भैरोंसिंह शेखावत जीवनी - Biography of Bhairon Singh Shekhawat in Hindi Jivani Published By : Jivani.org भैरोंसिंह शेखावत (२३ अक्टूबर १९२३ - १५ मई २०१०) भारत के उपराष्ट्रपति थे। वे १९ अगस्त २००२ से २१ जुलाई २००७ तक इस पद पर रहे। वे १९७७ से १९८०, १९९० से १९९२ और १९९३ से १९९८ तक राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रहे। वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे। भैरोंसिंह शेखावत का जन्म तत्कालिक जयपुर रियासत के गाँव खाचरियावास में हुआ था। यह गाँव अब राजस्थान के सीकर जिले में है। इनके पिता का नाम श्री देवी सिंह शेखावत और माता का नाम श्रीमती बन्ने कँवर था। गाँव की पाठशाला में अक्षर-ज्ञान प्राप्त किया। हाई-स्कूल की शिक्षा गाँव से तीस किलोमीटर दूर जोबनेर से प्राप्त की, जहाँ पढ़ने के लिए पैदल जाना पड़ता था। हाई स्कूल करने के पश्चात जयपुर के महाराजा कॉलेज में दाखिला लिया ही था कि पिता का देहांत हो गया और परिवार के आठ प्राणियों का भरण-पोषण का भार किशोर कंधों पर आ पड़ा, फलस्वरूप हल हाथ में उठाना पड़ा। बाद में पुलिस की नौकरी भी की; पर उसमें मन नहीं रमा और त्यागपत्र देकर वापस खेती करने लगे। स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात लोकतंत्र की स्थापना में आम नागरिक के लिए उन्नति के द्वार खोल दिए। राजस्थान में वर्ष १९५२ में विधानसभा की स्थापना हुई तो शेखावत ने भी भाग्य आजमाया और विधायक बन गए। फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा तथा सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते हुए विपक्ष के नेता, मुख्यमंत्री और उपराष्ट्रपति पद तक पहुँच गए। राजनीतिक जीवन : "राजस्थान का इक हाय सिंह" (राजस्थान का एकमात्र शेर) या "Babosa" (राजस्थान के परिवार के प्रमुख) के रूप में भेजा, भैरों सिंह शेखावत ने 1952 में राजनीति में प्रवेश किया. वह राजस्थान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के लिए खतरा उत्पन्न हालांकि, कि पार्टी 1977 तक चली. उस वर्ष में उसकी जनता पार्टी 1977 में राजस्थान के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाल लिया है राजस्थान और शेखावत के राज्य विधानसभा चुनावों में 200 सीटों में 151 जीता. एक विभाजन नहीं था [क्यों?] 1980 में और शेखावत भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए. कांग्रेस के विरोध के विखंडन यह 1980 और 1984 का चुनाव जीतने के लिए सक्षम होना चाहिए. हालांकि, 1989 में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल के बीच गठबंधन लोकसभा और विधानसभा में भी 140 सीटों में राजस्थान सीटों के सभी 25 जीत हासिल की. शेखावत एक बार फिर राजस्थान के मुख्यमंत्री बने. गठबंधन में विभाजन के बाद वर्ष 1993 में अगले चुनाव में, [क्यों?] शेखावत ने 96 सीटों पर जीत, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी होने के लिए नेतृत्व किया. तीन भाजपा समर्थित निर्दलीय भी सीटें जीती और भाजपा समर्थित जो अन्य निर्दलीय 116 को अपने कुल लिया. स्वतंत्र सदस्यों के समर्थन शेखावत सरकार बनाने के लिए अपने प्रयास करने के लिए कांग्रेस ने विपक्ष पर काबू पाने के लिए सक्षम होना चाहिए. राजस्थान के मुख्यमंत्रीः 1. 22 जून, 1977 से 15 फरवरी, 1980 तक 2. 4 मार्च, 1990 से 15 दिसम्बर, 1992 तक 3. 15 दिसम्बर, 1992 से 31 दिसम्बर, 1998 तक नेता प्रतिपक्षः 1. 15 जुलाई, 1980 से 10 मार्च, 1985 तक 2. 28 मार्च, 1985 से 30 दिसम्बर, 1989 तक 3. 