक्षिण कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से परास्नातक की उपाधि हासिल की। आरंभिक जीवन : नील आर्मस्ट्रांग का जन्म ५ अगस्त, १९३० को वेपकॉनेटा, ओहायो में हुआ था। उनके पिता का नाम स्टीफेन आर्मस्ट्रांग था और माँ का वायला लुई एंजेल थीं, और उनके माता पिता की दो अन्य संतानें जून और डीन, नील से उम्र में छोटे थे। पिता स्टीफेन ओहायो सरकार के लिये काम करने वाले एक ऑडिटर थे और उनका परिवार इस कारण ओहायो के कई कस्बों में भ्रमण करता रहा। नील के जन्म के बाद वे लगभग २० कस्बों में स्थानंतरित हुए। इसी दौरान नील की रूचि हवाई उड़ानों में जगी। नील जब पाँच बरस के थे, उनके पिता उन्हें लेकर २० जून १९३६ को ओहायो के वारेन नामक स्थान पर एक फोर्ड ट्राईमोटर हवाई जहाज में सवार हुए और नील को पहली हवाई उड़ान का अनुभव हुआ। 1947 में 17 साल की आयु में आर्मस्ट्रांग ने एयरोनॉटिकल इंजिनियर की पढाई पुर्दुर यूनिवर्सिटी से ग्रहण करना शुरू की। कॉलेज जाने वाले वे उनके परिवार के दुसरे इंसान थे। पढने के लिए उन्होंने मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (MIT) को भी अपना लिया था। आर्मस्ट्रांग का मानना था की हम कही भी पढ़कर अच्छे से अच्छी शिक्षा हासिल कर सकते है। किशोरावस्था में ही उन्होंने बहोत से ईगल स्काउट अवार्ड अर्जित किये और साथ ही उन्हें सिल्वर बफैलो अवार्ड भी मिला था। नील गणित और विज्ञान में काफी तेज थे | खगोल विज्ञान और ब्रह्मांड विज्ञान में उनकी ख़ास दिलचस्पी थी | सोलह साल की उम्र में उन्होंने अपना छात्र पायलट लाइसेंस हासिल कर लिया था | सन 1951 में एक बार युद्ध के दौरान वे उत्तर कोरिया के उपर उड़ रहे थे | अपने F9F पेंथर जेट विमान में उड़ते हुए उन्होंने देखा कि उत्तरी कोरियाई सैनिक अपने भोर के रोजमर्रा के काम में लगे हुए है | वे चाहते तो उन्हें अपनी मशीन गन से उड़ा सकते थे , लेकिन उन्होंने ट्रिगर से उंगली हठा ली और आगे निकल गये | वे ऐसे निहत्थे लोगो पर कैसे हमला कर सकते थे ,जो अपना बचाव भी नही कर सकते थे | कार्य : नासा में Neil Armstrong इंजिनियर ,टेस्ट पायलट ,अन्तरिक्ष यात्री और प्रशाशक के रूप में कार्य करते रहे | उन्होंने तरह तरह के हवाई जहाज उडाये , जिनमे 4000 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ने वाले एक्स-15 से लेकर जेट ,राकेट ,हेलीकाप्टर और ग्लाइडर शामिल रहे | 16 मार्च 1966 को जेमिनी-8 अभियान के तहत वे सबसे पहले अन्तरिक्ष में गये | इसके बाद अपोलो-2 में बतौर कमांडर वे जुलाई 1969 को चन्द्रमा की सतह पर उतरे और इतिहास रच दिया | चाँद तक की यात्रा : अपोलो 11 के लॉन्च के दौरान आर्मस्ट्रांग की हृदयगति ११० स्पंदन प्रति मिनट तक पहुँच गयी थी। आर्मस्ट्रांग को इसका प्रथम चरण सबसे अधिक शोर भरा प्रतीत हुआ, उनके पिछले जेमिनी 8 टाइटन I लॉन्च से काफ़ी ज्यादा। अपोलो का कमांड मॉड्यूल अवश्य ही जेमिनी की तुलना में अधिक स्थान वाला था। 