गामा पहलवान जीवनी - Biography of Gama Pehalwan in Hindi Jivani Published By : Jivani.org दुनिया में अजेय, गामा पहलवान का जन्म 15 अक्टूबर 1880 ई० को अमृतसर, पंजाब में हुआ था, हालांकि इनके जन्म को लेकर विवाद है। इनके बचपन का नाम ग़ुलाम मुहम्मद था।इन्होंने 10 वर्ष की उम्र में ही पहलवानी शुरू कर दी थी। इन्होंने पत्थर के डम्बल से अपनी बॉडी बनाई थी। गामा का जन्म एक कुश्ती-प्रेमी मुस्लिम परिवार में 1880 में हुआ। अमृतसर पंजाब में पैदा हुए गामा कश्मीरी 'बट' परिवार के 'पहलवान मुहम्मद अज़ीज़' के पुत्र थे। उनका जन्म का नाम 'ग़ुलाम मुहम्मद' था। उनकी रग-रग में कुश्ती का खेल समाया हुआ था। गामा और उनके भाई 'इमामबख़्श' ने शुरू-शुरू में कुश्ती के दांव-पेच पंजाब के मशहूर 'पहलवान माधोसिंह' से सीखने शुरू किए। दतिया के महाराजा भवानीसिंह ने गामा और उनके छोटे भाई इमामबख़्श को पहलवानी करने की सुविधायें प्रदान की। दस वर्ष की उम्र में ही गामा ने जोधपुर, राजस्थान में कई पहलवानों के बीच शारीरिक कसरत के प्रदर्शन में भाग लिया और 'महाराजा जोधपुर' ने गामा को उनकी अद्भुत शारीरिक क्षमताओं को देखते हुए पुरस्कृत किया। गामा युवावस्था में थे और उनके सामने आने वाला हर पहलवान धूल चाट लौटता था। 1895 में उनका सामना देश के सबसे बड़े पहलवान रुस्तम-ए-हिंद रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ। रहीम की लंबाई 6 फुट 9 इंच थी, जबकि गामा सिर्फ 5 फुट 7 इंच के थे लेकिन उन्हें जरा भी डर नहीं लगा। गामा ने रहीम से बराबर की कुश्ती लड़ी और आखिरकार मैच ड्रॉ हुआ। इस लड़ाई के बाद गामा पूरे देश में मशहूर हो गए। साल-दर-साल गामा की ख्याति बढ़ती रही और वह देश के अजेय पहलवान बन गए। गामा ने 1898 से लेकर 1907 के बीच दतिया के गुलाम मोहिउद्दीन, भोपाल के प्रताब सिंह, इंदौर के अली बाबा सेन और मुल्तान के हसन बक्श जैसे नामी पहलवानों को लगातार हराया। 1910 में एक बार फिर गामा का सामना रुस्तम-ए-हिंद रहीम बक्श सुल्तानीवाला से हुआ। एक बार फिर मैच ड्रॉ रहा। अब गामा देश के अकेले ऐसे पहलवान बन चुके थे, जिसे कोई हरा नहीं पाया था। भारत में अजेय होने के बाद गामा ब्रिटेन गए। वहां उन्होंने विदेशी पहलवानों को धूल चटाने का मन बनाया लेकिन लंबाई कम होने की वजह से उन्हें वेस्टर्न फाइटिंग में शामिल नहीं किया गया। इसके बाद, गामा ने वहां के सभी पहलवानों को खुली चुनौती दी लेकिन लोगों ने इसे मार्केटिंग की चाल समझकर तवज्जो नहीं दी। आखिरकार, गामा ने वहां के सबसे बड़े पहलवानों स्टैनिसलॉस जबिश्को और फ्रैंक गॉच को चुनौती दे डाली। अंतरराष्ट्रीय पहलवान इसके अलावा, गामा ने स्टैनिसलॉस जबिश्को और फ्रैंक गॉच को विशेष रूप से चुनौती दे दी और कहा कि या तो वह उनसे मुकाबला करें या फिर उन्हें पुरस्कार राशि दें। यह चुनौती पहली बार अमेरिका के पहलवान ‘बैंजामिन रोलर’ ने स्वीकार की। गामा ने रोलर को 1 मिनट 40 सेकेण्ड में पछाड़ दिया और फिर दोबारा गामा और रोलर के बीच में कुश्ती हुई, जिसमें रोलर 9 मिनट 10 सेकेण्ड ही टिक सका। अगले दिन गामा ने 12 पहलवानों को हराकर आधिकारिक टूर्नामेंट में प्रवेश प्राप्त किया। विश्व चैंपियन के साथ कुश्ती 10 सितंबर 1910 को, लंदन के ‘जॉन बुल बैल्ट’ विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में गामा ने विश्व चैंपियन ‘स्टेनिस्लस ज़िबेस्को’ का सामना किया। मैच £250 (₹22000) पुरस्कार राशि के लिए था। लगभग तीन घंटों तक कुश्ती होने के बाद ज़िबेस्को और गामा के बीच यह मुकाबल ड्रा हो गया। दूसरे दिन, जब ज़िबेस्को और गामा के बीच मुकाबला होना था, तो ज़िबेस्को डर के मारे मैदान में ही नहीं आया और फिर गामा को विजेता घोषित कर दिया गया। दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पहलवानों को हराना पश्चिमी देशों के अपने दौरे के दौरान, गामा ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पहलवानों को हराया। जैसे कि- फ्रांस के मॉरिस देरिज़, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉक” बेंजामिन रोलर, स्वीडन के जॅसी पीटरसन (विश्व चैंपियन) और स्विट्जरलैंड के जोहान लेम (यूरोपियन चैंपियन) । बेंजामिन रोलर के साथ कुश्ती लड़ते हुए, गामा ने उन्हें 15 मिनट में 13 बार फेंका। विश्व चैंपियन का दावा करने वाले पहलवानों को चुनौती दुनिया के कई प्रसिद्ध पहलवानों को हराने के बाद, गामा ने उन लोगों के लिए एक चुनौती जारी की जो “विश्व चैंपियन” के शीर्षक का दावा करते थे। जिसमें जापान का जूडो पहलवान ‘तारो मियाकी’, रूस का ‘जॉर्ज हॅकेन्शमित’, अमरीका का ‘फ़ॅन्क गॉश’ शामिल थे जीवन का अंतिम दौर 1947 में भारत के बँटवारे के समय गामा पाकिस्तान चले गये वहाँ अपने भाई इमामबख़्श के साथ और अपने भतीजों के साथ रहे और अपना शेष जीवन बिताया। 'रुस्तम-ए-ज़मां' के आखिरी दिन बड़े कष्ट और मुसीबत में गुज़रे। रावी नदी के किनारे इस अजेय पुरुष को एक छोटी-सी झोंपड़ी बनाकर रहना पड़ा। अपनी अमूल्य यादगारों सोने और चाँदी के तमग़े बेच-बेचकर अपनी ज़िन्दगी के आखिरी दिन गुज़ारने पड़े। वह हमेशा बीमार रहने लगे। उनकी बीमारी की ख़बर पाकर भारतवासियों का दु:खी होना स्वाभाविक ही था। निधन महाराजा पटियाला और बिड़ला बन्धुओं ने उनकी सहायता के लिए धनराशि भेजनी शुरू की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 22 मई, 1960 लाहौर, पाकिस्तान को 'रुस्तम-ए-ज़मां' गामा मृत्यु से हार गए। गामा मरकर भी अमर है। भारतीय कुश्ती-कला की विजय पताका को विश्व में फहराने का श्रेय केवल गामा को ही प्राप्त है। ( 13 ) 5 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 4