दिलीप कुमार जीवनी - Biography of Dilip Kumar in Hindi Jivani Published By : Jivani.org दिलीप कुमार हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध और लोकप्रिय अभिनेता है जो भारतीय संसद के उच्च सदन राज्य सभा के सदस्य रह चुके है। दिलीप कुमार को उनके दौर का बेहतरीन अभिनेता माना जाता है, त्रासद या दु:खद भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हे 'ट्रेजिडी किंग' भी कहा जाता था। उन्हें भारतीय फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया है, इसके अलावा दिलीप कुमार को पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-इम्तियाज़ से भी सम्मानित किया गया है। प्रारंभिक जीवन : दिलीप कुमार जी का जन्म पाकिस्तान के पेशावर में लाला गुलाम के यहाँ हुआ था. इनके 12 भाई बहन थे. इनके पिता फल बेचा करते थे, व् अपने मकान का कुछ हिस्सा किराये में देकर जीवनयापन करते थे. दिलीप कुमार जी ने अपनी स्कूल की पढाई नासिक के पास के किसी स्कूल से की थी. 1930 में इनका पूरा परिवार बॉम्बे में आकर रहने लगा. 1940 में अपने पिता से मतभेद के चलते उन्होंने मुंबई वाले घर को छोड़ दिया और पुणे चले गए. यहाँ उनकी मुलाकात एक कैंटीन के मालिक ताज मोहम्मद शाह से हुई, जिनकी मदद से उन्होंने आर्मी क्लब में एक सैंडविच का स्टाल लगा लिया. दिलीप कुमार के जन्म का नाम मुहम्मद युसुफ़ खान है। उनका जन्म पेशावर (अब पाकिस्तान मे) मे हुआ था। उनके पिता मुंबई आ बसे थे, जहाँ उन्होने हिन्दी फिल्मों मे काम करना शुरू किया। उन्होने अपना नाम बदल कर दिलीप कुमार कर दिया ताकि उन्हे हिन्दी फिल्मो मे ज्यादा पहचान और सफलता मिले। दुखद सीन में अपनी मार्मिक एक्टिंग से सबके दिल को छु लेने की वजह से इन्हें ट्रेजडी किंग कहा गया. जन्म से उनका नाम मोहम्मद युसूफ खान था, हिंदी सिनेमा में आने के बाद इन्होनें अपना नाम दिलीप कुमार रख लिया. दिलीप कुमार जी एक प्रतिष्ठित अभिनेता है, जिन्होंने हिंदी सिनेमा जगत में 5 दशक की लम्बी पारी खेली है. भारतीय सिनेमा के गोल्डन एरा के समय के ये एक अग्रिम अभिनेता रहे है. दिलीप कुमार जी को एक्टिंग करने का मौका भी किस्मत से मिला था, उस समय वे एक कैंटीन चलाया करते थे, वहां एक्ट्रेस देविका रानी गई जिन्होंने उन्हें देखकर फिल्म में काम करने का मौका दे डाला. अपनी पहली फिल्म न चलने के बावजूद इन्होंने जल्द ही खुद को उस दशक के अंत तक भावनात्मक अभिनेता के रूप में स्थापित कर लिया था. बहुमुखी प्रतिभा के धनी, दिलीप जी एक ही तीव्रता व् प्रभाव के साथ अलग अलग के तरह के किरदार बड़ी आसानी से निभा लेते थे, जोगन, दीदार व् देवदास जैसी फिल्मों के बाद ही इन्हें ट्रेजडी किंग का नाम दिया गया था. दिलीप कुमार जी पहले भारतीय अभिनेता है, जिन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड से सम्मानित किया गया था. 1942 में वे अपने पिता और परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिये कुछ करना चाहते थे. तभी उनकी मुलाकात चर्चगेट पर डॉ.