सर फ़्रॅडरिक विलियम हरशॅल जीवनी - Biography of Frederick William Herschel in Hindi Jivani Published By : Jivani.org सर फ़्रॅडरिक विलियम हरशॅल (अंग्रेज़ी: Frederick William Herschel, जन्म: १५ नवम्बर १७३८, देहांत: २५ अगस्त १८२२) एक जर्मनी में पैदा हुए ब्रिटिश खगोलशास्त्री और संगीतकार थे। १९ वर्ष की उम्र में वे जर्मनी छोड़कर ब्रिटेन में आ बसे। उन्होंने ही युरेनस ग्रह की खोज की थी। यह दूरबीन द्वारा पहचाना गया पहला ग्रह था। उन्होंने इसके अतिरिक्त युरेनस के दो उपग्रहों की और शनि के दो उपग्रहों की भी खोज की। हालांकि वे अपनी खगोलशास्त्रिय गतिविधियों के लिए ज़्यादा विख्यात हैं, उन्होंने अपने जीवनकाल में २४ संगीत की टुकड़ियां भी लिखीं। हनोवर के निर्वाचन क्षेत्र में जन्मे, हर्षेल ने अपने पिता को हनोवर के सैन्य बैंड में अपने उत्तराधिकारी के रूप में, उन्नीस वर्ष की आयु में 1757 में ग्रेट ब्रिटेन में प्रवास करने से पहले का पालन किया। हर्शेल ने ज्ञात नीहारिकाओं की संख्या में बेहद वृद्धि कर दी थी । मेसियर की 100 की प्रसिद्ध सूची में कैरोलिन ने 5000 और हर्शेल ने 1820 की बढ़त कर दी । उनका विचार कि नीहारिकाएं सुदूर तारों का जमावड़ा मात्र है, जिसे आज हम आकाशगंगा बुलाते है, अपने समय से एक सदी से भी आगे की सोच थी । हर्शेल ने महसूस किया कि मंदाकिनी एक चकतीनुमा तारकीय ब्रह्मांड का तल है। अलग-अलग दिशाओं में दिखने वाले तारों की संख्या की गिनती द्वारा उन्होंने इसक़ी रूपरेखा बनाई । इस तारकीय योजना को उन्होंने 'आकाश का निर्माण' की संज्ञा दी । हर्शेल ने एक नैदानिक उपकरण के रूप में खगोलीय स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री के प्रयोग का बीड़ा उठाया और तारकीय वर्णक्रम के तरंग दैर्ध्य वितरण को मापने के लिए प्रिज्मों और तापमापी उपकरण का प्रयोग किया । उनके अन्य कामों में शामिल है : मंगल की घूर्णन अवधि के निर्धारण में सुधार करना, मंगल की ध्रुवीय टोपियों पर मौसम की विविधता की खोज, यूरेनस के उपग्रहों टाइटेनिया और ओबेरोन की खोज तथा शनि के उपग्रहों एंकेलेडस और मिनास की खोज । मई 2009 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा अंतरिक्ष में स्थापित की गई अब तक की सबसे बड़ी अवरक्त दूरबीन को हर्शेल की स्मृति में हर्शेल अंतरिक्ष वेधशाला नाम दिया गया है । युरेनस ग्रह का सूचक चिन्ह हर्शेल के सरनेम के पहले अक्षर पर है । चन्द्रमा पर एक क्रेटर और मंगल की एक घाटी उनके नाम पर रखी गई है, जबकि '2000 हर्शेल' एक क्षुद्रग्रह है । इसके अलावा स्कूल, कॉलेज, भवन, पार्क, म्यूज़ियम, नगर, स्ट्रीट और दूरबीन आदि के नाम भी हर्शेल की याद में रखे गए है । हर्षेल के दूरबीन अपने करियर के दौरान, उन्होंने चार सौ से अधिक दूरबीनों का निर्माण किया। इनमें से सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध 