पंडिता ब्रम्हचारिणी चंदाबाई की जीवनी - Biography of Pandita Brahmacharini Chandabai in hindi jivani Published By : Jivani.org नाम : पंडिता ब्रम्हचारिणी चंदाबाई जन्म दि : 1880 ठिकाण : वृदांवन, उत्त्रप्रदेश व्यावसाय : संस्थापक मृत्यू : 1977 आयू 96: 97 वर्षे प्रारंभिक जीवनी : पंडिता ब्रम्हचारिणी चंदाबाई का जन्म वृंदावन मे 1880 मे एक समृध्दा अग्रवाल वैष्णव परिवार मे हुआ था | श्री नारायण दासजी और श्रीमती राधिकादेवी उनके माता पिता थे | उनका बचपन भगवान कृष्णा और उनकी प्रिय राधिका कि प्रार्थना मे श्री राधाकृष्ण कि भक्ती मे बीता था | उसने अपनी मॉ के बचपन के गीतों से विश्वास अर्जीत किया था | उनका विवाह श्री धर्मकुमारजी के पुत्र, चंद्रकुमारजी के पूत्र और पंडित प्रभूदासजी कि एक प्रसिध्दा परिवार रेखा थी |और वह जैन धर्म् को समर्पित था | उनके पति श्री धर्मकुमारजी का निध्ंन उनकी शादी के एक साल के भीतर हो गया था | इस प्रकार, चंदाबाई केवल 12 वर्षे कि उम्र मे विधवा हो गई थी | श्रीदेवकुमारजी जो जैन समुदाय के प्रसिध्दा लेखक थे | श्री धर्मकुमारजी के बडे भाई थे | वह धार्मिक विचारों वाले भी थे और हमेशा दुसरों का भला करने के लिए उत्सूक रहते थे | वह अपने छोटे भाई के असासमाजिक निधन से दुखी थे | और अपने छोटे भाई के पत्नी चंदाबाई विधवा हो गई थी | चंदाबाई ने श्री देवकुमारजी कि सलाह और प्रेरणा से फिर से सिखना शुरु किया | उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पडा लेकिन उन्हेांने पंडिता एक महिला पंडित काशी बनारस कि एक पढी लिखी महिला कि परीक्षा उत्तीर्ण कि थी | कार्य : माँ चंदाबाई गहरी धार्मिक थी | और उन्हेांने अपने स्वभाव का प्रतीक होने के लिए काम किया था | राजगूह पर पाँच पडाहिया थी चंदाबाई ने एक पहाडी पर एकभव्या जैन मंदिर का निर्माण करवाया था | जिसे रत्नागिर के नाम से जाना जाता है | उनहोने 1939 मे बालविश्राम के परिसर मे एक आकर्षक मानव स्तम्भ का एक बडा स्तंभ बनवाया था | उन्होंने 1937 मे श्रावण बेलगोला मे सथपित एक से श्री गोम्मट स्वामी कि एक प्रतिमा मूर्ति का निर्माण किया और कलात्माक पर्वत बनाया था | पंडिता चंदाबाई ने जैन साहित्या मे भी योगदान दिया है | वह एक सफल लेखिका और संपादकिया थी | चंदाबाई ने संस्कूत प्राकृत, धर्मशास्त्र, नाटया तर्क साहित्या और व्याकरण साहित शास्त्रीय विषयों का अध्यायन किया था | वह एक अच्छी लेखिका थी उनहेांने17 साल कि उम्र मे पंच कलयाणक प्रतिष्ठान के दौरान पानीपत मे अपना पहला भाषण दिया था | उन्होंने 1907 मे लडकियों के लिए एक स्कूल कि स्थापना कि थी | जिसे 1921 मे जैन बालशर्मा के नाम से जाना जाने लगा था | डॉ. नेमीचंद्र जयोषाचार्या जो बाद मे एक प्रमूख जैन विव्दान के रुपमे उभरे उनहे 1939मे बालश्रम के निदेशक के रुप मे नियुक्ता किया गया था | वह अक्सार बालश्रम मे बीमार छात्रों की सेवा करती थी | उन्होंने 1943 मे टाइफाइड से पिडीत एक लडकी का पालन पोषण किया था | जो अंतत: बेहतर हुई और बाद मे नयतितिर्थ कि उपाधि प्राप्ता कि थी | पूस्तके : 1) उनहेांने 1921 मे एक पत्रिका जैन महिलाधार शुरु कि और इसे कई वर्षो तक संपादित किया था | 2) रत्नमाला| 3) सौभाग्या रत्नमाला| 4) निबंन्ध रत्नमाला| 5) आदर्श्ं कहयायन| 6) आदर्श निबन्धा| 7) निबन्ध दर्पन| ( 20 ) 0 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 0