8 जनवरी, 1999 से 18 अगस्त, 2002 तक उपराष्ट्रपतिः भैरोंसिंह शेखावत 12 अगस्त 2002 को भारत के ग्यारहवें उपराष्ट्रपति बने। उनका कार्यकाल 19 अगस्त, 2002 से 21 जुलाई, 2007 तक रहा था। पुरस्कार और सम्मान : भैरों सिंह शेखावत को उनकी कई उपलब्धियों और विलक्षण गुणों के चलते आंध्रा विश्वविद्यालय विशाखापट्टनम, महात्मागांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी, और मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय, उदयपु,र ने डीलिट की उपाधि प्रदान की। एशियाटिक सोसायटी ऑफ मुंबई ने उन्हें फैलोशिप से सम्मानित किया तथा येरेवन स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी अर्मेनिया द्वारा उन्हें गोल्ड मेडल के साथ मेडिसिन डिग्री की डॉक्टरेट उपाधि प्रदान की गई। योगदान : भैरों सिंह शेखावत ने राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने शिक्षा, बालिकाओं का उत्थान व उनका कल्याण, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और शारीरिक विकलांग लोगों की स्थिति में सुधार पर बल दिया। उनका मुख्य उद्देश्य गरीबों तक अधिकारों का लाभ पहुंचाना था। उन्होंने लोगों को परिवार नियोजन और जनसंख्या विस्फोट का राज्य के विकास पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के बारे में जागरूक किया। लोगों की आर्थिक मदद के लिए उन्होंने नई निवेश नीतियां शुरू की, जिनमें उद्योगों का विकास, खनन, सड़क और पर्यटन शामिल है। उन्होंने हेरिटेज होटल और ग्रामीण पर्यटन जैसे योजनाओं को लागू करने का सिद्धांत दिया, जिससे राजस्थान के पर्यटन क्षेत्र में वृद्धि हुई। इस प्रकार उनके कार्यकाल के दौरान राजस्थान की अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिति बेहतर रही। ग़रीबों के सहायक : आजीवन राष्ट्रहित में काम करने वाले जननेता शेखावत जी ग़रीबों के सच्चे सहायक थे। उन्होंने एक बार कहा था कि- "मैं ग़रीबों और वंचित तबके के लिए काम करता रहूँगा ताकि वे अपने मौलिक अधिकारों का गरिमापूर्ण तरीक़े से इस्तेमाल कर सकें।" देश के अत्यंत ग़रीब लोगों को भोजन मुहैया कराने के लिए चलाई जाने वाली "अंत्योदय अन्न योजना" का श्रेय उन्हीं को जाता है। उनके इस कदम के लिए तत्कालीन विश्व बैंक के अध्यक्ष रॉबर्ट मैक्कनमारा ने उनकी सराहना करते हुए उन्हें भारत का रॉकफ़ेलर कहा था। अपने जीवन काल की एक अन्य चर्चित घटना "रूप कंवर सती कांड" के दौरान अपनी लोकप्रियता और राजनीतिक कैरियर की परवाह न करते हुए भैरोंसिह शेखावत ने 'सती प्रथा' के विरोध में आवाज़ बुलंद की थी। योजनाएँ : शेखावत जी का राजनीतिक कार्यकाल ग़रीबों की बेहतरी और विकास को समर्पित रहा था। ग़रीबों की भलाई के लिए उन्होंने कई योजनाएँ क्रियांवित की थीं, जैसे- 1. 'काम के बदले अनाज योजना' 2. 'अंत्योदय योजना' 3. 'भामाशाह योजना' 4. 'प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम' अपनी योजनाओं के माध्यम से शेखावत जी ने ग्रामीण भारत की तस्वीर बदलने का जो सपना देखा था, वह आज काफ़ी हद तक साकार हो रहा है। राजनीति के इस माहिर खिलाड़ी ने सरकार में रहते हुए ऐसे ना जाने कितने काम किये, जिसका उदाहरण आज भी दिया जाता है। उनके द्वारा शुरू किये गये 'काम के बदले अनाज' योजना की मिसाल दी जाती है। मृत्यु : भैरों सिंह शेखावत का निधन 15 मई 2010 को जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में हो गया। वह कैंसर से भी पीडि़त थे। उनके अंतिम संस्कार में प्रसिद्ध राजनेताओं के अलावा हजारों लोग शामिल हुए। ( 10 ) 3 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 4