बलबीर सिंह जीवनी - Biography of Balbir Singh in Hindi Jivani Published By : Jivani.org बलबीर सिंह भारत के हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्होने ओलम्पिक में रिकॉर्ड बनाया है। वे भारत की उन तीन ओलम्पिक टीमों में शामिल थे जिसने स्वर्ण पदक जीता (लन्दन-१९४८, हेलसिंकी-१९५२, मेलबोर्न-१९५६)। उन्होने १९५२ के ओलम्पिक में नीदरलैण्ड के विरुद्ध पाँच गोल किये थे जो अभी तक रिकॉर्ड है। उन्हें प्रायः 'बलबीर सिंह सीनियर' कहा जाता है 'बलबीर सिंह' नामक ताकि हॉकी के दूसरे खिलाड़ी से भ्रम न हो। बलबीर सिंह सीनियर ऐसे हॉकी खिलाड़ी हैं जिन्होंने सबसे अधिक हॉकी गोल का रिकार्ड अपने नाम किया है। 1952 के ओलपिंक के दौरान फायनल में नीदरलैंड के विरूद्ध खेलते हुए बलबीर सिंह ने पांच गोल कर रिकॉर्ड बनाया था। उन्हें बलबीर सिंह सीनियर एक अन्य हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह से अलग पहचान के लिए कहा जाता है। भारतीय हॉकी टीम के मैनेजर और चीफ कोच 1975 में थे। उनके कोच रहते भारतीय टीम भारत ने पुरूषों का हॉकी वर्ल्डकप जीता। 1971 में भारत ने पुरूषों के हॉकी वर्ल्डकप में कांस्य पदक जीता। 2012 के लंदन ओलंपिक के दौरान, रॉयल ओपेरा हाउस के द्वारा सिंह का सम्मान किया गया। प्रारंभिक जीवन : बलबीर सिंह दोसांझ का जन्म 10 अक्टूबर 1924 को पंजाब के हरिपुर खालसा में हुआ था. बलबीर सिंह ने अपने स्कूल की पढाई देव समाग हाई स्कूल मोगा से की है. इसके बाद कॉलेज की पढाई डी एम् कॉलेज और खालसा कॉलेज अमृतसर से आगे की पढाई की थी. बलबीर ने कम उम्र में ही होकी खेलना शुरू कर दिया था. 1936 में हुए बर्लिन ओलंपिक में भारतीय टीम विजयी रही थी, जिसे देख बलबीर बहुत प्रेरित हुए थे. बलबीर पहले सिख नेशनल कॉलेज, लाहोर में थे, जहाँ वे होकी टीम के खिलाड़ी भी रहे थे. यहाँ उनकी मुलाकात कोच हरबैल सिंह से हुई, इन्होंने बलबीर सिंह को अमृतसर के खालसा कॉलेज में दाखिला लेने को बहुत बोला. 1942 में बलबीर सिंह को उनके परिवार वालों ने हां बोल दिया और उन्होंने खालसा कॉलेज में दाखिला ले लिया. यहाँ वे कोच हरबैल सिंह के अंडर में रहकर होकी की प्रैक्टिस करने लगे. 1942-43 के दौरान बलबीर सिंह को पंजाब यूनिवर्सिटी का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था. 1943, 44 एवं 45 में बलबीर सिंह इस टीम के कैप्टेन भी रहे थे. इस दौरान टीम ने इंटर यूनिवर्सिटी टाइटल जीता था. 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन से पहले जब पंजाब एक हुआ करता था, तब बलबीर वहां की होकी टीम के मेम्बर थे. टीम ने कर्नल AIS दारा की कप्तानी में नेशनल चैंपियनशीप जीती थी. बलबीर टीम में सेंटर फॉरवर्ड पोजीशन में खेलते थे. इसके बाद ही भारत की स्वतंत्रता और पाकिस्तान विभाजन का मुद्दा सामने आया था, जिसके बाद बलबीर सिंह अपने परिवार को लेकर लुधियाना में रहने लगे थे. यहाँ वे पंजाब पुलिस में काम करने लगे थे. 