अली सरदार जाफरी जीवनी - Biography of Ali Sardar Jafri in Hindi Jivani Published By : Jivani.org अली सरदार जाफरी एक उर्दू साहित्यकार हैं। इन्हें 1997 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। सन् 29 नवम्बर 1913 ई. को जन्म लेने वाले प्रसिद्ध शायर अली सरदार जाफ़री के लिए निश्चित ही नवम्बर एक यादगार महीना रहा होगा। सरदार का जन्म गोंडा ज़िले के बलरामपुर गाँव में हुआ था और वहीं पर हाईस्कूल तक उनकी शिक्षा-दीक्षा भी हुई थी। आगे की पढा़ई के लिए उन्होंने अलीगढ़ की मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। यहाँ पर उनको उस समय के मशहूर और उभरते हुए शायरों की संगत मिली जिनमें अख़्तर हुसैन रायपुरी, सिब्ते-हसन, जज़्बी, मजाज़, जाँनिसार अख़्तर और ख़्वाजा अहमद अब्बास जैसे अदीब भी थे। कोई सरदार कब था इससे पहले तेरी महफ़िल में बहुत अहले-सुखन उट्ठे बहुत अहले-कलाम आये। यह वह दौर था जब अँग्रेज़ों के ख़िलाफ़ स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत हो चुकी थी और कई नौजवान इस आंदोलन में कूद पडे़ थे। इसी समय वॉयसराय के इक्ज़िकिटिव कौंसिल के सदस्यों के विरुद्ध हड़ताल करने के लिए सरदार को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया। अपनी पढा़ई आगे जारी रखते हुए उन्होंने एँग्लो-अरेबिक कालेज, दिल्ली से बी.ए. पास किया और बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री हासिल की। फिर भी, छात्र-आंदोलनों में भाग लेने का उनका जज़्बा कम नहीं हुआ। परिणामस्वरूप उन्हें जेल जाना पडा़। इसी जेल में उनकी मुलाकात प्रगतिशील लेखक संघ के सज्जाद ज़हीर से हुई और लेनिन व मार्क्स के साहित्य के अध्ययन का अवसर मिला। यहीं से उनके चिंतन और मार्ग-दर्शन को ठोस ज़मीन भी मिली। इसी प्रकार अपनी साम्यवादी विचारधारा के कारण वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुडे़ जहाँ उन्हें प्रेमचन्द, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' , मुल्कराज आनंद जैसे भारतीय सहित्यकारों तथा नेरूदा व लुई अरांगा जैसे विदेशी चिंतकों के विचारों को जानने - समझने का अवसर मिला। कई आलिमों की संगत का यह असर हुआ कि सरदार एक ऐसे शायर बने जिनके दिल में मेहनतकशों के दुख-दर्द बसे हुए थे। सरदार जाफ़री ने नए शब्दों और विचारों के साथ कई रचनाएँ कीं। जाफ़री की शायरी की भाषा का बड़ा हिस्सा ईरान के उस असर से आज़ाद है, जिससे उर्दू शायरी का बड़ा हिस्सा बोझिल है, उनके यहाँ ऐसी पंक्तियाँ जैसे, ‘गाय के थन से निकलती है चमकती चाँदी’, ‘धुएँ से काले तवे भी चिंगारियों के होठो से हँस रहे हैं’ या ‘इमलियों के पत्तों पर धूप पर सुखाती है’ आदि शायरी में नए लहजे की पहचान कराते हैं। उनका भारतीय सिनेमा मए काफी योगदान रहा जहाँ उन्होंने अपनी कई शायरियां निम्नलिखित फिल्मो के लिए भी दी ‘परवाज़’ (1944), ‘जम्हूर’ (1946), ‘नई दुनिया को सलाम’ (1947), ‘ख़ूब की लकीर’ (1949), ‘अम्मन का सितारा’ (1950), ‘एशिया जाग उठा’ (1950), ‘पत्थर की दीवार’ (1953), ‘एक