भाई बालमुकुन्द जीवनी - Biography of Bhai Balmukund in Hindi Jivani Published By : Jivani.org भाई बालमुकुन्द (१८८९ - ११ मई १९१५) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। सन 1912 में दिल्ली के चांदनी चौक में हुए लॉर्ड हार्डिग बम कांड में मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को 8 मई 1915 को ही फांसी पर लटका दिया गया, जबकि अगले दिन यानी 9 मई को अंबाला में वसंत कुमार विश्वास को फांसी दी गई। वे महान क्रान्तिकारी भाई परमानन्द के चचेरे भाई थे। सभी पर आरोप था कि इन्होंने 1912 में चांदनी चौक में लार्ड हार्डिग पर बम फेंका था। हालांकि इनके खिलाफ जुर्म साबित नहीं हुआ, लेकिन अंग्रेज हुकूमत ने शक के आधार पर इन्हें फांसी की सजा सुना दी। जिस स्थान पर इन्हें फांसी दी गई, वहां शहीद स्मारक बना दिया गया है जो दिल्ली गेट स्थित मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में स्थित है। भाई बालमुकुंद का विवाह एक साल पहले ही हुआ था। आजादी की लड़ाई में जुटे होने के कारण वे कुछ समय ही पत्नी के साथ रह सके। उनकी पत्नी का नाम रामरखी था। उनकी इच्छा थी कि भाई बालमुकुंद का शव उन्हें सौंप दिया जाए, लेकिन अंग्रेज हुकूमत ने उन्हें शव नहीं दिया। उसी दिन से रामरखी ने भोजन व पानी त्याग दिया और अठारहवें दिन उनकी भी मृत्यु हो गई। बाबा तपसीराम का प्रभाव बचपन से ही बालमुकुंद की रुची व्यापक थी। भाई परमानंद और वह, दोनों गाँव के अन्य बालकों से भिन्न थे। पास ही एक नाला था, जिसे बनह्वा कहते थे। वर्षा के दिनों में यह नदी का रूप धारण कर लेता था और उसको पार करना कुशल तैराक का ही काम होता था। उसी नाले के किनारे तपसीराम नाम के साधु रहते थे, जो आम साधुओं से भिन्न थे। तपसीराम अच्छे ज़मींदार घराने के थे। वह उसी नाले के किनारे पर गुफा में रहते थे। गाँव में जब कभी कोई झगड़ा होता, वह फौरन वहाँ पहुंचते और न्यायपक्ष में बोलते। इससे वह 'महाराज' नाम से मशहूर हो गये थे। महाराज अंग्रेज़ी राज्य के विरुद्ध थे। उन्होंने एक अखाड़ा खोल रखा था, जहाँ शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए व्यायाम और खेलकूदों का बाकायदा अभ्यास चलता था। इस वातावरण में अग्रेंज़ी-विरोधी महाराज का दोनों भाइयों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। बाद में इस प्रभाव को गाढ़ा होने का मौका तब मिला, जब भाई बालमुकुंद की भेंट मास्टर अमीरचंद, लाला हरदयाल और रासबिहारी बोस से हुई और वह क्रांतिकारी बन गये। इस बीच उन्होंने नौकरी कर ली थी, पर उन्होंने नौकरी छोड़ दी। तब उनके बड़े भाई जयरामदास को चिंता हुई और उन्होंने बालमुकुंद विवाह करवा दिया। विवाह हो जाने पर भाई बालमुकुंद का मन क्रांति से नहीं फिरा, बल्कि अवधबिहारी और भाई बालमुकुंद ने क्रांतिकारी साहित्य डट कर तैयार किया और सर्वत्र बांटा। साथ ही वह बम बनाने की भी शिक्षा लेते रहे। पहले जीवन भाई बालमुकुंड का जन्म 18 9 8 में झेलम जिले के गांव करियाला में (अब पाकिस्तान में) एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई मथुरा दास था। उनके परिवार ने सिख इतिहास के एक प्रसिद्ध शहीद भाई मती दास से स्वागत किया, जिनसे उन्होंने अपने नाम के भाई भाई को नाम दिया। राष्ट्रीय छात्रवृत्ति में बाल्मुकुंड की दिलचस्पी जब छात्र थी स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, उन्होंने शिक्षण का व्यवसाय किया, लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन के लिए उनके अनुलग्नक ने उन्हें एक प्रबल राष्ट्रवादी बना दिया क्रांतिकारी गतिविधियों 23 दिसंबर 1 9 12 को, जब भगवान हार्डिंगी एक राज्य में चांदनी चौक, दिल्ली के माध्यम से चल रहे थे, उस पर एक बम फेंका गया था। वाइसरॉय ने केवल मामूली चोट लगीं, लेकिन उनके परिचर को मार दिया गया। एक और बम लॉरेंस गार्डन, लाहौर में कुछ माह में 17 मई 1 9 13 को कुछ महीने बाद फेंक दिया गया। जांच के बाद, बाल्मुकुंड को जोधपुर से गिरफ्तार किया गया था, जहां वह जोधपुर महाराज के पुत्रों के शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे वीरांगना पत्नी 'रामरखी' भाई बालमुकुंद की कहानी कई दृष्टियों से बड़ी रोमांचकारी है। वह स्वयं तो वीर थे ही, उनकी पत्नी भी आदर्श वीरांगना थीं। पति के गिरफ्तार होने के दिन से ही श्रीमती रामरखी दुबली होने लगीं। उनको कुछ आभास-सा हो गया था कि बस अब सब कुछ समाप्त होने को है। उन्हें बड़ी मुश्किल से जेल में पति से मिलने की इजाजत मिली। रामरखी ने पति से पूछा था- "खाना कैसा मिलता है?" भाई बालमुकुंद ने हँसकर कहा- "मिट्टी मिली रोटी।" रामरखी अपने आटे में भी मिट्टी मिलाने लगीं। दुबारा जब वह मिलने गयीं तो पूछा कि सोते कहाँ हैं। इसके उत्तर में भाई बालमुकुंद ने बताया कि- "अधेंरी कोठरी में दो कंबलों पर"। बस, उस दिन से श्रीमती रामरखी ग्रीष्म ऋतु में भी कंबल पर लेटने लगीं। जिस दिन भाई जी को फ़ाँसी हुई, उस दिन सवेरे उठकर रामरखी ने वस्त्र-आभूषण धारण किये और जाकर एक चबूतरे पर बैठ गयीं। उनके चेहरे पर दु:ख का कोई चिह्न था। किंतु वह जो बैठ गयीं तो फिर उठी नहीं। श्रीमती रामरखी ने न तो ज़हर खाया था और ना ही कोई ऐसी अन्य बात की थी। पती-पत्नी दोनों की चिता एक साथ जलायी गयी मौत बम विस्फोटों की जांच के बाद दिल्ली में एक परीक्षण किया गया और 5 अक्टूबर 1 9 14 को उनके साथी मास्टर अमीर चंद, अवध बिहारी और बसंत कुमार बिस्वास के साथ बाल्मुकुंड की सजा सुनाई गई। उन्हें 8 मई 1 9 15 को अंबाला केंद्रीय जेल में फांसी दी गई थी। 32 वर्ष की उम्र में ( 20 ) 1 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 5