वसुन्धरा राजे जीवनी - Biography of Vasundhara Raje in Hindi Jivani Published By : Jivani.org वसुन्धरा राजे का जन्म 8 मार्च 1953 को मुम्बई में हुआ। वो ग्वालियर राजघराने की पुत्री हैं। उनके पिता का नाम जीवाजीराव सिन्धिया और माँ का नाम विजयाराज सिन्धिया है। वो मध्य प्रदेश के कांग्रेस नेता माधव राव सिंधिया की बहन हैं। उनका विवाह धौलपुर के एक जाट राजघराने में हुआ। उनका पुत्र दुष्यंत सिंह का विवाह गुर्जर राजघराने में निहारिका सिंह के साथ हुआ। वसुंधरा राजे के माता – पिता अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से गिने जाते थे, जिन्होने भारतीय सार्वजनिक जीवन के लिए अमूल्य योगदान दिया। श्रीमती वसुंधरा राजे के पिता महाराजा जीवाजी राव सिंधिया, ग्वालियर के शासक थे। ग्वालियर, आजादी से पूर्व भारत के मध्य में स्थित सबसे भव्य राज्य हूआ करता था। उनकी माता, राजमाता विजयाराजे सिंधिया आजादी के पश्चात् एक महान नेता के रूप में उभरी, जिन्हे उनकी सादगी, उच्च विचारधारा और वैचारिक प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था, वह गरीब से गरीब जनता के प्रति बेहद समर्पित थी। 40 साल के राजनीतिक कार्यकाल के दौरान, उन्हे कुल 8 बार मध्यप्रदेश के गुना क्षेत्र से संसद का प्रतिनिधत्व चुना गया, जो कि एक रिकॉर्ड है। राजमाता सिंधिया को जनसंघ और भाजपा के कई दिग्गजों जैसे – अटल बिहारी बाजपेई और श्री लालकृष्ण आडवाणी के साथ काम करने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ था। वसुंधरा राजे एक ऐसे माहौल में पैदा हुई थी, जहां सेवा, देशभक्ति और राष्ट्र के प्रति समर्पण ही सबसे महत्वपूर्ण था। वह अपने माता – पिता, महाराज जीवाजी और विजायाराजे जी की चार संतानों में से तीसरे नम्बर की संतान थी। उनकी बड़ी बहन श्रीमती ऊषा राजे जी की शादी, नेपाल के सबसे प्रतिष्ठित परिवार में हुई, जो वर्तमान में वहीं है। उनके बड़े भाई स्वर्गीय श्री माधवराव सिंधिया, भारत के सफल नेताओं में से गिने जाते थे लेकिन 2001 में असामयिक घटना में उनका निधन हो गया था। वसुंधरा राजे की छोटी बहन श्रीमती यशोधरा राजे जी है, जो ग्वालियर से सांसद के रूप में भाजपा का प्रतिनिधित्व करती है। 2003 में राजस्थान में बीजेपी पहली बार अपने दम पर सत्ता में आई। इसे वसुंधरा राजे का ही कमाल माना गया, लेकिन कुछ वक्त पहले तक उसी बीजेपी में वसुंधरा अलग-थलग दिखाई दे रही थीं। 2009 में उन्हें नेता विपक्ष के पद से भी इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा था। 2009 में वसुंधरा के रहते पार्टी ने राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से महज 4 पर जीत हासिल की, इसके बाद वसुंधरा को नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना पड़ा। उनकी मुश्किलें बढ़ने लगीं। कैडर से बंधे आरएसएस और बीजेपी के नेताओं को वसुंधराराजे की महारानी वाले अंदाज की कार्यशैली से हमेशा शिकायत रही। पार्टी में उनकी सत्ता को चुनौती देने के लिए जयपुर में समानांतर राजनीतिक नेतृत्व उभारा जाने लगा। अप्रैल 2012 में वसुंधरा की जगह नेता प्रतिपक्ष बने गुलाब चंद कटारिया ने 28 दिन की मेवाड़ यात्रा निकालने की घोषणा कर दी। माना जाता है कि कटारिया खुद को सीएम पद के दावेदार के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते थे। जाहिर है ये वसुंधरा को नामंजूर था। पार्टी छोड़ने की वसुंधरा की धमकी के पीछे बीजेपी के 79 विधायकों में 56 विधायकों के समर्थन की ताकत थी। सब उनके साथ थे। ऐसा ही विधायकों ने तब भी किया था जब पार्टी ने उन्हें नेता विपक्ष के पद से हटाया था। मां की सियासी विरासत को संभाला : वसुंधरा की मां विजया राजे सिंधिया भाजपा की राजनीति में सक्रिय रहीं। जब पति से अलगाव हुआ तो खाली वक्त व इसी बहाने जनता से जुड़ाव रखने के लिए वसुंधरा राजे ने भी भाजपा का दामन थाम लिया। 