मसानी से हुई जिन्होंने कुमार को बॉम्बे टॉकीज, मलाड में उनके साथ आने को कहा. बॉम्बे टॉकीज़ में उनकी मुलाकात अभिनेत्री देविका रानी से हुई, जो बॉम्बे टॉकीज़ की मालक थी, उन्होंने कुमार को 1250 रुपये सालाना देने का सौदा करते हुए साईन कर लिया था. वही उनकी मुलाकात कलाकार अशोक कुमार से हुई, जो कुमार के अभिनय से काफी प्रभावित हुए थे. वही कुछ समय बाद उनकी मुलाकात सशधर मुखर्जी से हुई और वे दोनों कुछ ही सालो में एक-दुसरे के बहोत करीब आ गये थे. उर्दू भाषा में प्रभुत्व होने के कारण कुमार कहानी-लेखन में उनकी सहायता भी करते थे. तभी देविका रानी ने उन्हें अपना नाम युसूफ से बदलकर दिलीप कुमार रखने को भी कहा था और बाद में रानी ने उन्हें फिल्म ज्वार भाटा (1944) में मुख्य अभिनेता के रूप में लांच भी किया, इस फिल्म ने ही दिलीप कुमार के जीवन को नयी दिशा प्रदान की. दिलीप कुमार पहले अभिनेत्री कामिनी कौशल से प्यार करते थे लेकिन उनकी शादी नही हो पायी. परिणामस्वरूप, दिलीप कुमार को बाद में अभिनेत्री मधुबाला से प्यार हुआ लेकिन दोनों के परिवारों ने उनका विरोध किया. बाद में फ़िल्मी जानकारों ने वयजंतिमाला को दिलीप कुमार का तीसरा प्यार बताया. दोनों ने ही अपने करियर में 1955 से 1968 के दरमियाँ काफी सफल फिल्मे भी दी. लेकिन अंततः 1966 में दिलीप कुमार ने अभिनेत्री सायरा बानू से शादी कर ली, जो उस समय उनसे 22 साल छोटी थी. दिलीप कुमार ने 1980 में अस्मा से दूसरी शादी भी की, लेकिन उनकी यह शादी ज्यादा समय तक नही टिक सकी. उनकी पहली हिट फ़िल्म “जुगनू” थी। 1947 में रिलीज़ हुई इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को हिट फ़िल्मों के स्टार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। 1949 में फ़िल्म “अंदाज़” में दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया। यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई। दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं के लिए मशहूर होने के कारण उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा। मुग़ले-ए-आज़म (1960) में उन्होंने मुग़ल राजकुमार जहाँगीर की भूमिका निभाई। “राम और श्याम” में दिलीप कुमार द्वारा निभाया गया दोहरी भूमिका (डबल रोल) आज भी लोगों को गुदगुदाने में सफल साबित होता है। 1970, 1980 और 1990 के दशक में उन्होंने कम फ़िल्मों में काम किया। इस समय की उनकी प्रमुख फ़िल्में थीं: क्रांति (1981), विधाता (1982), दुनिया (1984), कर्मा (1986), इज़्ज़तदार (1990) और सौदागर(1991)। 1998 में बनी फ़िल्म “क़िला” उनकी आखिरी फ़िल्म थी।उन्होने रमेश सिप्पी की फिल्म शक्ति मे अमिताभ बच्चन के साथ काम किया। इस फिल्म के लिए उन्हे फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला। उनकी पहली फिल्म जवार भाटा 1944 में रिलीज़ हुई थी, जीसपर किसी का ध्यान नहीं था। 1947 में उन्होंने महान गायक /अभीनेत्री नूर जहान के साथ काम करने का मौका मिला जो उनकी पहली बड़ी हिट थीं। 1949 में, उन्होंने राज कपूर के साथ रोमांटिक नाटक फिल्म अंदाज़ में सह-अभिनय किया, जो एक बड़ी सफलता बन गई और उन्हें एक स्टार बना दिया। 1950 के दशक के दौरान वह बॉलीवुड के सबसे बड़े सितारों में से एक थे। दीदार(1951), अमर (1954), देवदास (1955) और मधुमती (1958), जैसी लोकप्रिय फिल्मों में दुखद भूमिका निभाने के लिए जाने जाते हैं जिससे उन्हें "Tragidy King" का खिताब मिला। 