10.56 PM को आर्मस्ट्रांग चन्द्रमा मोड्यूल से बाहर निकले थे। उन्होंने कहा था, “इंसान का यह छोटा सा कदम, मानवी जाती के लिए एक बहुत बड़ी छलांग है।” उन्होंने ही चद्रमा पर अपना पहला कदम रखा था। तक़रीबन 2.30 घंटे तक नील और एल्ड्रिन ने चन्द्रमा के कुछ सैंपल (Sample) जमा किया और उनपर प्रयोग भी किया। उन्होंने बहुत से फोटो भी निकाले जिनमे उनके खुद के पदचिन्हों का फोटो भी शामिल है। धरती पर वापिस लौटने के बाद तीनो अंतरीक्ष यात्रियों की काफी तारीफ की गयी थी और उनका स्वागत भी किया गया था। उनके सम्मान में न्यू यॉर्क शहर में एक परेड भी रखी गयी थी। अपने अतुलनीय कार्यो के लिए आर्मस्ट्रांग को बहुत से प्रशंसनीय अवार्ड मिले है जिसमे कांग्रेशनल स्पेस मेडल भी शामिल है। आर्मस्ट्रांग अक्सर सार्वजनिक तौर पर बयान देने से बचते हैं। उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित योजना को राष्ट्रपति द्वारा खारिज किए जाने की आलोचना की है। उन्होंने ओबामा को भेज एक पत्र पर अंतरिक्ष यान अपोलो के अंतरिक्ष यात्री यूजीन कारनेन और जीम लॉवेल के साथ हस्ताक्षर किया है। कुछ समय नौसेना में काम करने के बाद सन् 1955 में उन्होंने नेशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एयरोनॉटिक्स में कार्य आरंभ किया। इसी कमेटी का नाम बाद में नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) पड़ा। यहाँ वे इंजीनियर, टेस्ट पायलट, अंतरिक्ष यात्री और प्रशासक के रूप में कार्य करते रहे। उन्होंने तरह-तरह के हवाई-जहाज उड़ाए, जिनमें 4000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़नेवाले एक्स-15 से लेकर जेट, रॉकेट, हेलीकॉप्टर और ग्लाइडर शामिल रहे। चंद्र अभियान से लौटकर वर्ष 1971 तक आर्मस्ट्राँग नासा की एयरोनॉटिक्स यूनिट में बतौर डिप्युटी एसोसिएट एडमिनिस्ट्रेटर जुड़े रहे; इसके बाद वे सिनसिनाती यूनिवर्सिटी में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर बनाए गए और आठ साल वहाँ रहे। सन् 1982 में वे कंप्यूटिंग टेक्नॉलोजीज फॉर एविएशन इंसर्सन में चेयर मैन बने और सन् 1992 तक इस पद पर थे. 28 जनवरी, 1986 को ‘चैलेंजर’ अंतरिक्ष यान दुर्घटनाग्रस्त हो गया और इसके सभी यात्री मारे गए। दुर्घटना की जाँच के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक आयोग का गठन किया। नील आर्मस्ट्राँग को इस आयोग का वाइस चेयरमैन बनाया गया। उस कठिन दौर में उन्होंने सघन जाँच के बाद अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को सौंपी। वापिसी की यात्रा : आल्ड्रीन इगल मे पहले वापिस आये। उन दोनो ने मिलकर कीसी तरह २२ किग्रा नमुनो के बाक्स और फिल्मो को यान मे एक पूली की सहायता से चढाया। आर्मस्ट्रांग उसके बाद यान मे सवार हुये।चन्द्रयान के जिवन रक्षक वातावरण मे आने के बाद उन्होने अपने जुते और बैकपैक सूट उतारे। उसके बाद वे सोने चले गये। सात घंटो की निंद के बाद होस्टन केन्द्र ने उन्हे जगाया और वापिसी की यात्रा की तैयारी के लिये कहा। उसके ढाई घंटो के बाद शाम के ५.५४ बजे उन्होने इगल के आरोह इंजन को दागा। चन्द्रमा की कक्षा मे नियंत्रण यान कोलंबिया मे उनका साथी कालींस उनका इंतजार कर रहा था।