नीलम संजीव रेड्डी जीवनी - Biography of Neelam Sanjiva Reddy in Hindi Jivani Published By : Jivani.org नीलम संजीव रेड्डी का जन्म 19 मई, 1913 को इल्लुर ग्राम, अनंतपुर ज़िले में हुआ था जो आंध्र प्रदेश में है। आंध्र प्रदेश के कृषक परिवार में जन्मे नीलम संजीव रेड्डी की छवि कवि, अनुभवी राजनेता एवं कुशल प्रशासक के रूप में थी। इनका परिवार संभ्रांत तथा भगवान शिव का परम भक्त था। इनके पिता का नाम नीलम चिनप्पा रेड्डी था जो कांग्रेस पार्टी के काफ़ी पुराने कार्यकर्ता और प्रसिद्ध नेता टी. प्रकाशम के साथी थे। नीलम संजीव रेड्डी 1977 से 1982 तक भारत के छठे राष्ट्रपति थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान में उन्होंने भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के साथ अपने विशाल राजनीतिक करियर की शुरुवात की थी। आज़ाद भारत में उन्होंने सरकार के बहुत से विभागों में काम किया था – आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने देश की सेवा की थी। इसके साथ-साथ वे दो बार लोक सभा स्पीकर और यूनियन मिनिस्टर भी रह चुके है और इन सभी पदों पर रहने के बाद वे भारत के सबसे युवा राष्ट्रपति बने थे। वर्तमान अनंतपुर जिले (आंध्रप्रदेश) में जन्मे रेड्डी ने अपनी प्राथमिक शिक्षा अदायर में पूरी की और फिर अनंतपुर के सरकारी आर्ट कॉलेज में वे दाखिल हुए। लेकिन कुछ समय बाद ही वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानी बने और भारत छोडो अभियान में हिस्सा लेने की वजह से उन्हें जेल भी जाना पड़ा था। 1946 में उनकी नियुक्ती मद्रास वैधानिक असेंबली में कांग्रेस पार्टी के प्रतिनिधि के रूप में की गयी थी। 1953 में रेड्डी आंध्र प्रदेश के डिप्टी मुख्यमंत्री बने और 1956 में आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकार में 1964 से 1967 के बीच वे यूनियन कैबिनेट मिनिस्टर बने और 1967 से 1969 तक लोक सभा स्पीकर भी बने। इसके बाद वे सक्रीय राजनीती से सेवानिर्वृत्त हो गये थे लेकिन फिर 1975 में उन्होंने, जयप्रकाश नारायण द्वारा इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ क्रांति करने के साथ वापसी की थी। राजनैतिक जीवन नीलम संजीवा रेड्डी का राजनैतिक सफर मात्र अठारह वर्ष की आयु में नीलम संजीवा रेड्डी स्वतंत्रता संग्राम में कूद गए थे। इतना ही नहीं, महात्मा गांधी से प्रभावित होकर विद्यार्थी जीवन में ही उन्होंने पहला सत्याग्रह भी किया। उन्होंने युवा कॉग्रेस के सदस्य के रूप में अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। बीस वर्ष की उम्र में ही नीलम संजीवा रेड्डी काफी सक्रिय हो चुके थे। सन 1936 में नीलम संजीवा रेड्डी आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के सामान्य सचिव निर्वाचित हुए. उन्होंने इस पद पर लगभग 10 वर्षों तक कार्य किया। नीलम संजीव रेड्डी संयुक्त मद्रास राज्य में आवासीय वन एवं मद्य निषेध मंत्रालय के कार्यों का भी सम्पादन करते थे। 1951 में इन्होंने मंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया, ताकि आन्ध्र प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष पद के चुनाव में भाग ले सकें. इस चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी प्रोफेसर एन.जी. रंगा को हराकर अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे। इसी वर्ष यह अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति और केन्द्रीय संसदीय मंडल के भी निर्वाचित सदस्य बन गए। नीलम संजीवा रेड्डी ने कांग्रेस पार्टी के तीन सत्रों की अध्यक्षता की। 