1961 में उन्होंने हिट गंगा जमुना का निर्माण किया और अभिनय किया, जिसमें उन्होंने और उनके वास्तविक जीवन के भाई नासीर खान ने शीर्षक भूमिका निभाई। फिल्म की सफलता के बावजूद उन्होंने इसके बाद किसी भी फिल्म का उत्पादन नहीं किया। ब्रिटिश निर्देशक डेविड लैन ने उन्हें 1962 के ब्लॉकबस्टर, अरब के लॉरेंस में शेरफ अली की भूमिका की पेशकश की थी। हालांकि, कुमार ने इसका हिस्सा होने से मना कर दिया। 1960 के दशक के मध्य में बॉक्स ऑफ़िस की एक छोटी अवधि के बाद, जब फिल्म राम और श्याम (1967) में उन्होंने दो अलग-अलग जुड़वा बच्चों की दोहरी भूमिका निभाई, जो वर्ष की सबसे बड़ी बॉक्स ऑफिस हिट थी। राम और श्याम की सफलता ने नए मकाम बनाऐ। और ईस फील्म के कईं रीमेक बने. शहीद , अंदाज, आन , देवदास , नया दौर , मधुमती , यहूदी ,पैगाम ,मुगल-ए-आजम ,गंगा जमना ,लीडर तथा “राम और श्याम ” जैसी फिल्मो के सलोने नायक दिलीप कुमार स्वतंत्र भारत के पहले दो दशको में लाखो युवा दर्शको के दिलो की धडकन बन गये थे | सभ्य ,सुसंस्कृत , कुलीन इस अभिनेता ने रंगीन और रंगहीन सिनेमा के पर्दे पर अपने आपको कई रूपों में प्रस्तुत किया | असफल प्रेमी के रूप में उन्होंने विशेष ख्याति पाई ,लेकिन यह भी सिद्ध किया कि हास्य भूमिकाओ में वह कीसी से कम नही रहे | 1966 में प्रसिद्ध अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की | जिस समय Dilip Kumar दिलीप कुमार और सायरा बानो की शादी हुयी उस समय सायरा बानो 22 साल और वह 44 साल के थे | जब लोगो ने अखबारों में यह पढ़ा कि दिलीप सायरा से शादी कर रहे है तो वे चौंक गये | वैसे उनका चौकना स्वाभाविक ही था क्योंकि शादी से पहले Dilip Kumar दिलीप कुमार ने सायरा बानो के साथ एक भी फिल्म नही की | दोनों में ना दोस्ती थी और ना ही मिलना जुलना था | इस शादी ने सायरा को अपने वक्त के सबसे बड़े अदाकार की बीबी बनने का मौका दिया | सच तो यह ही कि बाद के दिनों में सायरा को अपने आइडियल स्टार के साथ “गोपी ” “सगीना ” , “बैराग” ,”दुनिया” जैसी सुपरहिट फिल्मो में काम करने का अवसर भी मिला | Dilip Kumar दिलीप साहब की देवानंद और राजकपूर दोनों से दोस्ती थी | लेकिन राज साहब से उनके बड़े नजदीकी रिश्ते थे | दोनों ही पाकिस्तान के पेशावर में एक ही मोहल्ले , एक ही सड़क के रहने वाले थे | बिलकुल भाइयो जैसा रिश्ता था | देव साहब थोडा अलग किस्म के शख्स थे लेकिन उनके साथ भी दिलीप साहब ने दोस्ती निभाई | पुरस्कार : 1983 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार – शक्ति 1968 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - राम और श्याम 1965 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - लीडर 1961 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - कोहिनूर 1958 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - नया दौर 1957 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - देवदास 1956 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - आज़ाद 1954 - फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार - दाग ( 2 ) 0 Votes have rated this Naukri. 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