ख़्वाब और (1965) पैराहने शरर (1966), ‘लहु पुकारता है’ (1978) आदि । जिसके लिए उन्हें कई पुरस्कार और उपाधियाँ भी दी गई जैसे पुरस्कार के रूप में उन्हें पद्मश्री, ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया तो राष्ट्रीय उपाधियों के रूप में उन्हें -इक़बाल सम्मान, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, रूसी सोवियत लैण्ड नेहरू पुरस्कार आदि दिए गए । इस अज़ीम शायर ने अपने पूरे जीवन में मज़लूम और मेहनतकश ग़रीबों की समस्याओं को उजागर करने के लिए अपनी क़लम चलाई जिसके लिए उन्हें निजी यातनाएँ भी झेलनी पडी़। 86 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते अपने जीवन के अंतिम दिनों में ब्रेन-ट्यूमर से ग्रस्त होकर कई माह तक मुम्बई अस्पताल में मौत से जूझते रहे और अंततः पहली अगस्त सन २००० में मुंबई में उनका स्वर्गवास हो गया। साहित्यिक कैरियर जाफरी ने अपने साहित्यिक करियर को 1 9 38 में अपना पहला लघु कथाएं प्रकाशित करने के साथ शुरू किया जिसमें मंजिल (डेस्टिनेशन) कहा गया था। उनकी पहली कविताएं परवज़ (उड़ान) का संग्रह 1 9 44 में प्रकाशित हुआ था। 1 9 36 में, उन्होंने लखनऊ में प्रोग्रेसिव राइटर्स मूवमेंट के पहले सम्मेलन की अध्यक्षता की। उन्होंने अपने शेष जीवन के लिए उनके बाद के विधानसभाओं की भी अध्यक्षता की। 1 9 3 9 में, वह प्रगतिशील राइटर्स आंदोलन के लिए समर्पित एक साहित्यिक जर्नल न्या अदब के सह-संपादक बने, जो 1 9 4 9 तक प्रकाशित हुआ। वह कई सामाजिक, राजनीतिक और साहित्यिक आंदोलनों में शामिल थे 20 जनवरी 1 9 4 9 को, बंबई राज्य के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई से चेतावनी के बावजूद उन्हें भिवंडी में गिरफ्तार किया गया (तब प्रतिबंधित) प्रगतिशील उर्दू लेखकों के सम्मेलन के आयोजन के लिए। तीन महीने बाद, उन्हें दोबारा रिवरेट किया गया। एक गीतकार के रूप में उनके महत्वपूर्ण कामों में धरती के लाल (1 9 46) और परदेसी (1 9 57) शामिल हैं। 1 9 48 और 1 9 78 के बीच उन्होंने आठ कविता संग्रह प्रकाशित किए, जिसमें नई दुनिया को सलाम (न्यू वर्ल्ड से सलामी), (1 9 48), खून की झीलर, अम्न का सितारा, एशिया जगत उठा (एशिया अवेक) (1 9 51), पठार की देवर (स्टोन वॉल) (1 9 53), एक ख़्वाब और (एक और ड्रीम), पैरहान-ए-शार (1 9 65) की रब इसके बाद अवध की खाक-ए-हदीन (सुंदर भूमि अवध), सुबे फरदा (कल सुबह), मेरा सफर (मेरी यात्रा) और उनके आखिरी लेखनी सरहद का पालन किया गया, जो तत्कालीन भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया। 1 999 में लाहौर जाने के लिए उनकी बस यात्रा पर। प्रमुख कृतियाँ o `‘परवाज़’ (1944), o ‘जम्हूर’ (1946), o ‘नई दुनिया को सलाम’ (1947), o ‘ख़ूब की लकीर’ (1949), o ‘अम्मन का सितारा’ (1950), o ‘एशिया जाग उठा’ (1950), o ‘पत्थर की दीवार’ (1953), o ‘एक ख़्वाब और (1965) o पैराहने शरर (1966), o ‘लहु पुकारता है’ (1978), o मेरा सफ़र (1999) ( 6 ) 3 Votes have rated this Naukri. Average Rating is 3