10 मार्च, 1962 को इन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और यह 12 मार्च, 1962 को पुन: आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। वह इस पद पर दो वर्ष तक रहे। उन्होंने खुद ही अपने पद से इस्तीफा दिया था। 1964 में नीलम संजीवा रेड्डी राष्ट्रीय राजनीति में आए और प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने इन्हें केन्द्र में स्टील एवं खान मंत्रालय का भार सौंप दिया। इसी वर्ष वह राज्यसभा के लिए भी मनोनीत हुए और 1977 तक इसके सदस्य रहे। दुर्घटना नीलम संजीव रेड्डी के निजी जीवन में एक दुखद घटना घटी। इनका पाँच वर्षीय पुत्र मोटर दुर्घटना में काल-कवलित हो गया। इस घटना से यह इतना व्यथित हुए कि 'आंध्र प्रदेश कांग्रेस समिति' की अध्यक्षता से त्यागपत्र दे दिया लेकिन इन्हें त्यागपत्र वापस लेने के लिए मना लिया गया। 1952 में इन्हें राज्य सभा के लिए चुना गया लेकिन 1953 में इन्होंने सदस्यता त्याग दी। फिर यह टी. प्रकाशम की कैबिनेट में उपमुख्यमंत्री बनाए गए थे। जबकि 1955 से पूर्व तक यह 'मद्रास विधानसभा' के लिए चुने गए। 1956 में जब राज्यों के पुनर्गठन का कार्य किया गया तो नीलम संजीव रेड्डी आंध्र प्रदेश के 'प्रथम मुख्यमंत्री' बने। तब इनकी उम्र 43 वर्ष थी और यह भारत के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे। इन्हें 3 दिसम्बर 1956 को सर्वसम्माति से 'अखिल भारतीय कांग्रेस' का अध्यक्ष बनाया गया और इन्होंने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। लेकिन यह तब मुख्यमंत्री कार्यालय में बने रहे, जब तक कि नए मुख्यमंत्री के रूप में डी. संजीवैय्या ने 11 जनवरी 1960 को अपना कार्यभार नहीं संभाल लिया। इन्हें कांग्रेस की अध्यक्षता श्रीमती इंदिरा गांधी से प्राप्त हुई थी, जिन्हें 2 फरवरी 1959 को यू. एन. देवधर के त्यागपत्र देने पर अध्यक्ष बनाया गया था। स्वाधीनता आन्दोलन में भूमिका महात्मा गाँधी की बातों से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी पढाई सन 1931 में छोड़ दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। उसके बाद वो ‘यूथ लीग’ से जुड़े रहे और विद्यार्थी सत्याग्रह में भाग लिया। सन 1938 में उनको आंध्र प्रदेश प्रांतीय कांग्रेस समिति का सचिव चुना गया। इस पद पर नीलम संजीव रेड्डी दस साल तक बने रहे। भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान भी ये जेल गए और सन 1940 से 1945 के बीच जेल में ही रहे। मार्च 1942 में सरकार ने उन्हें छोड़ दिया था पर अगस्त 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में फिर गिरफ्तार हो गए। उन्हें गिरफ्तार कर अमरावती जेल भेज दिया गया जहाँ उन्हें टी. प्रकाशम्, एस. सत्यमूर्ति, के. कामराज और वी. वी. गिरी जैसे आन्दोलनकारियों के साथ रखा गया। सेवानिवृत्ति और निधन 25 जुलाई, 1982 को अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद नीलम संजीव रेड्डी अनंतापुर चले गए और अपने आप को कृषि कार्यों में व्यस्त कर दिया। कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े ने उन्हें बैंगलोर में बसने का न्योता दिया था पर उन्होंने अपने जीवन का बाकी समय बिताने के लिए अपने प्रिय नगर अनंतपुर को ही चुना। नीलम संजीव रेड्डी का निधन निमोनिया के कारण 1 जून 1996 को बैंगलोर नगर में हो गया। ( 10 ) 6 Votes have rated this Naukri. 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