डॉ. एनी बेसेन्ट जीवनी - Biography of Dr. Annie Wood Besant in Hindi Jivani Published By : Jivani.org डॉ. एनी बेसेन्ट (Dr. Annie Wood Besant) का जन्म लन्दन शहर में १८४७ में हुआ। इनके पिता अंग्रेज थे। पिता पेशे से डाक्टर थे। पिता की डाक्टरी पेशे से अलग गणित एवं दर्शन में गहरी रूचि थी। इनकी माता एक आदर्श आयरिस महिला थीं। डॉ. बेसेन्ट के ऊपर इनके माता पिता के धार्मिक विचारों का गहरा प्रभाव था। अपने पिता की मृत्यु के समय डॉ॰ बेसेन्ट मात्र पाँच वर्ष की थी। पिता की मृत्यु के बाद धनाभाव के कारण इनकी माता इन्हें हैरो ले गई। वहाँ मिस मेरियट के संरक्षण में इन्होंने शिक्षा प्राप्त की। मिस मेरियट इन्हें अल्पायु में ही फ्रांस तथा जर्मनी ले गई तथा उन देशों की भाषा सीखीं। १७ वर्ष की आयु में अपनी माँ के पास वापस आ गईं। युवावस्था में इनका परिचय एक युवा पादरी से हुआ और १८६७ में उसी रेवरेण्ड फ्रैंक से एनी बुड का विवाह भी हो गया। पति के विचारों से असमानता के कारण दाम्पत्य जीवन सुखमय नहीं रहा। संकुचित विचारों वाला पति असाधारण व्यक्तित्व सम्पन्न स्वतंत्र विचारों वाली आत्म-विश्वासी महिला को साथ नहीं रख सके। १८७० तक वे दो बच्चों की माँ बन चुकी थीं। ईश्वर, बाइबिल और ईसाई धर्म पर से उनकी आस्था डिग गई। पादरी-पति और पत्नी का परस्पर निर्वाह कठिन हो गया और अन्ततोगत्वा १८७४ में सम्बन्ध-विच्छेद हो गया।। तलाक के पश्चात् एनी बेसेन्ट को गम्भीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा और उन्हें स्वतंत्र विचार सम्बन्धी लेख लिखकर धनोपार्जन करना पड़ा। 1867 में, 20 साल की उम्र, में उसकी शादी 26 साल के पूजारी फ्रैंक बेसेन्ट से करवा दी गयी। जल्द ही फ्रैंक सिब्से, लिंकनशिरे के उपधर्माध्यक्ष बने। इस वजह से एनी भी अपने पति के साथ सिब्से आ गयी और कुछ महीनो बाद ही उन्हें दो बच्चे हुए, आर्थर और मबेल. एनी के अनुसार उनकी शादी उनके लिए किसी तूफ़ान से कम नहीं थी। एनी ने ओनी जीवनी में लिखा है की, “हम दोनों (एनी और फ्रैंक) एक बुखार से पीड़ित युगल थे”। एनी को अपने जीवन में पहला संघर्ष खुद की आज़ादी और पैसो के लिए करना पड़ा था। एनी ने छोटी-छोटी कथाये, किताबे ऑर्ट बच्चो के लिए लेख भी लिखे है। एक शादीशुदा महिला होने की वजह से उसका उस संपत्ति पर कोई हक नहीं था, उन लेखो, किताबो द्वारा आयी सारी संपत्ति फ्रैंक को मिलती थी। बाद में राजनीती ने ही उस दोनों को अलग-अलग कर दिया। बाद में एनी ने खेत के मजदूरो को बुरी हालत को देखते हुए उनकी सहायता करना शुरू की। जहा फ्रैंक एक अनुदारवादी था वो चाहता था की एनी उसी के संप्रदाय के साथ रहे। लेकिन अंत में एनी ने सम्प्रदाय में उपस्थित रहने से मना कर दिया। फॅक बेसेन्ट ये ख्रिश्चन धर्म पर विश्वास करने वाले थे तो इसके उल्टा Annie Besant ये स्वतंत्र विचारो की और ख्रिश्चन धर्म पर विश्वास – श्रध्दा करने वाली नही थी। इसके वजह से उनके बिच मे तनाव बढ़ता चला गया। एनी बेसेंट ने महिलाओं के अधिकारों, धर्मनिरपेक्षता, गर्भ निरोध, फेबियन समाजवाद और मजदूरों के हक़ के लिए लड़ाई लड़ी।वह भगवान से जुड़ने के थिओसोफी के तरीके से काफी प्रभावित हुईं। थियोसोफिकल सोसाइटी जाति, रंग, वर्ग में भेदभाव के खिलाफ थी और सर्वभौमिक भाईचारे की सलाह देती थी। मानवता की ज्यादा से ज्यादा सेवा करना उसका परम उद्देश्य था। भारतीय थियोसोफिकल सोसाइटी के एक सदस्य के मदद से वो वर्ष 1893 में भारत पहुंचीं। उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया। जिसके कारण उन्हें भारत और मध्यम वर्गीय भारतियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई जो कि ब्रिटिश शासन और इसकी शिक्षा की व्यवस्था से काफी पीड़ित थे। शिक्षा में उनकी लंबे समय से रूचि के फलस्वरूप ही बनारस के केंद्रीय हिन्दू विद्यापीठ की स्थापना हुई (1898)। वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल हुईं और वर्ष 1916 में ‘होम रूल लीग’ जिसका उद्देश्य भारतियों द्वारा स्वशासन की मांग था। सन 1917 में वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। इस पद को ग्रहण करने वाली वह प्रथम महिला थीं। उन्होंने "न्यू इंडिया" नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया जिसमे उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और इस विद्रोह के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा। गांधी जी के भारतीय राष्ट्रीय मंच पर आने के पश्चात, महात्मा गांधी और एनी बेसेंट के बीच मतभेद पैदा हुए जिस वजह से वह धीरे-धीरे राजनीति से अलग हो गईं। कांग्रेस की अध्यक्ष : एनी भारतीयों की स्वतंत्रता की जबरदस्त पक्षधर थीं। 