1941-61 तक बलबीर सिंह पंजाब पुलिस टीम के कप्तान थे. लंदन ओलंपिक (1948) में अर्जिंटिना के खिलाफ सिंह ने 6 गोल किए। इसमें भारत 9-1 से जीता था। सिंह फायनल मैच में भी खेले और दो गोल दागे। ब्रिटेन के खिलाफ भारत की 4-0 से जीत हुई। हेल्सिंकी ओलंपिक (1952) में सिंह टीम इंडिया के वाइस कैप्टन थे। के डी सिंह की कप्तानी में खेलते हुए ब्रिटेन के खिलाफ सेमीफायनल में में सिंह ने हैट्रिक जमाई। उन्होंने भारत के कुल 6 गोल में से 5 गोल किए और नीदरलैंड के खिलाफ मैच जिताया। मैल्बोर्न ओलंपिक (1956) में भारतीय टीम के कप्तान थे। उन्होंने अफगानिस्तान के साथ ओपनिंग मैच में ही 5 गोल दागे परंतु फिर वे चोटग्रस्त हो गए। आखिर में वे सीधे सेमीफायनल में ही खेल पाए। फायनल में भी भारत पाकिस्तान के खिलाफ जीतकर टूर्नामेंट जीता। सिंह ऐसे पहले खिलाड़ी थे जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। भारत सरकार ने उन्हें यह अवार्ड 1957 में दिया। डोमिनिकन रिपब्लिक द्वारा जारी किए गए एक डाक टिकिट पर बलबीर सिंह सीनियर और गुरदेव सिंह थे। यह डाक टिकिट 1956 के मेलबोर्न ओलंपिक की याद में जारी किया गया था। 2006 में उन्हें सबसे अच्छा सिख हॉकी खिलाडी घोषित किया गया। 2015 में उन्हें मेजर ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1950 में अफगानिस्तान के खिलाफ, तथा सिंगापुर के खिलाफ तथा 1954 में मलेशिया के खिलाफ भारतीय टीम का नेतृत्व करते हुए उन्होंने टीम को विजय दिलाई । वह ‘इंडिया वंडर्स’ टीम के भी सदस्य थे । इस टीम ने न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर तथा श्रीलंका के खिलाफ 1955 में अनेक मैच खेले । 1958 में हॉकी को टोकियो एशियाई खेलों में शामिल किया गया । तब बलबीर सिंह ने ही भारतीय टीम का नेतृत्व किया । बलबीर सिंह ने तीन ओलंपिक खेलों में भाग लिया – 1948 में लंदन में, 1952 में हेलसिंकी में तथा 1956 में मेलबर्न में । हेलसिंकी में बलबीर सिंह ने भारतीय टीम की कप्तानी की और 13 में से 9 गोल उन्होंने स्वयं लगाए । मेलबर्न में भी पाकिस्तान के विरुद्ध 1956 में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता । उनकी इन्हीं उपलब्धियों के कारण उन्हें 1957 में ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया। बलबीर सिंह ने जब हॉकी से खिलाड़ी के रूप में संन्यास लिया तब उनकी मांग कोच तथा मैनेजर के रूप में होने लगी । 1962 में अहमदाबाद में अन्तरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट में भारतीय टीम ने स्वर्ण पदक जीता, बलबीर सिंह उस टीम के मैनेजर थे । उनके मैनेजर रहने पर भारतीय टीम ने इन अवसरों पर विजय प्राप्त की:- 1970 में बैंकाक एशियाई खेलों में रजत पदक जीता, 1971 में बार्सिलोना में विश्व हॉकी कप में कांस्य पदक जीता । 1982 में विश्व टूर्नामेंट, एम्सटरडम में टीम ने कांस्य पदक जीता । 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेलों में टीम ने रजत पदक जीता । भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के अधिकारियों के उदासीन रवैये के कारण भारतीय हॉकी के स्वर्णिम इतिहास की नायाब धरोहर गायब हो चुकी है। साई को महान ओलिंपियन बलबीर सिंह सीनियर द्वारा 1985 में दान में दी गई यादगार धरोहरों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ये चीजें प्रस्तावित संग्रहालय बनाने के लिए दी गई थी, जिनमें ओलिंपिक ब्लेजर, पदक, दुर्लभ तस्वीरें शामिल थीं लेकिन यह संग्रहालय कभी नहीं बना। 91 वर्षीय बलबीर ने 1985 में अपने पदक और धरोहरें तत्कालीन साई सचिव को दी थी और तब उनसे कहा गया था कि इनकी नुमाइश राष्ट्रीय खेल संग्रहालय में की जाएगी। उन्हें बाद में बताया गया कि संग्रहालय दिल्ली में बनाया जाएगा। बलबीर सिंह सीनियर का कॉलेज सिख नेशनल कॉलेज लाहौर में था और खालसा कॉलेज अमृतसर में। आखिरकार बलबीर सिंह ने अपने परिवार की अनुमति खालसा कॉलेज के लिए ले ही ली। हरबैल सिंह से बलबीर सिंह की ट्रेनिंग शुरू हो गई। हरबैल सिंह ने भारतीय नेशनल हॉकी टीम को हेलसिंकी और मेलबॉर्न ओलंपिक के लिए तैयार किया। 