1984 में वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हुईं। इस बीच मध्य प्रदेश के भिंड से लोकसभा चुनाव लड़ीं मगर हार का सामना करना पड़ा। वसुंधरा को लगा कि मध्य प्रदेश में सियासत नहीं चमक सकती तो राजस्थान चलीं आईं। 1985 में ससुराल की धौलपुर सीट से विधानसभा चुनाव लडीं तो पहली बार विधायक बनीं। दो साल बाद राजस्थान का भाजपा ने प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया। दो वरिष्ठ नेताओं के दिल्ली में फंसने से चमकी किस्मत, बनीं सीएम : वसुंधरा राजे के सियासी सफरनामे में किस्मत ने भी बहुत साथ दिया। 2003 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने को हुए तो राज्य के दो शीर्ष नेता दिल्ली में स्थापित हो चुके थे। भैरो सिंह शेखावत जहां उप राष्ट्रपति बन चुके थे तो जसवंत सिंह केंद्रीय मंत्री रहे। ऐसे में भाजपा ने वसुंधरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर उनकी अगुवाई में राजस्थान में चुनाव लड़ने का फैसला किया। वसुंधरा का मतदाताओं पर जादू दिखा। चुनाव परिणाम आया तो भाजपा ने 110 सीटें जीतकर पहली बार अपने दम पर राजस्थान में सरकार बनाई। इसी के साथ वे राजस्थान की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। राजस्थान की मुख्यमंत्री : वसुंधरा राजे ने चुनावों के मद्देनज़र प्रदेश भर में परिवर्तन यात्रा निकाली। वसुंधरा राजे इस यात्रा के ज़रिये वे आम जनता से मिलती थीं। ख़ासतौर से वसुंधरा राजे महिलाओं को लुभाने के लिये जिस इलाके में जातीं उसी इलाके की वेशभूषा पहन कर जाती थीं। नतीजा यह हुआ कि विधानसभा चुनावों में वसुंधरा राजे भारी बहुमत के बल पर पार्टी को सत्ता में ले आईं। वे 1 दिसंबर, 2003 में राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। श्रीमती वसुन्धरा राजे को 8 दिसम्बर, 2003 से 10 दिसम्बर, 2008 तक राजस्थान की प्रथम महिला मुख्यमंत्री के बतौर कार्य करने का गौरव मिला। इस दौरान आपने राजस्थान के समग्र विकास तथा विकास से वंचित लोगों के उत्थान के कार्यों को सर्वाधिक महत्त्व दिया। उनके इस कार्यकाल के दौरान 'अक्षय कलेवा', 'मिड-डे-मील योजना', 'पन्नाधाय', 'भामाशाह योजना' एवं 'हाडी रानी बटालियन' तथा 'महिला सशक्तीकरण' जैसे कार्य उल्लेखनीय हैं। आप 13वीं राजस्थान विधान सभा के लिए झालावाड़ के झालरापाटन क्षेत्र से पुनः निर्वाचित हुईं। 2 जनवरी, 2009 से 25 फ़रवरी, 2010 तक वे राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं। गुण तथा संस्कार : वसुंधरा राजे सिंधिया को अपनी माता विजया राजे सिन्धिया से समाज सेवा तथा राजनीतिक चेतना के संस्कार मिले। आप बाल्यावस्था से ही जन कल्याणकारी कार्यों में सक्रिय योगदान देती रही हैं। जनसेवा और राजनीति के माहौल में पली-बढ़ी श्रीमती राजे में परमार्थ सेवा के गुण स्वतः ही विकसित होते गए। विधायक : 1. 1985-90 सदस्य, 8वीं राजस्थान विधान सभा 2. 2003-08 सदस्य, 12वीं राजस्थान विधान सभा में झालरापाटन से। 3. 2008-13 सदस्य, 13वीं राजस्थान विधान सभा झालरापाटन से। 4. 2013 सदस्य, 14वीं राजस्थान विधान सभा झालरापाटन से। सांसद : 1. 1989-91 : 9वीं लोक सभा सदस्या 2. 1991-96 : 10वीं लोक सभा सदस्या 3. 1996-98 : 11वीं लोक सभा सदस्या 4. 1998-99 : 12वीं लोक सभा सदस्या 5. 1999-03 : 13वीं लोक सभा सदस्या ( 10 ) 8 Votes have rated this Naukri. 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