49º 1 "2-इंच-व्यास (1.26 मीटर) प्राथमिक दर्पण और 40 फुट (12 मी) फोकल लम्बाई के साथ परावर्तन दूरबीन था। उस दिन की सपोर्ट मिरर की खराब प्रतिबिंबता के कारण, हर्षल ने अपने डिजाइन से एक मानक न्यूटनियन रिफ्लेक्टर के छोटे विकर्ण दर्पण को समाप्त कर दिया और अपना प्राथमिक दर्पण झुकाया ताकि वह सीधे बनाई गई छवि को सीधे देख सकें। इस डिजाइन को हर्शेलियन दूरबीन कहा जाने लगा है। 1789 में, इस उपकरण के संचालन के कुछ ही समय बाद, उन्होंने शनि के एक नए चाँद की खोज की: मीमास, केवल 250 मील व्यास में। अवलोकन के पहले महीने के भीतर एक दूसरे चंद्रमा का पालन किया। "40 फुट टेलीस्कोप" बहुत बोझिल साबित हुआ, और उनके अधिकांश टिप्पणियां एक छोटे 18.5 इंच (47 सेंटीमीटर) 20-फुट-फोकल लंबाई (6.1 मीटर) परावर्तक के साथ की गईं। हर्षेल ने खोज लिया कि अनफिल्ड दूरबीन एपर्टर्स का उपयोग उच्च कोणीय संकल्प प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है, जो कि खगोल विज्ञान में इंटरफेरमेट्रिक इमेजिंग (विशेष रूप से एपर्चर मास्किंग इंटरफेरोमेट्री और हाइपरटेलस्कोप) के लिए आवश्यक आधार बन गया। विशेष कार्य हरशॅल एक महान पर्यवेक्षणीय खगोल विज्ञानी थे । इन उपलब्धियों के कारण ही हरशॅल टेलीस्कोप को उनके नाम रखा गया है। दोहरे-तारों की जांच-पड़ताल ने हरशॅल को तारो के आचरण की सांख्यिकीय व्याख्या करने योग्य बना दिया था । उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि केवल एक सीध में होने मात्र से उनके युग्म में होने की कोइ गुंजाईस नहीं है बल्कि वें भौतिक रूप से द्वि-तारा प्रणाली में दृढ़ता से जड़े हुए है । उनकी कक्षाओं का निर्धारण न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के सार्वभौमिक होने का प्रथम प्रमाण था । इन नियमों को हमारे अपने सौरमंडल के बाहर भी कार्य करते हुए देखा गया था । हरशॅल ने अंतरिक्ष के माध्यम से सूर्य की गति भी निर्धारित की थी। हरशॅल ने ज्ञात नीहारिकाओं की संख्या में बेहद वृद्धि कर दी थी । मेसियर की 100 की प्रसिद्ध सूची में कैरोलिन ने 5000 और हरशॅल ने 1820 की बढ़त कर दी । उनका विचार कि नीहारिकाएं सुदूर तारों का जमावड़ा मात्र है, जिसे आज हम आकाशगंगा बुलाते है, अपने समय से एक सदी से भी आगे की सोच थी । हरशॅल ने महसूस किया कि मंदाकिनी एक चकतीनुमा तारकीय ब्रह्मांड का तल है। अलग-अलग दिशाओं में दिखने वाले तारों की संख्या की गिनती द्वारा उन्होंने इसक़ी रूपरेखा बनाई । इस तारकीय योजना को उन्होंने ‘आकाश का निर्माण’ की संज्ञा दी । हरशॅल ने एक नैदानिक उपकरण के रूप में खगोलीय स्पेक्ट्रोफोटोमेट्री के प्रयोग का बीड़ा उठाया और तारकीय वर्णक्रम के तरंग दैर्ध्य वितरण को मापने के लिए प्रिज्मों और तापमापी उपकरण का प्रयोग किया । ( 12 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0