1942-43 में सिंह को पंजाब युनिवर्सिटी के लिए चुन लिया गया। पंजाब युनिवर्सिटी की टीम ने ऑल इंडिया युनिवर्सिटी टाइटल सिंह की कप्तानी में जीत लिया। तीन लगातार साल तक युनिवर्सिटी यह खिताब जीतती रही। सिंह सेंटर फॉर्वड पोजिशन पर खेलते थे। ओलंपिक में प्रदर्शन लंदन ओलंपिक (1948) में अर्जिंटिना के खिलाफ सिंह ने 6 गोल किए। इसमें भारत 9-1 से जीता था। सिंह फायनल मैच में भी खेले और दो गोल दागे। ब्रिटेन के खिलाफ भारत की 4-0 से जीत हुई। हेल्सिंकी ओलंपिक (1952) में सिंह टीम इंडिया के वाइस कैप्टन थे। के डी सिंह की कप्तानी में खेलते हुए ब्रिटेन के खिलाफ सेमीफायनल में में सिंह ने हैट्रिक जमाई। उन्होंने भारत के कुल 6 गोल में से 5 गोल किए और नीदरलैंड के खिलाफ मैच जिताया। मैल्बोर्न ओलंपिक (1956) में भारतीय टीम के कप्तान थे। उन्होंने अफगानिस्तान के साथ ओपनिंग मैच में ही 5 गोल दागे परंतु फिर वे चोटग्रस्त हो गए। आखिर में वे सीधे सेमीफायनल में ही खेल पाए। फायनल में भी भारत पाकिस्तान के खिलाफ जीतकर टूर्नामेंट जीता। अवार्ड सिंह ऐसे पहले खिलाड़ी थे जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। 1985 में उन्होंने अपने 36 नेशनल और इंटरनेशनल मेडल के अलावा 1956 ओलंपिक का कप्तानी का ब्लेजर स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) को म्यूजियम में रखने के लिए दिया था. इन मेडल्स में एशियन गेम्स का मेडल भी शामिल था लेकिन 2012 में जब बलबीर सिंह को लंदन में दुनिया के 16 आइकोनिक प्लेयर्स के सम्मान समारोह में सम्मानित करने के लिए अपने मेडल्स के साथ आने का बुलावा आया तो उन्हें पता चला कि उनके मेडल और ब्लेजर गुम हो गए हैं. पदमश्री बलबीर सिंह से जब बात की गई तो उनका गला भर आया. उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि किसी ने मेरे शरीर के टुकड़े करके अलग-अलग फेंक दिए हैं. उन्होंने कहा, 'ऐसा लगता है कि ये कोई साजिश है. मेरा नाम इतिहास के पन्नों से मिटाया जा रहा है. मेरे 36 मेडल्स, मेरी दुर्लभ फोटो, मेरा ओलिंपिक की कप्तानी वाला ब्लेजर, सब ले लिए. वो अब कहां हैं, इसका जवाब किसी के पास नही है. हॉकी इंडिया निश्चित रूप से बलबीर जी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए सही राह पर है, जिसमें वह एक बार फिर भारतीय हॉकी को पोडियम पर सबसे ऊपर देखना चाहते हैं।' भारत ने पिछले साल दिसंबर में लखनऊ में बेल्जियम पर 2-1 की जीत से 15 साल के बाद एफआईएच जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप जीतकर इतिहास रचा था। अनुभवी मिडफील्डर बीरेंद्र लाकड़ा और फारवर्ड वंदना कटारिया को आज यहां पहले सालाना हॉकी इंडिया पुरस्कारों में क्रमश: सर्वश्रेष्ठ पुरूष और महिला खिलाड़ी चुना गया जबकि तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सिंह सीनियर को लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजा गया। भारत रत्न के लिए मेजर ध्यानचंद के नाम की अनुशंसा के बीच एक और महान हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर ने कहा है कि वह भी देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के हकदार हैं और उम्मीद है कि उन्हें यह जीतेजी मिलेगा। ( 13 ) 6 Votes have rated this Naukri. 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