फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल जीवनी - Biography of Florence Nightingale in Hindi Jivani Published By : Jivani.org फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल को आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता माना जाता है। दया व सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल "द लेडी विद द लैंप" (दीपक वाली महिला) के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनका जन्म एक समृद्ध और उच्चवर्गीय ब्रिटिश परिवार में हुआ था। लेकिन उच्च कुल में जन्मी फ्लोरेंस ने सेवा का मार्ग चुना। १८४५ में परिवार के तमाम विरोधों व क्रोध के पश्चात भी उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत लिया। दिसंबर १८४४ में उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने बनाने का कार्यक्रम आरंभ किया था। बाद में रोम के प्रखर राजनेता सिडनी हर्बर्ट से उनकी मित्रता हुई। नर्सिग के अतिरिक्त लेखन और अनुप्रयुक्त सांख्यिकी पर उनका पूरा ध्यान रहा। फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर १८५४ में उन्होंने ३८ स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। इस समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए ही उन्होंने लेडी विद द लैंप की उपाधि से सम्मानित किया गया। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। लेकिन युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था। १८५९ में फ्लोरेंस ने सेंट थॉमस अस्पताल में एक नाइटिंगेल प्रक्षिक्षण विद्यालय की स्थापना की। इसी बीच उन्होंने नोट्स ऑन नर्सिग पुस्तक लिखी। जीवन का बाकी समय उन्होंने नर्सिग के कार्य को बढ़ाने व इसे आधुनिक रूप देने में बिताया। १८६९ में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रॉस से सम्मानित किया। ९० वर्ष की आयु में १३ अगस्त, १९१० को उनका निधन हो गया। सन 1840 में इंग्लैंड में भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीडितो की दयनीय स्थिति देखकर वह बैचैन हो गयी | अपने एक पारिवारिक मित्र डा. फोउलेर से उन्होंने नर्स बनने की इच्छा प्रकट की | उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रो में खलबली मच गयी |उनकी माँ को यह आशंका थी कि उनकी पुत्री किसी डॉक्टर के साथ भाग जायेगी | ऐसा इन दिनों शायद आम था | इतने प्रबल विरोध के बावजूद फ्लोरेंस नाईटेंगल (Florence Nightingale) ने अपना इरादा नही बदला | विभिन्न देसों में अस्पतालों की स्थिति के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई और शयनकक्ष में मोमबत्ती जलाकर उसका अध्ययन किया | उनके दृढ़ संकल्प को देखकर उनके माता-पिता को झुकना पड़ा और उन्हें कैन्सवर्थ संस्थान में नर्सिंग की ट्रेनिंग के लिए जाने की अनुमति देनी पड़ी | सन 1854 में क्रीमियम युद्ध में फ्लोरेंस नाईटेंगल को The Lady With a Lamp का उपनाम टाइम्स अखबार में छपी इस खबर के आधार पर मिल गया “वह तो साक्षात देवदूत है | दुर्गन्ध और चीख पुकार से भरे इस अस्थायी अस्पतालों में वह एक दालान से दुसरे दालान में जाती है और हर एक मरीज की भावमुद्रा उनके प्रति आभार और स्नेह के कारण द्रवित हो जाती है | रात में जब सभी चिकित्सक और कर्मचारी अपने अपने कमरों में सो रहे होते है तब वह अपने हाथो में के लैंप लेकर हर बिस्तर तक जाती है और मरीजो की जरुरतो का ध्यान रखती है ” सन 1859 में फ्लोरेंस नाईटेंगल (Florence Nightingale) ने सेंट थोमस अस्पताल में नर्सिंग ट्रेनिंग की स्थापना की | अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों के दल के एक दल को घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा था | 1860 में नाइटिंगेल ने लन्दन में सेंट थॉमस हॉस्पिटल की स्थापना कर प्रोफेशनल नर्सिंग की नीव रखी थी। दुनिया का यह पहला धर्मनिरपेक्ष नर्सिंग स्कूल था, जो आज लन्दन के किंग्स कॉलेज का ही एक भाग है। नर्सिंग में उनके पायनियर (अद्वितीय) कार्य के लिए उन्हें सम्मान देते हुए उनके नाम का एक मैडल भी जारी किया गया, जिसे नर्सिंग की दुनिया का सबसे बड़ा अवार्ड भी माना जाता है। साथ ही उनमे जन्मदिवस को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। उनके द्वारा किये गए सामाजिक सुधारो में उन्होंने ब्रिटिश सोसाइटी के सभी भागो में हेल्थकेयर को काफी हद तक विकसित किया। भारत में बेहतर भूख राहत की वकालत की और जहाँ महिलाओ पर अत्याचार होते है वहाँ महिलाओ के हक में लड़ी और देश में महिला कर्मचारियों की संख्या को बढ़ाने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। नाइटिंगेल एक विलक्षण और बहुमुखी लेखिका थी। अपने जीवनकाल में उनके द्वारा प्रकाशित किए गये ज्यादातर लेखो में चिकित्सा ज्ञान का समावेश होता था। उन्होंने कुछ लेख सरल अंग्रेजी भाषा में भी लिखे है, ताकि जिनकी अंग्रेजी ज्यादा अच्छी नही है वे लोग भी उन्हें आसानी से समझ सके। साथ ही सांख्यिकीय जानकारी की चित्रमय प्रस्तुति को बढ़ावा देने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उनके बहुत से कार्यो में हमें, उनके द्वारा किये गये धार्मिक और सामाजिक कार्यो की छवि दिखाई पड़ती है। नर्सिंग प्रशिक्षण : सन 1840 में इंग्लैंड में भयंकर अकाल पड़ा और अकाल पीड़ितों की दयनीय स्थिति देखकर फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल बैचैन हो गयीं। अपने एक पारिवारिक मित्र डॉ. फोउलेर से उन्होंने नर्स बनने की इच्छा प्रकट की। उनका यह निर्णय सुनकर उनके परिजनों और मित्रों में खलबली मच गयी। उनकी माँ को यह आशंका थी कि उनकी पुत्री किसी डॉक्टर के साथ भाग जायेगी। ऐसा इन दिनों शायद आम था। इतने प्रबल विरोध के बावजूद फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल ने अपना इरादा नहीं बदला। विभिन्न देशों में अस्पतालों की स्थिति के बारे में उन्होंने जानकारी जुटाई और शयन कक्ष में मोमबत्ती जलाकर उसका अध्ययन किया। उनके दृढ़ संकल्प को देखकर उनके माता-पिता को झुकना पड़ा और उन्हें कैन्सवर्थ संस्थान में नर्सिंग के प्रशिक्षण के लिए जाने की अनुमति देनी पड़ी। द लेडी विद द लेम्प : सन 1854 में क्रीमियम युद्ध में फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल को "द लेडी विद द लेम्प" का उपनाम टाइम्स समाचार पत्र में छपी इस खबर के आधार पर मिल गया - "वह तो साक्षात देवदूत है। दुर्गन्ध और चीख-पुकार से भरे इन अस्थायी अस्पतालों में वह एक दालान से दूसरे दालान में जाती है और हर एक मरीज़ की भावमुद्रा उनके प्रति आभार और स्नेह के कारण द्रवित हो जाती है। रात में जब सभी चिकित्सक और कर्मचारी अपने-अपने कमरों में सो रहे होते हैं, तब वह अपने हाथों में लैंप लेकर हर बिस्तर तक जाती है और मरीज़ों की ज़रुरतों का ध्यान रखती है।" ( 15 ) 21 Votes have rated this Naukri. 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