1914 में उन्होंने भारतीय राजनीति में प्रवेश किया और 1917 में निर्वाचन समिति द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गई। आमतौर पर पार्टी का अधिवेशन समाप्त होने पर राजनीतिक दल के अध्यक्ष निजी जीवन में व्यस्त हो जाते थे, लेकिन डॉ. बेसेंट ने पूरे वर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में घूमकर पार्टी को संगठित करने का कार्य किया। उन्होंने 'न्यू इंडिया' नामक एक समाचारपत्र भी प्रारम्भ किया था। वह ब्रिटिश नागरिक थीं, इसलिए देशद्रोह के आरोप में उन्हें जेल भेजा गया। स्वतंत्रता के विषय में वह गांधी जी के विचारों से असहमत थीं। वह कांग्रेस के गरम दल के विचारों से प्रभावित थीं और उन्होंने आजीवन लोकमान्य तिलक के साथ देश की आज़ादी के लिए काम किया। गांधी जी से वैचारिक मतभेदों होने के कारण उन्होंने धीरे-धीरे कांग्रेस में अपनी सक्रियता कम कर दी। 1924 में गांधी जी के नेतृत्व में बेलगांव (कर्नाटक) में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। रेल की लंबी यात्रा कर डॉ. बेसेंट जब बेलगांव पहुंचीं तो अधिवेशन प्रारम्भ हो चुका था। तब गांधी जी सहित उपस्थित जनसमूह उनके स्वागत में उठकर खडा हो गया, किंतु वह अधिवेशन में अध्यक्ष के स्थान को छोडकर पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बैठीं। गांधी जी ने अधिवेशन की कार्यवाही रोक कर डॉ. बेसेंट से आग्रह किया कि वह अपने विचार व्यक्त करें। अपने भाषण में उन्होंने कहा- 'अब मेरी उम्र ज़्यादा हो गई है। एनी बेसेंट की उपलब्धियाँ,तथा उद्धरण : 1. एनी बेसेंट 1889 में थियोसोफी के विचारों से प्रभावित हुई। वह 21 मई, 1889 को थियोसोफिकल सोसायटी से जुड़ गईं। शीघ्र ही उन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी की वक्ता के रूप में महत्वपूर्ण स्थान बनाया। 2. उनका 1893 में भारत आगमन हुआ। वर्ष 1907 में वह थियोसोफिकल सोसायटी की अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उन्होंने पाश्चात्य भौतिकवादी सभ्यता की कड़ी आलोचना करते हुए प्राचीन हिंदू सभ्यता को श्रेष्ठ सिद्ध किया। धर्म में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। 3. उस काल में बाल गंगाधर तिलक के अलावा उन्होंने भी गीता का अनुवाद किया। वह भूत-प्रेत जैसी रहस्यमयी चीजों में भी विश्वास करती थीं। 4. वह 1913 से लेकर 1919 तक भारत के राजनीतिक जीवन की अग्रणी विभूतियों में एक थीं। 5. कांग्रेस ने उन्हें काफी महत्व दिया और उन्हें अपने एक अधिवेशन की अध्यक्ष भी निर्वाचित किया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होमरूल लीग (स्वराज संघ) की स्थापना की और स्वराज के आदर्श को लोकप्रिय बनाने में जुट गई। हालांकि बाद में तिलक से उनका विवाद हो गया। 6. जब गांधीजी ने सत्याग्रह आंदोलन प्रारंभ किया तो वह भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से अलग हो गईं।एनी बेसेंट ने निर्धनों की सेवा में आदर्श समाजवाद देखा। वह विधवा विवाह एवं अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में थीं, लेकिन बहुविवाह को नारी गौरव का अपमान एवं समाज के लिए अभिशाप मानती थीं। 7. प्रख्यात समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी एनी बेसेंट ने भारत को एक सभ्यता के रूप में स्वीकार किया था तथा भारतीय राष्ट्रवाद को अंगीकार किया था। ( 15 ) 13 Votes have rated this Naukri. 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