चन्द्रमा की सतह पर के ढाई घंटो के बाद वे चन्द्रमा की सतह पर ढेर सारे उपकरण , अमरीकी ध्वज और सीढीयो पर एक प्लेट छोडकर आये। २४ जुलाई को अपोलो ११ पृथ्वी पर लौट आया। यान प्रशांत महासागर मे गीरा, उसे यु एस एस हार्नेट से उठाया गया। उनके स्वागत के लिये राष्ट्रपति निक्सन स्वयं जहाज मे मौजुद थे। यात्रीयो को कुछ दिनो तक अलग रखा गया। यह चन्द्रमा की धूल मे किसी अज्ञात आशंकित परजिवी की मौजुदगी के पृथ्वी के वातावरण मे फैलने से बचाव के लिये किया गया। बाद मे ये आशंका निर्मूल साबीत हुयी। १३ अगस्त १९६९ अंतरिक्ष यात्री बाहर आये। उसी शाम को इन यात्रीयो के सम्मान के लिये लास एन्जिल्स मे एक भोज दिया गया , जिसमे अमरीकी कांग्रेस के सदस्य, ४४ गवर्नर,मुख्य न्यायाधीस और ८३ देशो के राजदूत आये। यात्रीयो को अमरीकी सर्वोच्च सम्मान “प्रेसेडेसीयल मेडल ओफ़ फ्रीडम” दिया गया। १६ सीतंबर १९६९ को तीनो यात्रीयो ने अमरीकी कांग्रेस को संबोधीत किया। इंदिरा गांधीसे मुलाकात: दोनों अंतरिक्ष यात्रियों को संसद भवन कार्यालय स्थित इंदिरा गांधी के कक्ष में ले जाने वाले नटवर ने याद किया कि उस समय तत्कालीन अमेरिकी राजदूत भी उपस्थित थे। उन्होंने बताया, जब फोटाग्राफर दोनों अंतरिक्ष यात्रियों की इंदिरा गांधी के साथ तस्वीरें खींचकर बाहर चले गए तो वहां अजीब-सी खामोशी छा गई । इंदिरा द्वारा बातचीत का संकेत दिए जाने पर नटवर ने कहा , मिस्टर आर्मस्ट्रांग, आपकी यह जानने में दिलचस्पी होगी कि प्रधानमंत्री सुबह 4.30 बजे तक जागती रही थीं, क्योंकि वह चंद्रमा पर आपके उतरने के क्षण से चूकना नहीं चाहती थीं। नटवर ने याद किया कि इस पर आर्मस्ट्रांग ने कहा, मैडम प्रधानमंत्री, आपको हुई असुविधा के लिए मैं खेद व्यक्त करता हूं। अगली बार, मैं सुनिश्चित करूंगा कि जब हम चंद्रमा पर उतरें तो आपको इतना न जागना पड़े। मानवजाति के इतिहास में 20 जुलाई, 1969 का वह दिन हमेशा ऐतिहासिक घटना बना रहेगा, जब आर्मस्ट्रांग के नेतृत्व में अपोलो-11 अंतरिक्ष यान चंद्रमा पर पहली बार उतरा था। नील आर्मस्ट्रांग से जुड़े कुछ तथ्य: • 5 अगस्त, 1930 के दिन नील आर्मस्ट्रांग का जन्म वेपकॉनेटा, ओहायो में हुआ. उनके पिता का नाम स्टीफेन आर्मस्ट्रांग था और माँ का वायला लुई एंजेल थीं, और उनके माता पिता की दो अन्य संतानें जून और डीन, नील से उम्र में छोटे थे. • पिता स्टीफेन ओहायो सरकार के लिये काम करने वाले एक ऑडिटर थे. और उनका परिवार इस कारण ओहायो के कई कस्बों में भ्रमण करता रहा. • नील जब पाँच बरस के थे, उनके पिता उन्हें लेकर 20 जून 1936 को ओहायो के वारेन नामक स्थान पर एक फोर्ड ट्राईमोटर हवाई जहाज में सवार हुए और नील को पहली हवाई उड़ान का अनुभव हुआ. • उन्होंने तरह-तरह के हवाई जहाज उड़ाये, जिनमें 4000 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ने वाले एक्स-15 से लेकर जेट, राकेट, हेलीकाप्टर और ग्लाइडर शामिल थे. म्रुत्यू : नील का जीवन एक संयमी जीवन था | उन्होंने नेवी फाइटर पायलट , टेस्ट पायलट और अन्तरिक्ष यात्री के रूप में गर्वपूर्वक देश की सेवा की | उन्हें सैकड़ो पुरुस्कार और सम्मान मिले ,लेकिन अन्तरिक्ष जितनी ऊँची उपलब्धी के सामने सब गौण पड़ गये | 82 वर्ष की आयु में 25 अगस्त 2012 को दिल का दौरा पड़ने से इस महानतम अन्तरिक्ष यात्री Neil Armstrong का निधन हो गया था | ( 12 ) 26 Votes have rated this Naukri. 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